Friday, April 19, 2024

उत्तराखंड: सवर्ण छात्रों ने दलित ‘भोजन माता’ के हाथ से बना खाना खाने से किया इंकार, महिला नौकरी से हटा दी गई

आज मनुवाद इस मुकाम पर पहुंच गया है कि जो नई पीढ़ी विज्ञान के तमाम संसाधनों का पुरजोर इस्तेमाल करने में कोई गुरेज नहीं कर रही है, वही सैकड़ों साल पुरानी परम्पराओं के लबादे को छोड़ने के लिए भी तैयार नहीं है। आज भी दलितों के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा जो इतिहास के पन्नों में दबी तमाम अविश्वसनीय घटनाओं की याद को ताजा कर देता है। 

इस देश और समाज के लिए इससे ज्यादा खतरनाक और क्या हो सकता है कि शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र ‘भोजन माता’ के हाथ से बना खाना इसलिए इन्कार कर दें कि भोजन बनाने वाली महिला दलित है।

खबर के मुताबिक उत्तराखंड के चंपावत के सूखीढांग इंटर कॉलेज में एक दलित महिला की नियुक्ति ‘भोजन माता’ के पद पर हुई। जिससे अगड़ी जाति के छात्र इस बात से इतना नाराज हुए कि महिला के हाथ से बना खाना खाने से ही इन्कार कर दिए। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि छात्र इसलिए नाराज हुए क्योंकि महिला की नियुक्ति गलत तरीके से हुई थी। लेकिन भोजन माता की नियुक्ति से छात्रों का क्या लेना-देना, उन्हें तो खाना मिलने से मतलब होना चाहिए। 

रिपोर्ट के मुताबिक यहां अगड़ी जाति के छात्रों ने दलित महिला के हाथ से बना मिड-डे मील खाने से इन्कार कर दिया। बाद में महिला की नौकरी भी चली गई। लेकिन कोई राय बनाने से पहले घटनाक्रम जान लेते हैं।

हिन्दुस्तान अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, राजकीय इंटर कॉलेज सूखीढांग में 230 छात्र पढ़ते हैं। इनमें से क्लास 6 से 8वीं तक के 66 बच्चे मिड-डे मील के दायरे में आते हैं। लेकिन सोमवार, 20 दिसंबर को केवल एससी वर्ग के 16 छात्रों ने मिड-डे मील खाया। वहीं सामान्य वर्ग का कोई भी छात्र नहीं आया क्योंकि एससी वर्ग की ‘भोजन माता’ ने खाना तैयार किया था। ऐसे कई बच्चे घर से ही टिफिन लेकर आए थे। वहीं कइयों ने खाना ही नहीं खाया। इसके बाद विवाद हुआ। स्थानीय मीडिया में खबरें छपीं।

इसके अगले दिन स्कूल की मैनेजमेंट कमेटी, अभिभावक संघ और अन्य लोगों की बैठक हुई। एडी बेसिक अजय नौटियाल, मुख्य शिक्षा अधिकारी आरसी पुरोहित, बीईओ अंशुल बिष्ट ने जांचकर भोजन माता की नियुक्ति को ही अवैध करार दिया और इसे रद्द कर दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दिनों पहले स्कूल ने भोजन माता की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था। इसके लिए 10 महिलाओं ने आवेदन किया। ग्रामीणों के मुताबिक अभिभावक संघ और प्रबंधन समिति की मौजूदगी में सर्वसम्मति से खुली बैठक में पुष्पा भट्ट को भोजन माता नियुक्त किया गया। लेकिन आरोप है कि इस बीच दूसरी महिला को भोजन माता नियुक्त कर दिया गया। हालांकि स्कूल प्रबंधन समिति खुली बैठक में सामान्य वर्ग की महिला की नियुक्ति को सिरे से खारिज कर रहा है। उनका कहना है कि शासनादेश के अनुरूप ही भोजन माता की नियुक्ति की गई। लेकिन कुछ लोगों को ये पसंद नहीं आया। जिसके कारण लोग विरोध कर रहे हैं।

अमर उजाला की खबर के मुताबिक, अनुसूचित जाति की महिला को भोजन माता बनाए जाने से सामान्य वर्ग के छात्रों ने उनके हाथ का खाना खाने से इन्कार कर दिया। इसके बाद मुख्य शिक्षा अधिकारी ने खंड शिक्षा अधिकारी को मामले की जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा।

मुख्य शिक्षा अधिकारी ने बताया कि खुली बैठक में दोनों पक्षों को सुनने और अभिलेखों की जांच में भोजन माता की नियुक्ति अवैधानिक पाई गई। इसलिए नियुक्ति रद्द कर दी गई। अब जल्द ही नए सिरे से विज्ञप्ति निकालकर भोजन माता की नियुक्ति होगी।

बताते चलें कि राजकीय इंटर कॉलेज सूखीढांग में पहले भोजन माता के रूप में शकुंतला देवी कार्यरत थीं, जिनकी उम्र के 60 वर्ष पूरे होने के बाद पीटीए और एसएमसी की बैठक में भोजन माता के तौर पर पुष्पा भट्ट की नियुक्ति का निर्णय लिया गया था। अब आरोप है कि प्रधानाचार्य प्रेम आर्या ने बैठक में पारित प्रस्ताव के उलट सुनीता देवी पत्नी प्रेमराम को भोजन माता के रूप में तैनात कर दिया। बीते शनिवार को मामला उस समय तूल पकड़ गया, जब सामान्य वर्ग के अभिभावकों ने स्कूल में हंगामा किया।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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