नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने संसद के चल रहे मानसून सत्र के दौरान विवादित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) संशोधन विधेयक पर चर्चा समेत मतदान से भी दूर रहने का फैसला किया है। बसपा का यह कदम बीजेपी को संकट से उबारने में बेहद मददगार साबित होगा क्योंकि इस वक्त उसको नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को राज्य सभा में इस संशोधन को लेकर संख्या जुटाने में काफी कठिनाई हो रही है।
सूत्रों के मुताबिक पार्टी ने संसद के दोनों सदनों में विधेयक की प्रक्रिया में हिस्सा नहीं बनने का फैसला किया है। अगर ऐसा होगा तो बसपा मतदान में भी हिस्सा नहीं लेगी। आपको बता दें की जहां लोकसभा में बसपा के नौ सदस्य हैं, वहीं उच्च सदन यानि राज्य सभा में पार्टी का केवल एक सांसद है।
विपक्ष को चौंकाते हुए, तेलंगाना स्थित भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जो विपक्ष के एकता मंच का हिस्सा नहीं थी। गुरुवार को सदन के आधिकारिक कामकाज में विवादास्पद दिल्ली अध्यादेश पर संसद से मुहर लगाने के लिए पेश विधेयक का विरोध कर रही है। अन्य विपक्षी सांसदों के साथ उसके नेता राज्य सभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी) की बैठक से वॉकआउट कर गए थे।
जबकि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ (भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन) और भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए इस विधेयक को लेकर पहले से ही दो खेमों में बंटे हुए हैं। जबकि दो अन्य तथाकथित निष्पक्ष दल, वाईएसआरसीपी(YSRCP) जो आंध्र प्रदेश में सत्ता में है और बीजेडी (BJD) जो ओडिशा पर शासन करती है, ने इस मामले पर अपना रुख अभी तक स्पष्ट नहीं किया है। विपक्ष के सूत्रों ने यह दावा किया है कि अगर ये दोनों दल इसके खिलाफ मतदान करते हैं या सदन से अनुपस्थित रहते हैं तो इस विधेयक को रोका जा सकता है।
विपक्षी दल इस बात को लेकर बेहद एहतियात बरत रहे हैं कि कोई गलत बयानबाजी से बचा जाए जिससे बीजेपी के खिलाफ खड़े होने वाले संभावित दलों को अनुपस्थित होने से रोका जा सके। और यह पहल आम आदमी पार्टी द्वारा पहले से मनाए जा रहे दलों को और उत्साहित कर सकता है। इससे उस विधेयक को रोकने में कामयाबी मिलेगी जिसे इसी सत्र में पेश किया जाना है।
आप पार्टी ने इस अध्यादेश को निर्वाचित सरकार को दरकिनार करने और सिविल सेवकों का नियंत्रण उपराज्यपाल को सौंपने को संघवाद के सिद्धांत का उल्लंघन बताया था।
हालांकि भाजपा अपने 303 सांसदों के साथ लोकसभा में स्पष्ट बहुमत रखती है, इसी वजह से उसे एनसीटी विधेयक को सदन में पारित कराने में कोई परेशानी नहीं होगी। मौजूदा समय में राज्य सभा में कुल 238 सांसद हैं। ऐसे में अगर विपक्षी दल एक साथ आते हैं तो भाजपा के लिए विधेयक को पास करवा पाना मुश्किल हो सकता है। भाजपा और उसके सहयोगी दलों के पास कुल मिलाकर 111 सांसद हैं, जिनमें मनोनीत सदस्य भी शामिल हैं। जबकि बीजेडी, वाईएसआरसीपी, बीएसपी, टीडीपी और जेडी(एस) जैसे पार्टी को छोड़ दें तो विपक्ष कुल 106 सदस्यों के साथ भाजपा से थोड़ा पीछे है।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट। कुछ इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)