उत्तराखंड: मॉनसून की पहली बारिश से ही जिंदगी अस्त-व्यस्त

देहरादून। आपदा प्रदेश कहे जाने वाले उत्तराखंड में मॉनसून का पहला दिन ही भारी पड़ गया। मौसम विभाग ने 24 जून की रात को मानसून उत्तराखंड पहुंचने की घोषणा की। हालांकि बारिश का दौर राज्य में दो दिन पहले से ही शुरू हो गया था। मॉनसून के पहले 24 घंटे के दौरान ही राज्य में सामान्य से 102 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई। हरिद्वार से लेकर केदारनाथ तक कहीं जलभराव तो कहीं नदी-नालों में उफान और भूस्खलन की घटनाएं सामने आई हैं। उत्तरकाशी में बिजली गिरने से एक युवक की मौत हुई, जबकि तीन अन्य बुरी तरह से झुलस गये। उत्तरकाशी में ही बिजली गिरने की एक अन्य घटना में एक युवती झुलस गई और चार मवेशियों की मौत हो गई।

रुद्रप्रयाग जिले में सोनप्रयाग के पास कार पर मलबा गिरने से कार ड्राइवर की मौत हो गई। केदारनाथ पैदल मार्ग पर भारी बारिश के बीच पहाड़ी नालों में उफान आने से तीर्थयात्री जगह-जगह रुक गये। प्रशासन ने केदारनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों को गुप्तकाशी, फाटा और अन्य निचले इलाकों में रोक दिया है। भूधंसाव से जूझ रहे जोशीमठ के आसपास भी भारी बारिश के कारण नदी-नालों में उफान आने और सड़कें बंद हो जाने की खबरें आई हैं। मौसम विभाग ने अगले कुछ दिनों के लिए अलर्ट जारी किया है।

पिथौरागढ़-लिपूलेख मार्ग कई जगहों पर बंद हो गया है। तवाघाट के पास रोड पर बड़े-बड़े बोल्डर आ गये हैं, जबकि एक जगह मार्ग 15 मीटर तक बह गया है। इस सड़क पर इन दिनों कैलास मानसरोवर यात्रा चल रही है। सूचना है कि 350 कैलास मानसरोवर यात्री गुंजी सहित उच्च हिमालयी क्षेत्रों में कई जगह फंस गये हैं। इन क्षेत्रों में उन्हें जरूरी सुविधाएं पहुंचाने और निकट के पड़ाव तक पहुंचाने में परेशानी हो रही है। मौजूदा स्थिति को देखते हुए मानसरोवर यात्रा पर रवाना हो रहे 18वें दल को धारचूला में ही रोक दिया गया है। सरकारी सूचना के अनुसार 27 जून की सुबह तक राज्य में 300 से ज्यादा सड़कें बंद हैं। इनमें राष्ट्रीय राजमार्ग और राज्य राजमार्ग भी शामिल हैं।

उत्तरकाशी जिले में पुरोला के पास कंडियाल गांव में बिजली गिरने से चार लोग बुरी तरह झुलस गये। चारों को सीएचसी पुरोला ले जाया गया, जहां एक युवक की मौत हो गई। बाकी तीन की हालत खतरे से बाहर बताई गई है। घटना उस समय हुई जब ये लोग धान की रोपाई कर रहे थे। प्रशासन ने मृत युवक के परिजनों को 4 लाख रुपये की मुआवजा राशि दी है। अस्पताल में भर्ती युवकों का उपचार भी सरकारी खर्च पर करने की बात कही गई है। उत्तरकाशी के ही जरड़ा गांव में बिजली गिरने से चार पशुओं की मौत हो गई। पशुओं के साथ गई युवती भी इस घटना में झुलस गई। युवती को अस्पताल में भर्ती करवाया गया है।

बेतरतीब तरीके से पहाड़ काटकर चौड़ी की गई तथाकथित ऑलवेदर रोड फिर लोगों की जान लेने लगी है। पिछले कुछ वर्षों से हर बरसात में चारधाम मार्ग में मलबा गिरने से लोगों की मौत हो रही है। रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मोटर मार्ग पर सोनप्रयाग के पास बारिश के दौरान सड़क के किनारे खड़ी एक कार पर मलबा गिर गया। इस घटना में कार ड्राइवर की मौत हो गई। पिछले दिनों चमोली जिले में पीपलकोटी के पास भी एक ऐसी ही घटना में कार ड्राइवर की मौत हो गई थी। घटना उस समय हुई, जब मलबा आ जाने के कारण सड़क बंद थी और दोनों तरफ गाड़ियों की लंबी कतार लग गई थी। हादसे का शिकार हुई कार में बैठे यात्री लंबा जाम होने के कारण कार से उतरकर आसपास टहल रहे थे।

बारिश के कारण चारधाम यात्रा मार्ग सहित राज्य की कई अन्य सड़कें बंद हो गई हैं। इन सड़कों को जल्द से जल्द खोलने का दावा किया जा रहा है। लगातार हो रही बारिश के कारण केदारनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों को गुप्तकाशी, फाटा और सोनप्रयाग जैसे निचले क्षेत्रों में ही रोक दिया गया है। इस दौरान केदारनाथ पैदल मार्ग पर मौजूद यात्रियों को जान जोखिम में डालकर यात्रा करनी पड़ी।

हालांकि पैदल मार्ग पर सभी संवेदनशील जगहों पर पुलिस और एसडीआरएफ के जवान तैनात किये गये हैं, जो तीर्थयात्रियों को दूसरी तरफ पहुंचा रहे हैं। भारी बारिश के दौरान पैदल मार्ग पर कई जगहों पर पहाड़ी नाले उफना गये। इससे तीर्थयात्रियों को जगह-जगह रुकना पड़ा है। केदारनाथ मार्ग पर सिंगोली भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना के कुंड नामक जगह पर बनाये गये बांध में सीमा से ज्यादा जलभराव हो जाने के कारण बांध से अतिरिक्त पानी छोड़ दिया गया, जिससे मंदाकिनी के जलस्तर में बढ़ोत्तरी हो गई।

भूधंसाव से प्रभावित जोशीमठ में हुई बारिश के कारण लोग दहशत में हैं। हालांकि बारिश के दौरान यहां नई दरारें आने की कहीं से कोई सूचना नहीं मिली है। लेकिन कभी भी फिर से भूधंसाव होने की आशंका बनी हुई है। इस बीच जनवरी से राहत कैंपों में रह रहे कई परिवार अपने असुरक्षित घरों में लौट आए हैं। ऐसे में तेज बारिश की स्थिति में घरों के ढहने की भी आशंका बनी हुई है। प्रशासन की ओर से अब तक न तो लोगों के रहने की कोई स्थाई व्यवस्था की गई है और न ही राहत राशि का भुगतान हुआ है। जिन फाइबर के घरों को लेकर प्रशासन की ओर से बड़े-बड़े दावे किये गये थे, उनमें से एक भी घर किसी प्रभावित व्यक्ति को नहीं मिल पाया है।

पहली बारिश का कहर मैदानी जिले हरिद्वार और देहरादून में भी देखने को मिला। हरिद्वार में कई जगहों पर जलभराव की स्थिति बन गई और कई जगहों पर नालों में उफान आ गया। निचली बस्तियों में लोगों के घरों में पानी घुस गया। राजधानी देहरादून में भी स्थितियां खराब रही। यहां स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत विभिन्न योजनाओं के लिए खुदाई की गई है। पूरा शहर पिछले तीन वर्षों से अस्त-व्यस्त है। ऐसे में पहली बारिश के कारण दून शहर अस्त-व्यस्त रहा। कई रिहायशी बस्तियों में सड़कों पर पानी भर जाने के कारण लोगों का आना-जाना बंद हो गया।

सामान्य से 102 प्रतिशत ज्यादा बारिश

मॉनसून के पहले दिन उत्तराखंड में सामान्य से 102 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई। 25 जून की सुबह से 26 जून की सुबह तक 24 घंटे के दौरान राज्य में 20.2 मिमी बारिश दर्ज की गई। जबकि सामान्य रूप से 10.0 मिमी बारिश होती है। मॉनसून के पहले दिन टिहरी जिले में सबसे ज्यादा 69.9 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य से 753 प्रतिशत ज्यादा है। देहरादून जिले में सामान्य से 412 प्रतिशत ज्यादा 53.7 मिमी ज्यादा बारिश हुई। पौड़ी में सामान्य से 201 प्रतिशत और हरिद्वार में 218 प्रतिशत ज्यादा बारिश दर्ज की गई।

हालांकि इस दौरान कुछ जिलों में सामान्य से कम बारिश भी दर्ज की गई। मानसून के पहले दिन बागेश्वर जिले में सबसे कम 2.0 मिमी बारिश हुई, जो सामान्य से 73 प्रतिशत कम है। पिथौरागढ़ में सामान्य से 24 प्रतिशत कम 7.6 मिमी, चमोली में सामान्य से 7 प्रतिशत कम 5.6 मिमी, ऊधमसिंह नगर में सामान्य से 6 प्रतिशत कम 10.5 मिमी और अल्मोड़ा में सामान्य से 2 प्रतिशत कम 7.3 मिमी बारिश मानसून के पहले 24 घंटे के दौरान दर्ज की गई।

जून के महीने में राज्य में हुुई बारिश के आंकड़े देखें तो मानसून के पहले 24 घंटों के दौरान अच्छी बारिश होने और उससे पहले दो दिन में प्री मॉनसून के अच्छी बौछारें पड़ने के बावजूद राज्य के अब तक बारिश का औसत सामान्य से 43 प्रतिशत कम है। पहली जून से 23 जून तक राज्य में सामान्य रूप से 115.6 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार सिर्फ 66.0 मिमी बारिश ही दर्ज की गई है। इस दौरान राज्य के सभी जिलों में सामान्य से कम बारिश पड़ी है।

पौड़ी और नैनीताल जिलों में सामान्य से 83 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई। पौड़ी में इस दौरान 95.9 मिमी बारिश होती है, लेकिन सिर्फ 15.8 मिमी बारिश हुई। इसी तरह नैनीताल जिले में सामान्य रूप से इस अवधि में 172.5 मिमी बारिश होती है, लेकिन 29.4 मिमी बारिश दर्ज की गई। अल्मोड़ा में सामान्य से 74 प्रतिशत कम 26.7 मिमी, ऊधमसिंह नगर में सामान्य से 70 प्रतिशत कम 36.4 मिमी, चम्पावत और हरिद्वार में सामान्य से 67 प्रतिशत कम बारिश हुई। देहरादून में अन्य जिलों की तुलना में अच्छी बारिश हुई। यहां सामान्य से 7 प्रतिशत कम 113.9 मिमी बारिश दर्ज की गई।

स्थाई आपदा, अस्थाई प्रबंधन

उत्तराखंड में हर बरसात में आमतौर पर कोई न कोई बड़ी आपदा आती है। छोटी-छोटी आपदाएं तो बरसात के सीजन के साथ ही अन्य सीजन में भी आती हैं। रोड एक्सीडेंट और आग लगने जैसी आपदाएं भी उत्तराखंड में आम बात हैं। लेकिन, इन आपदाओं से निपटने के लिए राज्य को जो सिस्टम है, वह पूरी तरह से अस्थाई है। 2013 की आपदा के बाद राज्य में आपदा मंत्रालय का गठन किया गया। राज्य स्तरीय नियंत्रण केन्द्र के साथ ही सभी जिलों में इस तरह के केन्द्र खोले गये। हर जिले में आपदा प्रबंधन अधिकारी और अन्य स्टाफ रखा गया। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई। उसमें भी अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त किये गये। लेकिन, सभी अधिकारी और कर्मचारी संविदा पर नियुक्त किये गये हैं।

आपदा प्रबंधन करने वाले इन संविदा अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ अधिकारियों द्वारा मनमानी करने के मामले लगातार सामने आते रहे हैं। एक बयान देने के लिए कुछ वर्ष पहले राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में संविदा पर कार्यरण निदेशक को लंबे समय के लिए सस्पेंड पर दिया गया। 10 वर्ष से काम करने वाले एक जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी का कॉन्ट्रेक्ट रिन्यू करने के बजाय नई नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया गया। वह भी सिर्फ इसलिए कि उसने एक बैठक में आपदा प्रबंधन के लिए कोई सुझाव दे दिया था और डीएम को कतई पसंद नहीं कि संविदा पर काम करने वाला कोई व्यक्ति उनको सुझाव दे। हालांकि कुछ महीने घर बिठाने के बाद आपदा प्रबंधन अधिकारी को फिर से ज्वाइंन करवा दिया गया।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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