लेखा-जोखा: यूपी में कांग्रेस की फिर से खड़ी होने की जिद

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ऐसे दौर में जबकि उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बीएसपी का केंद्रीय नेतृत्व सरकार के खिलाफ किसी भी मुद्दे पर सड़क पर उतरने से परहेज कर रहा है। और विरोध के नाम पर उनकी तरफ से कुछ औपचारिकताएं भर निभायी जा रही हैं। उस समय छोटी ताकत होने के बावजूद कांग्रेस ने लगातार पहल की है। और सरकार के विरोध के मोर्चे पर सबसे आगे खड़ी रही है। इस काम में पार्टी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। कोविड में लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की घर वापसी का मसला हो या फिर कहीं किसी जगह पर दलित उत्पीड़न की घटना लल्लू हमेशा मौके पर मौजूद रहे। इस कड़ी में पार्टी न केवल मीडिया के फोकस में रही बल्कि आम लोगों समेत बौद्धिक समाज का ध्यान भी अपनी ओर खींचने में सफल रही। लेकिन यह सब किसी एक व्यक्ति से संभव नहीं था। और न ही चंद मुद्दे उठाने भर से यह सब कुछ हासिल हो जाता।

दरअसल इसके पीछे पूरी एक टीम काम कर रही है। यह उसकी रणनीतिक सोच और समझदारी का नतीजा है। उसके लिए कांग्रेस को सूबे में फिर से खड़ा करना राजनीतिक कार्यभार से ज्यादा एक मिशन है। लेकिन यह सब कुछ बगैर किसी संगठन के संभव नहीं था। लिहाजा पूरी टीम के लिए यह सबसे अधिक प्राथमिकता का क्षेत्र बन गया है। जर्जर पड़ चुका सांगठनिक ढांचा अगर एक बार फिर से जिंदा होने लगा है। तो यह इसी टीम के परिश्रम का नतीजा है। यह टीम सीधे तौर पर कांग्रेस महासचिव और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी के निर्देशन में काम करती है। इसमें प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के साथ सांगठनिक सचिव अनिल यादव, अल्पसंख्यक विभाग के चेयरमैन शाहनवाज आलम, सूबे के हेडक्वार्टर प्रशासन प्रभारी दिनेश सिंह और सोशल मीडिया प्रभारी मोहित पांडेय की भूमिका बेहद अहम है। इनमें सांगठनिक स्तर पर हो रहे बदलावों में संगठन सचिव होने के नाते अनिल यादव की भूमिका बेहद अहम हो जाती है।

 साल भर की कांग्रेस की गतिविधियों पर अगर नजर दौड़ाएं तो इस साल यूपी की सियासत में कांग्रेस पार्टी को कई नज़रिए से राजनीतिक टिप्पणीकारों ने देखा। साल में शुरू हुआ किसान जन जागरण अभियान अपने उरूज पर था कि कोरोना की वजह से उसे रोकना पड़ गया। पूरी पार्टी लोगों की सेवा में उतर गई। हाईवे पर टास्क फोर्स बनाकर पैदल आ रहे मजदूरों की मदद शुरू हुई। हेल्पलाइन नंबर जारी हुए। लगभग 1 करोड़ 20 लाख लोगों तक कांग्रेसजनों ने खाना, राशन पहुंचाया। साझी रसोई घर संचालित हुए। सिर्फ इतना ही नहीं प्रदेश अध्यक्ष को कोरोना में जेल भेज दिया गया। महासचिव प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह पर फ़र्ज़ी मुकदमे दर्ज हुए।

एक तरफ सेवा तो दूसरी तरफ सड़कों पर कांग्रेस खूब लड़ती नज़र आई। प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन शाहनवाज़ आलम, प्रवक्ता अनूप पटेल समेत कई नेताओं को आंदोलनों में जेल जाना पड़ा।

सड़क पर संघर्ष के साथ ही पार्टी संगठन को मजबूत करने की रणनीति पर भी काम कर रही है। और सूबे में कैसे एक जीवंत संगठन खड़ा किया जाए यह प्रदेश नेतृत्व की चिंता का विषय बना हुआ है। लिहाजा इस बात का बराबर ख्याल रखा जा रहा है कि पदाधिकारी कहीं ऊपर से न थोपे जाएं। और चयन में बिल्कुल पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की गारंटी हो। संगठन के स्तर पर तैयारियों और उसके ढांचे के बारे में कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में प्रदेश पदाधिकारियों की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय है। हर पदाधिकारी को निश्चित प्रभार दिया गया है। इसी तर्ज पर जिला कमेटियां बनी हैं और हर पदाधिकारी की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय की गई है। हर जिले में पांच उपाध्यक्ष, एक कोषाध्यक्ष, एक प्रवक्ता और हर विधानसभा के स्तर पर महासचिव और ब्लाक के हिसाब से जिला सचिव बनाये गए हैं।

दिलचस्प बात यह है कि इन सारी सांगठनिक कवायदों में पूरा जोर जमीनी स्तर पर संगठन को खड़ा करना है। उस लिहाज से ब्लाक बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। बताया जा रहा है कि 2 अक्तूबर के बाद कांग्रेस ने संगठन सृजन अभियान का दूसरा चरण शुरू किया जिसमें 823 ब्लाकों में उसने नए ब्लाक अध्यक्षों की चयन की प्रकिया शुरू की। बाकायदा इस पर प्रदेश कमेटी ने सर्कुलर जारी करके राणनीति बनायी है। हर ब्लाक पर दो दो मीटिंग करके बाकायदा तीन-तीन नामों का पैनल बनाकर प्रदेश मुख्यालय भेजा गया है।  

इस मामले में सबसे खास बात यह रही कि ब्लाक अध्यक्षों के पैनल को भी ऊपरी पदाधिकारियों की नजरों से गुजरना पड़ा है। और फिर निचले स्तर के पदाधिकारियों से राय मशविरा के बाद पैनल में से एक नाम को फाइनल किया जा रहा है। और स्पष्ट तरीके से अगर बात की जाए तो ब्लॉक अध्यक्षों के चयन बैठकों में शामिल लोगों से रायसुमारी की गई। इसके साथ ही प्रदेश उपाध्यक्ष, महासचिव और प्रदेश सचिव ने स्क्रूटनी करके ब्लाक अध्यक्षों का चयन किया है। बताया जा रहा है कि प्रदेश के 80 फीसदी ब्लाकों में सामाजिक- राजनीतिक समीकरणों के आधार पर नए ब्लाक अध्यक्षों का चयन हो गया है।

हमेशा सड़क पर आंदोलन करते हुए दिखने वाले प्रदेश अध्यक्ष लल्लू आज कल अगर दिख नहीं रहे हैं तो इसके पीछे वही एक वजह है संगठन। यह अभी भी सूबे के नेतृत्व के लिए प्राथमिकता का विषय बना हुआ है। बताया जा रहा है कि प्रदेश के सारे पदाधिकारी इस समय संगठन निर्माण के काम में व्यस्त हैं। इसमें प्रदेश अध्यक्ष से लेकर ब्लाक अध्यक्ष तक सभी शामिल हैं।

इस मसले को और स्पष्ट करते हुए संगठन सचिव अनिल यादव ने बताया कि “प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू लगभग 20 दिनों से लगातार प्रदेश के दौरे पर हैं। जिसमें वे 16 जिलों की न्याय पंचायत स्तर की बैठकों में शामिल होकर ब्लाक कांग्रेस कमेटी और न्याय पंचायत कमेटियों के गठन में शामिल हो रहे हैं। प्रदेश में 2300 न्याय पंचायतों का गठन हो चुका है। जल्दी ही प्रदेश की 8000 न्याय पंचायतों में कांग्रेस अपनी 21 सदस्यों की कमेटियों का गठन पूरा कर लेगी”।

इतना ही नहीं इन सारी कवायदों में सूबे के नेतृत्व की यह कोशिश है कि कैसे पार्टी के बड़े नेताओं को इन सारी गतिविधियों में शामिल कराया जाए। उसी के तहत न केवल लोगों की जवाबदेहियां तय की जा रही हैं। बल्कि हर स्तर पर उसको सुनिश्चित करने की भी रणनीति बनायी गयी है। इसको और विस्तार से बताते हुए अनिल यादव ने कहा कि “संगठन में तेजी लाने के लिए कांग्रेस आगामी दिनों में हर जिले में 15 दिवसीय प्रवास की योजना बना रही है, जिसमें पार्टी के पदाधिकारी निश्चित जिले में रहकर संगठन के निर्माण की प्रकिया को अन्तिम रूप देंगे। फिलहाल पूरी पार्टी संगठन निर्माण की प्रक्रिया में बहुत व्यस्त है। कांग्रेस का लक्ष्य है कि प्रदेश की 60 हज़ार ग्राम सभाओं पर ग्राम कांग्रेस कमेटियों का गठन जल्द पूरा कर लिया जाए”।

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