इस 2025 में 13 जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ मेला अपने आखिरी दिन 26 फरवरी तक विवादास्पद बना रहा है। जहां एक तरफ जुटी बेहिसाब भीड़ और उस भीड़ में मची भगदड़ से हुई मौतों का आंकड़ा आज भी संदेहास्पद है वहीं गंगा के पानी में पाए गए फीकल कोलीफॉर्म का मसला भी काफी चर्चे में है।
दूसरी तरफ आस्था के महाकुंभ में डुबकी लगाकर लौटने वाले सत्तर फीसदी लोगों को कई बीमारियों ने आ घेरा है। ‘पत्रिका’ की रिपोर्ट की माने तो आस्था के महाकुंभ में डुबकी लगा चुके 70 फीसदी लोगों में संक्रामक बीमारियों के कई मामले सामने आ रहे हैं। खास तौर पर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण (उल्टी-दस्त), वायरल बुखार और सांस संबंधी संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। वहीं स्वाद के साथ सूंघने की शिकायत सहित लोगों में बलगम वाली खांसी से ज्यादा परेशानी देखी जा रही है। जिसे ठीक होने में पंद्रह-बीस दिन के समय लग रहे हैं।

इसकी गंभीरता को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने सख्ती दिखाते हुए जहां यूपी सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है वहीं प्रयागराज मेला प्राधिकरण और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी नोटिस जारी किया है। दरअसल, महाकुंभ में खुले में शौच को लेकर निपुण भूषण की ओर से एक याचिका दायर की गई थी।
दायर याचिका में कहा गया है कि स्थानीय अधिकारियों द्वारा दावा किया गया कि उन्होंने मल मूत्र समेत सभी गंदगी को साफ करने के लिए अत्याधुनिक बायो-टॉयलेट्स लगाए हैं, लेकिन इन सुविधाओं की कमी या साफ-सफाई की कमी की वजह से ज्यादतर लोग गंगा नदी के किनारे खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं। याचिका में आरोप लगाया गया है कि लाखों आम लोग और परिवार पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में गंगा नदी के किनारे खुले में शौच करने को मजबूर हैं। याचिकाकर्ता ने नदी में खुले में शौच करने के वीडियो क्लिप युक्त पेनड्राइव भी अटैच की है।
बता दें कि हाल ही में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण की मुख्य पीठ के समक्ष रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें चल रहे महाकुंभ मेले के दौरान प्रयागराज (यूपी) में गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता के बारे में चिंताजनक निष्कर्ष सामने आने की बात कही गई है।
रिपोर्ट में बताया गया कि महाकुंभ के दौरान देश भर से लोग जहां डुबकी लगा रहे हैं, वहां नदी के पानी की जांच में फीकल कोलीफॉर्म (मानव या पशुओं के मल का मिश्रण) का उच्च स्तर पाया गया है।

बताते चलें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी में दाखिल अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि 12-13 जनवरी, 2025 को निगरानी के दौरान अधिकांश स्थलों पर जल गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं थी।
सीपीसीबी रिपोर्ट के मुताबिक प्रयागराज के अधिकांश स्थानों पर 12-13 जनवरी, 2025 को व 19 जनवरी को लॉर्ड कर्जन ब्रिज पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) अपने सामान्य मानक 3 मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर से अधिक था।
रिपोर्ट में बताया गया था कि एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) की मौजूदा क्षमताओं और व्यवस्थाओं के बावजूद करीब 53 एमएलडी (माप की एक बड़ी इकाई जिसका उपयोग अपशिष्ट जल और जल उपचार प्रक्रियाओं में उपयोग किए जाने वाले पानी की मात्रा को व्यक्त करने के लिए किया जाता है) सीवेज बिना उपचार के सीधा गंगा में गिरेगा।
16 फरवरी, 2025 को एनजीटी में सीपीसीबी के वकील ने अदालत को बताया कि सभी एसटीपी अपनी क्षमताओं से कई गुना अधिक सीवेज हासिल कर रहे हैं और यह स्वाभाविक है कि वह प्रभावी उपचार नहीं कर रहे, यानी सीवेज सीधा गंगा में जा रहा है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को आश्वासन दिया है कि यदि प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान कथित खुले में शौच करने के सबूत मिलते हैं तो उसके विषय में कार्रवाई की जाएगी।
इस मामले में 24 फरवरी, 2025 को सुनवाई हुई थी और एनजीटी ने आवेदक निपुण भूषण से उन सभी सबूतों को यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव के समक्ष पेश करने को कहा, जो उनके आरोपों का समर्थन करते हों। इन सबूतों के मिलने पर उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी आरोपों की पुष्टि के लिए मौके का निरीक्षण करेंगे और सच क्या है, इसका पता लगाएंगे।अगर यह आरोप सही पाए गए तो तुरंत कार्रवाई की जाएगी और एक माह के भीतर ट्रिब्यूनल के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट सौंपी जाएगी। आवेदक का आरोप है कि महाकुम्भ के दौरान साफ-सुथरे जैव-शौचालयों की कमी के कारण खुले में शौच की समस्या उत्पन्न हुई। कई शौचालय चालू हालात में नहीं थे।
हालांकि सबूत के तौर पर आवेदक ने पेनड्राइव में दो वीडियो फुटेज पेश किए हैं, इनके अलावा कोई अन्य सबूत पेश नहीं किया गया है। अदालत ने पाया कि वीडियो फुटेज में कोई भौगोलिक निर्देशांक नहीं थे। वहीं उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा कि उन्हें वीडियो रिकॉर्डिंग वाली पेन ड्राइव नहीं मिली है।
सुनवाई के दौरान आवेदक ने टाइम्स ऑफ इंडिया और डाउन टू अर्थ में छपी दो रिपोर्टों का भी हवाला दिया है। हालांकि उन्हें साक्ष्य के तौर पर रिकॉर्ड में नहीं रखा गया है।एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि आवेदन में ऐसा मुद्दा उठाया गया है जो समय के लिहाज से संवेदनशील है। ऐसे में किसी सक्षम अधिकारी को इन दावों की पुष्टि के लिए जमीनी स्तर पर पड़ताल करनी चाहिए, ताकि सही स्थिति सामने आ सके।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने 21 फरवरी, 2025 को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी और एक वैज्ञानिक के हवाले से कहा कि गंगा की शुद्धता आज भी बरकरार है।
इस प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक “पद्मश्री डॉक्टर अजय कुमार सोनकर ने पांच प्रमुख स्नान घाटों, जिनमें संगम नोज और अरैल (महाकुंभ नगर) शामिल हैं, से गंगा जल के नमूने एकत्र किए गए थे। इन नमूनों को उनकी प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोपिक जांच के लिए भेजा गया। आश्चर्यजनक रूप से, करोड़ों श्रद्धालुओं के गंगा स्नान करने के बावजूद, जल में किसी भी प्रकार के बैक्टीरिया की वृद्धि नहीं देखी गई, न ही इसके पीएच स्तर में कोई गिरावट आई।”
जबकि उत्तर प्रदेश सरकार के इस दावे के विपरीत 3 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि महाकुंभ में विशेष स्नान वाली तारीखों के दिन भी संगम समेत अन्य छह स्थानों पर पानी में न सिर्फ उच्च जैव रासायनिक मांग (बीओडी) पाई गई बल्कि फीकल कोलिफॉर्म भी अपने सामान्य मानकों से कई गुना अधिक पाया गया। इन आंकड़ों के मुताबिक गंगा घाट समेत प्रमुख संगम घाट तक में प्रमुख स्नान दिवस के दिन घाट प्रदूषित रहे।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की गाईडलाईन्स के अनुसार, अगर मल से उत्पन्न कोलीफार्म की मात्रा, प्रति 100 मिलीलीटर में 2,500 मिलियन हो तो वह पानी नहाने के लिए भी उपयुक्त नहीं होता है।
जबकि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार संगम घाट पर, मल से उत्पन्न कोलीफॉर्म की मात्रा प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 12,500 मिलियन थी और शास्त्री पुल पर वह प्रति 100 मिलीलीटर पानी में 10,150 थी। यानी कुंभ के दौरान गंगा का पानी पीने के लिए क्या नहाने के लिए भी उपयुक्त नहीं था।
सीपीसीबी ने 3 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि 12-13 जनवरी, 2025 को निगरानी के दौरान अधिकांश स्थलों पर नदी जल की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं थी।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद 16 फरवरी, 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रधान पीठ ने अपनी सख्त टिप्पणी में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को फटकारते हुए कहा था कि “आपने करोड़ों लोगों को सीवेज के दूषित पानी से नहला दिया। वह पानी जो नहाने लायक भी नहीं था, उससे लोगों को आचमन तक करना पड़ा।”
उल्लेखनीय हैं कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने 23 दिसंबर, 2024 के अपने आदेश के माध्यम से नियामक एजेंसियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि प्रयागराज में किसी भी नाले से कोई भी अनुपचारित सीवेज और ठोस अपशिष्ट गंगा और यमुना नदी में न बहाया जाए। यह आदेश M.A. No. 59/2024 (O.A. No. 310/2022, कमलेश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) के अंतर्गत दी गई थी।
बताते चलें कि अनुपचारित सीवेज, अपशिष्ट जल का वह रूप है जिसे अभी तक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में साफ़ नहीं किया गया है। वहीं, ठोस अपशिष्ट, घरों और कार्यालयों से निकलने वाला कचरा है। अनुपचारित सीवेज और ठोस अपशिष्ट दोनों ही पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
अनुपचारित सीवेज के बारे में
- इसमें हानिकारक बैक्टीरिया और रोगाणु होते हैं।
- इसमें पोषक तत्व, ठोस पदार्थ, तेल, ग्रीस, भारी धातुएं, और जहरीले रसायन होते हैं।
- यह जल निकायों में ऑक्सीजन का स्तर कम कर देता है।
- इससे जलीय जीवन को नुकसान पहुंचता है और पानी मानव उपयोग के लिए असुरक्षित हो जाता है।
ठोस अपशिष्ट
- यह हवा, पानी, और मिट्टी को दूषित करता है।
- इससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं।
- यह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है।
उक्त आदेश के तहत उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था कि नदी के पानी की गुणवत्ता हर समय पीने योग्य और नहाने के पानी जैसी हो।
सीपीसीबी ने 3 फरवरी, 2025 को अपनी रिपोर्ट में कहा कि “बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के संबंध में, 12-13 जनवरी, 2025 को अधिकांश स्थानों पर की गई निगरानी के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता स्नान के मानदंडों के अनुरूप नहीं थी, हालांकि उसके बाद ऊपरी स्थानों पर मीठे पानी के प्रवेश के कारण कार्बनिक प्रदूषण (बीओडी के संदर्भ में) कम होना शुरू हो गया”।
सीपीसीबी ने कहा कि “विभिन्न अवसरों पर निगरानी किए गए सभी स्थानों पर नदी के पानी की गुणवत्ता फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) के संबंध में स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता के अनुरूप नहीं थी। प्रयागराज में महाकुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में लोग नदी में स्नान करते हैं, जिसमें शुभ स्नान के दिन भी शामिल हैं, जिसके कारण अंततः मल की सांद्रता बढ़ जाती है।”
रिपोर्ट में सदर बाजार नाला, राजापुर नाला, एडीए कॉलोनी/ज्वाला देवी नाला, झोंधवाल नाला, शिवकुटी नाला, सलोरी नाला, ससुर खदेरी नाले की स्थिति के बारे में भी बताया गया है तथा बताया गया है कि इनमें से किसी भी नाले के इनलेट और आउटलेट में फ्लो मीटर नहीं लगा था।
हालांकि, यूपीपीसीबी एनजीटी द्वारा 23 दिसंबर, 2024 को दिए गए निर्देश के अनुसार आवश्यक व्यापक कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहा। अदालत ने कहा कि यूपीपीसीबी द्वारा दाखिल दस्तावेजों में विभिन्न स्थानों पर पाए गए फीकल और टोटल कोलीफॉर्म के उच्च स्तर को दर्शाया गया है।
बताते चलें कि पीने के पानी में ज़्यादा मात्रा में फीकल कोलीफ़ॉर्म बैक्टीरिया का होना, संदूषण का संकेत है। इससे गंभीर बीमारियां हो सकती हैं, जैसे टाइफ़ाइड बुखार, हेपेटाइटिस, गैस्ट्रोएंटेराइटिस, पेचिश, और कान के संक्रमण वगैरह। वहीं फीकल कोलीफ़ॉर्म से दूषित पानी से स्नान करने से खुजली, चकत्ते, और त्वचा संबंधी रोग हो सकते हैं।
इसमें युक्त अनुपचारित कार्बनिक पदार्थ, पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है। इससे नदियों या जलमार्गों में ऑक्सीजन की कमी हो सकती है, जिससे मछलियां और अन्य जलीय जीव मर सकते हैं। यह टोटल कोलीफ़ॉर्म बैक्टीरिया का एक उप-समूह है जो इंसानों और जानवरों के मल में पाया जाता है।
पानी में आर्सेनिक, लेड और अन्य भारी धातुओं की मात्रा मानकों से अधिक पाई गई है, जो रासायनिक संदूषण का द्योतक है, जिससे यह पानी त्वचा रोगों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि कई स्थानों पर पानी में झाग देखा गया, जो यह दर्शाता है कि औद्योगिक कचरे और सीवेज का प्रवाह नदी में हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में फैक्ट्रियों से निकलने वाला अपशिष्ट बिना उचित उपचार के सीधे नदियों में प्रवाहित हो जाता है। वहीं प्रयागराज और आसपास के इलाकों में सीवेज का पानी नदी में मिल रहा है, जिससे जल की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
दूसरी तरफ महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों के दौरान नदी में पूजन सामग्री, प्लास्टिक और अन्य कचरे का अत्यधिक मात्रा में गिरना भी प्रदूषण बढ़ाने का एक कारण रहा है।
फीकल कॉलिफ़ॉर्म के बारे में पूछे गए एक सवाल पर आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के प्रोफेसर व एसोसिएट डीन-अकादमिक और पर्यावरण विज्ञान व इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. विपिन कुमार बताते हैं-“कोलीफॉर्म बैक्टीरिया अपेक्षाकृत हानिरहित सूक्ष्मजीवों का एक संग्रह है जो मनुष्यों और गर्म व ठंडे खून वाले जानवरों की आंतों में बड़ी संख्या में रहते हैं। वे भोजन के पाचन में सहायता करते हैं।
वहीं इस संग्रह का एक विशिष्ट उपसमूह फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया है, जिसका सबसे आम सदस्य एस्चेरिचिया कोली है। एस्चेरिचिया कोली एक प्रकार का बैक्टीरिया है जो छोटी और गंभीर दोनों तरह की बीमारियों का कारण बनता है। यह एक जीवाणु है जो आम तौर पर मनुष्यों और गर्म रक्त वाले जानवरों की आंत में पाया जाता है। इसके संक्रमण से अक्सर खूनी दस्त होते हैं। ये बैक्टीरिया जहां भोजन के पाचन में सहायक होते हैं, वहीं मल-मूत्र से बाहर निकलने के बाद कई बीमारियों के कारण बनते हैं।”
प्रो. विपिन बताते हैं-“फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया अगर किसी नदी-नाला वगैरह में पाया जाता है तो इसका मतलब साफ है कि इन नदी-नालों में मनुष्यों और जानवरों के मल-मूत्र शामिल हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। एक तो मनुष्यों द्वारा नदी किनारे खुले में शौच, दूसरा शहरों से निकलने वाले सीवेज का पानी बिना सीवर ट्रीटमेंट के सीधे नदी में मिलना।”

वे बताते हैं कि “फीकल कोलीफॉर्म का एक सदस्य एस्चेरिचिया कोली कई जलजनित रोगजनक बीमारियां पैदा कर सकता है, जिसमें टाइफाइड बुखार, वायरल बुखार, बैक्टीरियल गैस्ट्रोएंटेराइटिस और हेपेटाइटिस ए शामिल हैं।”
वे कहते हैं-“फीकल कोलीफॉर्म दो प्रकार की स्थितियां पैदा करते हैं, एक इंडिकेटर ऑर्गेनिज्म यानी सूचक जीव दूसरा पैथोजेनिक ऑर्गेनिज्म यानी रोगजनक जीव। संकेतक जीव अन्य रोगजनक बैक्टीरिया की उपस्थिति का संकेत दे सकते हैं। वहीं रोगजनक आमतौर पर कम मात्रा में मौजूद होते हैं और उन पर सीधे निगरानी रखना अव्यावहारिक है। वे रोगों के जन्म का कारण होते हैं। ये किसी भी जीव, पेड़-पौधे या अन्य सूक्ष्म कणों को बीमार कर सकते हैं। रोगजनक विषाणु, जीवाणु, कवक, परजीवी होते हैं।”
सार यह कि फीकल कोलीफॉर्म की उपस्थिति जलीय जीवों की तुलना में मनुष्यों को अधिक प्रभावित करती है। जबकि ये बैक्टीरिया सीधे बीमारी का कारण नहीं बनते हैं, बल्कि उच्च मात्रा में रोग पैदा करने वाले एजेंटों की उपस्थिति का संकेत देते हैं।
बता दें कि भारी बारिश के दौरान सीवर ओवरलोड हो सकते हैं और उसका उचित प्रबंधन न होने के कारण वे ओवरफ्लो होकर जैसे ही पास की धारा या नदी में गिरते हैं, अनुपचारित सीवेज नदी प्रणाली में प्रवेश कर जाते हैं। वहीं सड़कों, पार्किंग स्थलों और यार्डों से जानवरों के अपशिष्ट तेज रफ्तार से बह रहे सीवरों के माध्यम से नदियों वगैरह में प्रवेश कर जाते हैं।
(विशद कुमार की रिपोर्ट)
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