Saturday, April 27, 2024

जीएसटी को ईडी के दायरे में रखने का विपक्षी राज्यों ने किया विरोध

देश की राजधानी दिल्ली में मंगलवार को जीएसटी काउंसिल की 50वीं बैठक संपन्न हुई। दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और राजस्थान के वित्त मंत्रियों ने केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जीएसटी को ईडी की निगरानी में डालने के फैसले पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस मुद्दे पर जीएसटी परिषद में चर्चा की जानी चाहिए। आम आदमी पार्टी के दिल्ली राज्य का प्रतिनिधित्व वित्त मंत्रालय का प्रभार संभाल रहीं आतिशी सिंह ने बैठक में इस विषय को उठाया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस पर कहा कि पहले जो मुद्दे जीएसटी परिषद के एजेंडा में हैं, उस पर बातचीत होगी फिर इस विषय पर भी चर्चा की जाएगी।

पत्रकारों के साथ बातचीत में आतिशी का कहना था, “हम सभी ने देखा है कि कैसे लोगों को परेशान करने और गिरफ्तार करने के लिए ईडी का दुरुपयोग किया जा रहा है। अब करोड़ों जीएसटी पंजीकृत व्यवसायों और व्यापारियों को पीएमएलए अभियोजन से खुद को बचाने के लिए जूझना होगा। हम इस अधिसूचना का विरोध करते हैं। अगर कोई जीएसटी चोरी में शामिल है, तो उसे जीएसटी कानूनों के तहत अभियोजित किया जाना चाहिए। यदि कोई देश “कारोबार बढ़ाने को आसान” (ease of doing business) बनाना चाहता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना चाहता है, तो हमें ऐसे व्यवसाइयों को ईडी से डराना नहीं चाहिए।” 

आतिशी का यह भी कहना था, “कई वित्त मंत्रियों ने इस मुद्दे को बैठक में उठाया। इतना बड़ा फैसला जीएसटी काउंसिल से सलाह-मशविरे के बिना नहीं लिया जाना चाहिए था।”

पंजाब की आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने इसे ‘टैक्स आतंकवाद’ बताते हुए कहा है कि इससे छोटे कारोबारी डरे हुए हैं। वित्त मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन के माध्यम से पीएमएलए अधिनियम, 2022 में संशोधन किया है। इसके तहत जीएसटी की टेक्नोलॉजी यूनिट को संभालने वाली जीएसटी नेटवर्क को उन इकाइयों में शामिल कर लिया गया है, जिनके साथ ईडी अब सूचना साझा कर सकता है। 

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा के अनुसार, “जीएसटी (GST) को पीएमएलए (PMLA) के अधीन लाने से ED को किसी भी व्यापारी को गिरफ़्तार करने का अधिकार प्राप्त हो जाएगा। कांग्रेस पार्टी लगातार जीएसटी के सरलीकरण की पुरज़ोर वकालत करती आ रही है। मोदी सरकार इस तरह के तुग़लकी फ़रमान ला कर देश के करोड़ों व्यापारियों को भयंकर परेशानी में डाल रही है। हम इस तानाशाही का डट कर विरोध करते हैं।”

आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने भी इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए अपने ट्वीट में कहा है, “व्यापारियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा जीएसटी नहीं देता- कुछ मजबूरी में, कुछ जानबूझकर। केंद्र सरकार ने कुछ दिन पहले GST को भी ED में शामिल कर दिया। यानी अब अगर कोई व्यापारी GST नहीं देता तो ED उसे सीधे गिरफ़्तार करेगी और बेल भी नहीं मिलेगी। GST प्रणाली इतनी जटिल है कि जो लोग पूरा GST भी दे रहे हैं, उन्हें भी किसी प्रावधान में फंसाकर जेल में डाला जा सकता है।”

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि “देश के किसी भी व्यापारी को केंद्र सरकार जब चाहे जेल भेज देगी। ये बेहद ख़तरनाक है। व्यापारी व्यापार करने की बजाय अपने को बस ED से बचाता फिरेगा। देश के छोटे छोटे व्यापारी भी इसकी चपेट में आ जाएंगे। कोई व्यापारी नहीं बचेगा। ये देश की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद ख़तरनाक है। आज GST काउंसिल की मीटिंग है। मैं उम्मीद करता हूं, सब लोग इसके ख़िलाफ़ बोलेंगे। केंद्र सरकार इसे तुरंत वापस ले।”

क्या है यह मामला?

केंद्र सरकार ने पिछले शनिवार गुड्स एंड सर्विस नेटवर्क (जीएसटी) को धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के अंतर्गत लाकर इसे ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के तहत ला दिया था। इसके तहत जीएसटी की सूचना को अब ईडी के साथ साझा करने के लिए अधिसूचित कर दिया गया है। मोदी सरकार के इस कदम से व्यापारी वर्ग सहित विभिन्न राजनीतिक दल इसे ईडी को और ताकतवर बनाने की दिशा में एक और कदम के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि इसके पास पीएमएलए के मामलों को देखने का कार्यभार है।   

(पीएमएलए) मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के लिए भारत सरकार द्वारा स्थापित कानूनी ढांचा है। यह वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) और ईडी को अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए विशेष और समवर्ती शक्तियां प्रदान करता है। इस अधिनियम का उद्देश्य मनी-लॉन्ड्रिंग को रोकना और मनी-लॉन्ड्रिंग से प्राप्त संपत्ति को जब्त करने का प्रावधान है। यह बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों, व्यवसायों एवं प्रोफेशनल्स को अपने ग्राहकों की पहचान को सत्यापित करने, रिकॉर्ड तैयार करने और जरूरत पड़ने पर एफआईयू और ईडी को जानकारी प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करता है।

2005 में लागू किए जाने पर इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य आतंकी फंडिंग और मादक पदार्थों की तस्करी पर लगाम लगाने तक सीमित था। लेकिन अब जीएसटीएन को पीएमएलए अधिनियम के दायरे में ले आया गया है। इसके लिए पीएमएलए की धारा 66 के तहत बदलाव किए गए हैं, जिसके तहत अब जीएसटी की सूचना का खुलासा करने का प्रावधान है। इसका अर्थ हुआ कि अब जीएसटी नेटवर्क में संग्रहीत जानकारी को ईडी और एफआईयू के साथ साझा करना होगा।

जीएसटी नेटवर्क के पास अपना खुद का बिजनेस इंटेलिजेंस एंड फ्रॉड एनालिटिक्स (बीआईएफए) टूल है, जिसे 2019 में इंफोसिस द्वारा शुरू किया गया था। बीआईएफए राज्य और केंद्रीय जीएसटी अधिकारियों को जीएसटी के प्रशासन में धोखाधड़ी का पता लगाने के लिए खुफिया इनपुट के साथ-साथ उन्नत विश्लेषण भी प्रदान करता है। अब यह सारी जानकारी ईडी के पास भी उपलब्ध होगी।

सरकारी अधिसूचना में कहा गया है कि अब कर चोरी और दस्तावेजों में हेरफेर करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना संभव हो सकेगा। जीएसटी के तहत फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) और फर्जी चालान जैसे अपराधों को पीएमएलए में शामिल किया जाएगा। विभिन्न नियामक और प्रवर्तन एजेंसियों में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई), भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई), गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफओ) एवं विदेश व्यापार महानिदेशक (डीजीएफटी) सहित 24 एजेंसियां हैं जो यह जानकारी साझा करती हैं। इस प्रकार जीएसटीएन इस सूची में शामिल होने वाली 25वीं एजेंसी बन गई है।

जीएसटी को ईडी के दायरे में लाने से केंद्र की भाजपा सरकार एक बार फिर से विपक्षी दलों के निशाने पर आ गई है। उनका आरोप है कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए कथित तौर पर ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करने के लिए जीएसटी को ईडी के दायरे में लाने का कुचक्र रच रही है।

हाल ही में केंद्र सरकार ने सभी गैर सरकारी संगठनों और ट्रस्टों को इसके दायरे में लाने के लिए पीएमएलए कानून में संशोधन किया था। क्रिप्टो करेंसी सहित वर्चुअल एसेट सेवा प्रदाता भी अब पीएमएलए के तहत रिपोर्टिंग कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें सभी संदिग्ध लेनदेन की सूचना एफआईयू को देनी होगी। यहां तक कि राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्ति (पीईपी) को भी पीएमएलए के दायरे में रखा गया है।

ऐन 2024 लोकसभा चुनाव से पहले ईडी को और ज्यादा शक्तिशाली बनाने की इस मुहिम को विपक्ष मोदी सरकार के विरोधियों को आर्थिक रूप से पंगु बनाने के रूप में देख रही है। हालांकि जीएसटी परिषद की बैठक में इसे एफटीएएफ के तहत सिर्फ मनी लांड्रिंग से संबंधित मामलों की जांच तक सीमित रहने का आश्वासन वित्त मंत्रालय द्वारा दिया गया है, लेकिन जीएसटी की प्रक्रिया में इसकी भूमिका कहां तक फिट बैठती है, इस बारे में सवाल पूछे जाने बाकी हैं। जल्द ही इस नए अधिकार-संपन्न ईडी की वास्तविक हकीकत देश के सामने आने की संभावना है।

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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