बैटल ऑफ बंगाल: किसानों की ट्रैक्टर ट्रॉली से गूंजी आवाज ‘भाजपा को वोट नहीं’

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संयुक्त किसान मोर्चा ट्रैक्टर ट्रॉली रैली का आगाज कोलकाता के रामलीला मैदान से हुआ। उनकी सभा और रैली के साथ ही कोलकाता में एक ही नारा लगा कि भाजपा को एक भी वोट नहीं। अब यह महज इत्तफाक है कि ठीक इससे पहले विभिन्न धर्म संप्रदाय पेशा और संस्कृति के हजारों लोगों ने कोलकाता में जुलूस निकालकर कहा था कि नो वोट फॉर बीजेपी। यानी भाजपा को एक भी वोट नहीं। अब यह बात दीगर है कि दोनों की इस अपील की वजह अलग-अलग है।

बंगाल में किसान आंदोलन का एक अपना इतिहास रहा है। बंगाल ही पूरे देश में अकेला राज्य है जहां बटैया पर खेती करने वालों को भी खतौनी में वर्गादार का दर्जा मिला हुआ है। यह ज्योति बसु की सरकार में हुआ था। इसके साथ ही बंगाल इस बात का भी गवाह है कि जब सरकार अहंकारी हो जाती है तो किसान 34 साल पुरानी सरकार को भी उखाड़ फेकते हैं। वहां तो अभी 7 साल भी पूरे नहीं हो पाए हैं। किसान कोऑर्डिनेशन कमेटी की पहल पर संयुक्त किसान मोर्चा की पहली रैली कोलकाता के रामलीला मैदान में आयोजित की गई।

भाजपा को वोट नहीं अपील को पुरजोर समर्थन भी मिला। वैसे भी कोलकाता की जमीन भाजपा के लिए बंजर ही है। लोकसभा के चुनाव में कोलकाता की 11 विधानसभा सीटों में से सिर्फ जोड़ा साँको में ही भाजपा को बढ़त मिली थी। अलबत्ता मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की विधानसभा सीट भवानीपुर में भाजपा कुछ सौ वोटों से आगे थी। कोलकाता के बाद अगला पड़ाव नंदीग्राम था। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि 2007 में नंदीग्राम में हुए किसान आंदोलन का अक्स सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन में  नजर आता है। बंगाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नंदीग्राम में केमिकल हब बनाने के लिए जमीन का अधिग्रहण करना चाहते थे। किसान इस जबरन अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे। बुद्धदेव भट्टाचार्य भी कहते थे कि यह अधिग्रहण किसानों के भले के लिए किया जा रहा है।

ठीक उसी तरह जिस तरह आज मोदी कहते हैं कि कृषक कानून किसानों के भले के लिए ही बनाया गया है। उस दिन भी किसान अहमक थे और आज भी किसान अहमक हैं कि इसे समझ नहीं पा रहे हैं। किसान पीछे हटने को तैयार नहीं थे पुलिस फायरिंग हुई और कई किसान मारे गए। केमिकल हब बनाने का सपना अधूरा रह गया। इसके बाद 2010 में बुद्धदेव भट्टाचार्य ने सिंगुर में टाटा की कार नैनो का कारखाना बनाने के लिए जमीन का अधिग्रहण करना शुरू किया। एक बार किसान फिर आंदोलन की राह पर उतर आए। इस बार भी बुधदेव भट्टाचार्य कह रहे थे किसानों के भले के लिए जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। दरअसल मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और किसानों के बीच संवाद का कोई सिलसिला नहीं रह गया था।

ठीक़ इसी तरह जिस तरह सिंघु बॉर्डर पर महीनों से बैठे किसानों के साथ प्रधानमंत्री मोदी का कोई सरोकार नहीं है। इसकी वजह यह है कि 34 साल से सत्ता में बनी रही सरकार के नेताओं ने मान लिया था कि उनका कोई विकल्प नहीं है। ठीक उसी तरह जिस तरह आज मोदी भक्त कहते हैं कि मोदी का कोई विकल्प नहीं है। लक्ष्मण सेठ तड़ित बरण तोपदार और सुशांत घोष जैसे नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य और किसानों के बीच दीवार बनकर खड़े हो गए थे। इसका नतीजा यह हुआ कि 2011 में किसानों ने 34 साल पुरानी सरकार को उखाड़ फेंका। संयुक्त किसान मोर्चा ने बंगाल को निशाने पर लेकर मोदी शाह की जोड़ी को सबक सिखाने का फैसला लिया है। भाजपा नेताओं को पांच राज्यों में हो रहे चुनाव में बंगाल से सबसे ज्यादा उम्मीद है।

यही वजह है कि केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ ही भाजपा नेताओं की फौज बंगाल में डेरा डाले हुए है। अब यह बात दीगर है कि वे भ्रम में हैं। अभी हाल ही में कोलकाता में दस हजार से अधिक लोगों ने एक रैली निकाली। बस एक ही नारा था कि भाजपा को वोट नहीं। धर्म और जाति को दरकिनार करते हुए सभी उम्र और वर्ग के लोगों ने इसमें हिस्सा लिया था। इसमें शामिल अंबेडकर विश्वविद्यालय के एक अध्यापक ने कहा कि पूरा देश जब कोविड के खौफ से जूझ रहा था तो इस सरकार ने चुपके से कृषक कानून पास कर लिया। वे कहते हैं कि बंगाल के किसानों की ताकत को लेकर कोई भ्रम न पालें। उन्होंने सिर्फ 2011 में ही नहीं साठ के दशक में भी प्रफुल्ल सेन की सरकार को गिरा दिया था। अब बंगाल के लोगों को अप्रैल का इंतजार है जब मोदी आकाश में हेलीकॉप्टर पर होंगे और किसान कोलकाता की सड़कों पर अपनी ट्रैक्टर ट्रॉली रैली का जलवा दिखाएंगे।

(कोलकाता से वरिष्ठ पत्रकार जेके सिंह की रिपोर्ट।)

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