Saturday, April 27, 2024

यह केवल इत्तफाक है कि मैं जिंदा जेल से बाहर आ गया: साईबाबा

नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एसएन साईबाबा ने नागपुर जेल से रिहा होने के बाद अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में कहा है कि “यह केवल इत्तफाक है कि मैं जिंदा जेल से बाहर आ गया”।

आपको बता दें कि 5 मार्च को बांबे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साईबाबा समेत पांच दूसरे लोगों को ‘आतंकवाद’ के सभी आरोपों से बरी कर दिया था। शरीर से 90 फीसदी अक्षम और ह्वील चेयर के सहारे चलने वाले साईबाबा ने कहा कि वह दूसरे के सहारे के बगैर एक इंच भी नहीं चल सकते हैं। उन्होंने कहा कि मैं शौचालय नहीं जा सकता हूं। मैं बगैर सहायता के स्नान तक नहीं कर सकता। और मैं जेल में बगैर किसी सहायता के इतने दिनों तक रहा।

इसी दिन 2017 को गढ़चिरौली की कोर्ट ने उनके समेत चार दूसरे लोगों- प्रशांत राही, महेश टिर्की, हेम केशव दत्त मिश्रा और पांडु नरोटे को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। नरोटे जेल में काफी बीमार हो गए थे और अगस्त, 2022 में उनकी मौत हो गयी। नरोटे उस समय केवल 33 साल के थे।

जेल में रहने के दौरान साई बाबा को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। उनकी पत्नी वसंत कुमारी और उनके वकीलों ने बहुत बार हिरासत के दौरान उनके साथ किए जाने वाले व्यवहार की शिकायत की थी। वसंत कई बार सरकार और कोर्ट से उनको रिहा करने की अपील कर चुकी हैं। उनको इस बात का डर था कि अगर उन्हें तुरंत रिहा नहीं किया जाएगा तो वह जेल में ही मर जाएंगे। साईबाबा ने आज यानि गुरुवार को मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी हालत जेल में लगातार खराब होती जा रही थी। 

यह दूसरी बार है जब हाईकोर्ट ने उन्हें बरी किया है। 14 अक्तूबर, 2022 को एक डिवीजन बेंच जिसमें जस्टिस रोहित बी देव और अनिल पनसारे शामिल थे, ने गढ़चिरौली फैसले को उलट दिया था। सरकार तुरंत सुप्रीम कोर्ट पहुंच गयी थी। और संयोग से हाईकोर्ट के फैसले को बदल दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केस की फिर से सुनवाई की गयी। और एक बार फिर उसी कोर्ट ने जिसमें जस्टिस विनय के जोशी और जस्टिस वाल्मीकि के मेनेज जज थे, साईबाबा और दूसरों को रिहा कर दिया। 

निचली अदालत में ट्रायल को नागपुर के वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता सुरेंद्र गाडलिंग देख रहे थे। जैसे ही गढ़चिरौली में अदालती सुनवाई पूरी हो गयी। गाडलिंग को एलगार परिषद मामले गिरफ्तार कर लिया गया। गुरुवार को साईबाबा ने कहा कि उनके वकील गाडलिंग को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह मेरे मामले को देख रहे थे। उन्होंने कहा कि एक वकील जो हमेशा न्याय के लिए लड़ा है जो इलाके के हजारों दलितों और आदिवासियों का कोर्ट में प्रतिनिधित्व किया है वह जेल में है। अगर मेरे मामले में पूरा न्याय हासिल होना है तो गाडलिंग को रिहा होना चाहिए। 

साईबाबा ने अपने वकीलों की उस टीम को भी धन्यवाद दिया जिसने हाईकोर्ट में उनका बचाव किया। उन्होंने कहा कि एक बार नहीं बल्कि दो बार उन्होंने हाईकोर्ट में मेरा बचाव किया। यह उनके लिए सरल नहीं था। क्योंकि प्रेस कांफ्रेंस से कुछ घंटे पहले ही साईबाबा को रिहा किया गया था। उन्होंने कहा कि अपने केस के मामले में उन्हें फैसले को अभी पढ़ पाने का मौका नहीं मिला है। यह पूछे जाने पर क्या वह कानूनी तौर पर सरकार से मुआवजे की मांग करेंगे उन्होंने कहा कि मेरे स्वास्थ्य की स्थिति अच्छी नहीं है। मैंने इसके बारे में सोचा नहीं है। 

साईबाबा ने नटोरे के बारे में भी बताया जिसकी जेल में पर्याप्त इलाज न होने के चलते मौत हो गयी थी। उन्होंने कहा कि एक युवा शख्स जो एक बेहद आदिम जाति से आता था, उसे हम लोगों के साथ जेल में रहने के लिए मजबूर किया गया। उसके पास एक युवा बेटी थी। उसे बेहद पीड़ा झेलनी पड़ी। क्या सचमुच में उसके साथ न्याय हुआ? उन्होंने पूछा। नरोटे को स्वाइन फ्लू हुआ था। उसके परिजन और वकीलों ने उसके सही समय पर इलाज न होने का आरोप लगाया था जिसका नतीजा उसकी मौत के रूप में सामने आया। 

हालांकि हाईकोर्ट ने फैसला पांच मार्च को ही सुना दिया था लेकिन साईबाबा को जेल से आज रिहा किया गया। उनके वकील निहाल सिंह राठौड़ ने इसके लिए नागपुर सेंट्रल जेल के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया। 

राठौड़ ने वायर को बताया कि हम लोगों को पहले गढ़चिरौली कोर्ट में कागजी कार्रवाई पूरी करनी थी उसके बाद रिहाई के कागजों को जेल के अधिकारियों को सौंपा जाना था। जब हमने 6 मार्च को शाम 6.15 पर उसे सौंपा तो हमें बताया गया कि उस दिन के रिहाई का समय समाप्त हो गया है। इस केस के अलावा दूसरे कैदियों की रिहाई हालांकि रात 8 बजे तक होती है। राठौड़ को नागपुर जेल के सुपरिटेंडेंट को एक लिखित शिकायत करनी पड़ी। हालांकि 7 मार्च को रिहाई की सारी औपचारिकताएं पूरी हो गयीं। 

साईबाबा और राही को सुबह ही रिहा कर दिया गया। मिश्रा जिन्हें कोल्हापुर जेल में बंद किया गया था, को दोपहर में रिहा किया गया। जबकि विजय और महेश की रिहाई के लिए शाम तक प्रक्रिया जारी थी। मिश्रा के माता-पिता जो देहरादून से यहां आए थे, कोल्हापुर जाने से पहले मुंबई में रुक गए थे। जब उन्हें पता चला कि उनके वकील गाडलिंग को मुंबई की एनआईए कोर्ट में पेश किया जाना है, तो उन्होंने रुक कर गाडलिंग से मिलने का फैसला लिया। फिर कुछ समय रुक कर वो लोग कोल्हापुर के रवाना हो गए। यह बात एलगार परिषद के एक शख्स ने बतायी।

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