‘बालू है तो जल है, जल है तो कल है’। मानव जीवन से जुड़े इस तरह के स्लोगन हम आए दिन देखते हैं, सुनते हैं। यह स्लोगन हमें काफी आकर्षित भी करते हैं। लेकिन शायद ही हम इस उपभोक्तावादी और भौतिकवादी युग में इसे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं।
कहना ना होगा कि जिस तरह से जल, जंगल और पहाड़ का दोहन हो रहा है, उससे मानव जीवन का भविष्य कितना भयावह है, इसका खुलासा रोज व रोज हो रहा है। वैसे तो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रूप में यह दोहन जारी है, लेकिन झारखंड में इन प्राकृतिक संपदाओं की बड़े पैमाने लूट जारी है।
अगर हम बालू की बात करें तो बालू नदियों के पानी को बांध कर रखता है। नदी में जल अधिक होने पर बालू ही पानी को बांधता है, बहाव से रोकता है। वहीं नदी में जलस्तर कम होने पर बालू खुद में बांधे जल को बहाव क्षेत्र में प्रवाहित भी करता है। पर्यावरणविदों के अनुसार बालू निर्माण में बहुत समय लगता है। इसे बचाना बहुत ही जरूरी है। उनका मानना है कि अगर बालू के दोहन पर नियंत्रण नहीं किया गया तो नदियों की जिंदगी खत्म हो जाएगी।
उल्लेखनीय है कि झारखंड सरकार और प्रशासन, बालू के अवैध खनन और धंधे को रोकने में विफल साबित हो रहे हैं। इधर लगातार अवैध कारोबारियों का दबदबा बढ़ता जा रहा है। माफियाओं द्वारा आक्रमकता दिखाई जा रही है। अंचल अधिकारी जो अंचल में राजस्व संबंधी मामलों का जिम्मेदार अधिकारी होता है, उसे भी जान से मारने की धमकी देने से माफियाओं को गुरेज नहीं है।
सरकार द्वारा अधिकृत बालू घाटों से जुड़े कारोबारियों का एक पक्ष है और दूसरा पक्ष अवैध तरीके से खनन करने और बेचने वालों का है। पुलिस-प्रशासन द्वारा लगातार बालू लदे ओवर लोड ट्रक और ट्रैक्टर पकड़े जाने के बावजूद इस धंधे पर रोक नहीं लग पा रही। खुलेआम धंधा हो रहा है। हाइवे पर यह साफ़ देखा जा सकता है कि जाम लगने की स्थिति में कुछ लोग लाठी लेकर बाइक से आते हैं और जाम हटाते हैं।
कुछ लोग बालू लदे वाहन को पास कराने के लिए इशारा करते हैं कि अभी पुलिस नहीं है, वाहन निकाल लो। इस बीच पता नहीं पुलिस कहां रहती है? बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार के बीच आम लोग परेशान हैं। बालू सरकार द्वारा तय मूल्य से दो से तीन गुना ऊंचे दर पर बिक रहा है। कोई सुनने वाला नहीं है। माफिया मजे कर रहे हैं और आम जन भुगत रही है।
खनन विभाग और पुलिस मुख्यालय के कड़े निर्देश के बाद भी अवैध बालू खनन थमने का नाम नहीं ले रहा है। सूत्रों का कहना है कि खनन विभाग द्वारा पंजीकृत बालू घाट से अधिक अवैध बालू घाट चल रहे हैं। लोग लगातार परेशान हो रहे हैं।

लोगों की शिकायत पर खनन विभाग, पुलिस मुख्यालय और डीएम ने सभी थानाध्यक्षों और अंचलाधिकारियों को जांच कर कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया है। इसके बावजूद इसका कोई असर अवैध बालू कारोबार पर पड़ता नहीं दिख रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि बालू माफियाओं को हर स्तर पर संरक्षण प्राप्त होता है।
गरीबों को मकान बनाना हो या फिर पीएम आवास के निर्माण के लिए बालू का उठाव करना हो तो उनके ऊपर कार्रवाई हो रही है। लेकिन बालू माफिया और ठेकेदारों की बल्ले-बल्ले रहती है।
उदाहरण के तौर पर हम बोकारो जिले की बात करते हैं। 23 सितंबर 2022 को विधानसभा की कमेटी बोकारो दौरे पर आयी थी। टीम में शामिल पूर्वी जमशेदपुर के विधायक सरयू राय ने जेएसएमडीसी की कार्य पद्धति पर सवाल उठाया था। सरयू राय ने कहा था कि जिला खनन की टीम ने 42 घाटों को चिह्नित किया है। लेकिन जेएसएमडीसी के सर्वे में संख्या इससे अलग है। जेएसएमडीसी ने उन कैटेगरी में 1 घाट को भी सर्वे में शामिल किया है, जिसे पंचायत स्तर पर संचालित किया जाता है।
15 अक्तूबर 22 को एनजीटी की रोक खत्म हो गयी। पिछले तीन साल से एनजीटी की रोक लग रही है और हट रही है। बावजूद इसके बालू घाट की नीलामी प्रक्रिया रुकी हुई है। इससे एक-एक कर सभी घाट अब अवैध हो गये हैं। कुछ ब्लॉक से ट्रैक्टर निकलते देखे भी जा रहे हैं। जिला प्रशासन की ओर से टास्क फोर्स बनाया गया है। लेकिन अवैध कारोबारी प्रशासन पर बीस ही पड़ रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि आज तक बोकारो जिले के 38 चिह्नित घाटों की नीलामी नहीं हो पायी है। जिला खनन टास्क फोर्स यानी डीएमटीएफ की बैठक 21 फरवरी 2023 को डीसी ऑफिस में की गयी थी। बैठक में डीएमओ रवि कुमार ने बताया था कि पिछले माह यानी जनवरी में 23 मामलों पर कार्रवाई हुई थी।
वहीं विभागीय जानकारों की माने तो अवैध बालू खनन का यह आंकड़ा बहुत कम है। हकीकत इससे कहीं अधिक है। बालू चोरी का नजारा दामोदर नदी के तट पर आसानी से देखा जा सकता है। चाहे पेटरवार प्रखंड हो या चास प्रखंड, दामोदर नदी के तट पर हर जगह बालू की बेतरतीब तरीके से उठाव जारी है।

दर्जनों ट्रैक्टर एक साथ बालू उठाव में लगे हुए हैं। बूढ़ीडीह-वास्तेजी तट पर बकायदे बालू को छान कर लदाई होती है। यह आम आंखों से देखा जा सकता है, अलग बात है कि प्रशासनिक आंख इसे नहीं देख पाती है।
बता दें कि बालू घाट नीलाम कराने की जिम्मेदारी जेएसएमडीसी पर है। 2022 की पहली तिमाही में प्रक्रिया शुरू की गयी। लेकिन माना जाता है कि जब जेएसएमडीसी ने नीलामी की प्रक्रिया प्रारंभ की तो पंचायत चुनाव की आचार संहिता बाधा बन गई। चुनाव संपन्न होने के बाद एनजीटी की रोक लग गयी। एनजीटी की रोक हटने के बाद फिर प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन फिर से यह फाइल में ही अटक कर रह गयी।
बोकारो जिले में 38 बालू घाट चिह्नित हैं, लेकिन इनमें से एक भी वर्तमान दौर में बंदोबस्त नहीं है। सभी चिह्नित घाट की आवंटन अवधि पूरी हो चुकी है। बालू घाट नीलाम कराने की जिम्मेदारी जेएसएमडीसी पर है। जिला खनन विभाग की मानें तो बालू घाट की नीलामी की प्रक्रिया चल रही है। जिला सर्वे रिपोर्ट (डीएसआर) बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है।
10 को कॉमर्शियल घाट के रूप में चिह्नित किया गया है। वहीं अन्य घाटों को कई कैटेगरी में बांटा गया है। कुछ घाट पर वन विभाग से भी सहमति का मामला प्रक्रियाधीन है। क्योंकि कुछ घाट वन विभाग के अंतर्गत आते हैं। आपत्ति निवारण के बाद डीएसआर को स्टेट इनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट (राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन) की मंजूरी के लिए भेजा जायेगा। यहां से मंजूरी के बाद जेएसएमडीसी पर्यावरण स्वीकृति लेगी।
इन तमाम प्रक्रियाओं के बीच जिले के चास प्रखंड के चितामी-जाला स्थित इजरी नदी घाट पर बालू माफियाओं का राज है। बालू माफिया जेसीबी लगाकर नदी में जहां-तहां गड्ढे कर बालू निकालते हैं। नदी के पूरे हिस्से में उत्खनन कर जहां-तहां 15 से 20 फीट तक जेसीबी से गड्ढा कर दिया गया है। इन गड्ढों में कभी भी बड़ी घटना हो सकती है।
ग्रामीणों के लिए यह गड्ढे खतरनाक बन गये हैं। भंडारडीह तथा जाला घाट से रोजाना बालू माफियाओं द्वारा जेसीबी से लोड कर ट्रैक्टर को गंतव्य तक भेजा जा रहा है। बालू माफियाओं द्वारा जेसीबी से बालू का उठाव कर नदी के बहते पानी पर दहा दिया जाता है। बालू से मिट्टी बहाने के उपरांत फिर से छानकर उस बालू को ट्रैक्टर में लोड कर बेच दिया जाता है। मिट्टी को नदी में बहाने से नदी का पानी भी दूषित हो जा रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)