मोदी सरकार के खजाने में पैसा लगातार कम हो रहा है, क्योंकि पैसा आ नहीं रहा है। ऐसे में मोदी सरकार GST के रेट्स बढ़ाने और जिन चीजों को जीएसटी से बाहर रखा गया है, उन्हें भी शामिल करने और सेस बढ़ाने की सोच रही है।
जीएसटी काउंसिल की 18 दिसंबर को बैठक है। इसके बाद आम लोगों का गला काटने का ऐलान हो सकता है। पहले से ही बिज़नेस डाउन है। ऊपर से जीएसटी बढ़ने का असर आप सोच सकते हैं। नोटबंदी के बाद मोदी सरकार की दूसरी सबसे बड़ी ग़लती का खामियाजा भुगतने को तैयार रहें।
इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक और बुरी खबर है। देश के 3.5 लाख छोटे व्यापारियों का ई-वे बिल रोक दिया गया है। ऐसा इन व्यापारियों द्वारा लगातार तीन महीने तक जीएसटी न भरने के एवज में किया गया है। हालांकि, 20 लाख व्यापारियों ने GST नहीं भरा है। ये जो कार्रवाई हुई है, उसका असर सप्लायर पर पड़ा है। सप्लायर इन दुकानदारों के लिए ई-वे बिल जनरेट नहीं कर पा रहे हैं।

अक्टूबर में जीएसटी के रूप में सरकार को केवल 67% ही राजस्व मिला। नवंबर में जीएसटी रिटर्न 7% जरूर बढ़ा है। देश में जीएसटी न भरने वाले 20 लाख व्यापारियों में से अधिकांश क्रेडिट पर माल उठाते हैं। आज से पुणे में सप्लायरों ने क्रेडिट पर माल देना बंद कर दिया है, क्योंकि अगर दुकानदार ने जीएसटी नहीं भरा तो घाटा सप्लायर को होगा।
दुकानदार तो झोला उठाकर निकल लेगा। एक ओर, जहां बाजार में मांग नहीं है, लोग बाजार तक आने से भी डर रहे हैं, वहां कल रात की कार्रवाई से मचा हड़कंप देश में कारोबार को ठप करने वाला हो सकता है। यहां सप्लाई चेन ऊपर तक प्रभावित होगी, जो औद्योगिक मंदी को और तेज़ कर सकता है। बाज़ार में वैसे भी बीते छह महीने में बिना बिल के नकद लेन-देन बढ़ा है।
सरकार जीएसटी के दुष्चक्र में फंस चुकी है। एक तरफ राज्यों को जीएसटी का हिस्सा न मिलने पर वे कंगाल हो रहे हैं, वहीं ओडिशा और बंगाल ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाते हुए सियासत शुरू कर दी है। बीच में हम-आप फंस गए हैं। आखिर में नुकसान तो देश का ही होने जा रहा है।
सौमित्र राय
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और भोपाल में रहते हैं।)