माननीय आप ने देर कर दी! जब प्रवासी श्रमिकों के काम पर लौटने का समय हो गया तो आप उन्हें घर भिजवा रहे हैं

Estimated read time 1 min read

जब भीड़ सड़कों पर ढोर डंगर की तरह भूखी प्यासी चल रही थी तो उच्चतम न्यायालय बिना शपथपत्र के सालिसिटर जनरल तुषार मेहता के फर्जी दावों पर सरकार को क्लीनचिट दे रहा था और नीतिगत निर्णयों में हस्तक्षेप न करने की अपनी प्रतिबद्धता दिखा रहा था। 31 मार्च से इसी 15 मई तक कई बार कई याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने ऐसा कारनामा किया था। 15 मई को उच्चतम न्यायालय ने यहाँ तक कहा था कि कि लोग चल रहे हैं और रुक नहीं रहे हैं, हम इसे कैसे रोक सकते हैं?

हम आपकी सहायता किस तरह से कर सकते हैं। ये राज्य सरकारों पर है कि कार्रवाई करें। हम प्रवासियों को रेलवे लाइन या सड़क पर चलने से कैसे रोक सकते हैं? वास्तव में  उच्चतम न्यायालय को नागरिकों के संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों की चिंता नहीं दिखी बल्कि सरकार की सहूलियत उसके लिए सर्वोपरि प्राथमिकता रही है।

मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया है कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फंसे प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें 15 दिनों के भीतर मूल स्थानों पर वापस पहुंचाया जाए। उच्चतम न्यायालय ने एक शब्द भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की गलतबयानी पर नहीं कहा है। उच्चतम न्यायालय ने यदि खेद व्यक्त किया होता कि 31 मार्च से 28 मई तक प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के मामलों में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के दावों पर विश्वास करके उसने गलती की तो देशभर के करोड़ों प्रवासी श्रमिकों के घावों पर मरहम लगता और वे अपने को समाज की मुख्यधारा में होना मानते।

यही नहीं सरकारी उपेक्षा झेल कर मरते खपते अमानवीय परिस्थितिओं में सैकड़ों हजारों किमी की पैदल यात्रा करके अथवा चौगुने किराये देकर ट्रेन/बस/ट्रक से आये श्रमिकों को कुछ नकद मुआवजा देने का आदेश भी उच्चतम न्यायालय ने नहीं दिया।अब जब 75 फीसद से ज्यादा प्रवासी श्रमिक अपने ठिकानो पर वापस लौट आये हैं तो बचे लोगों की वापसी ऊंट के मुंह में जीरा समान है। संत कबीर की बात आज भी इस सन्दर्भ में प्रासंगिक है कि जब काशी में मरने मात्र से मोक्ष प्राप्त हो जाता है तो राम का क्या निहोरा और वे मृत्यु के पहले मगहर चले गये थे।  

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लॉकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों के संकट पर लिए गए स्वतः संज्ञान मामले में कई दिशा-निर्देश जारी किए।

-सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फंसे प्रवासियों की पहचान करने और उन्हें 15 दिनों के भीतर मूल स्थानों पर वापस पहुंचाया जाए।

-राज्यों को प्रवासियों के अपने मूल स्थानों पर जाने की कोशिश में, स्टेशनों पर भीड़ लगाने आदि के लिए लॉकडाउन उल्लंघन के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत इन प्रवासियों के खिलाफ दायर सभी मामलों को वापस लेने पर विचार करें।

-श्रमिक ट्रेन की मांग करने पर, रेलवे 24 घंटे के भीतर ट्रेनों को उपलब्ध करवाएगा।

-प्रवासी श्रमिकों को सभी योजनाएं प्रदान करें और उन्हें प्रचारित करें। रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने और प्रवासियों की मदद करने के लिए हेल्प डेस्क लगाएं।

-केंद्र और राज्य एक सुव्यवस्थित तरीके से प्रवासी श्रमिकों की पहचान के लिए एक सूची तैयार करें।

– रोजगार की संभावना की मैपिंग और प्रवासियों की स्किल-मैपिंग की जाए, जिससे श्रमिकों को रोजगार की राहत हो।

– यदि वे चाहें तो वापस जाने की यात्रा की सलाह के लिए परामर्श केंद्र स्थापित किए जाएं।

इस मामले को अब 8 जुलाई को सूचीबद्ध किया गया है। उच्चतम न्यायालय  ने शुक्रवार को केंद्र, राज्य सरकार और अन्य पक्षों को सुनने के बाद प्रवासियों के संकट के मुद्दे पर दर्ज स्वत: संज्ञान मामले पर अपना आदेश सुरक्षित रखा था।

जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने 28 मई को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि ट्रेन या बस से यात्रा करने वाले किसी भी प्रवासी मजदूर से किराया नहीं लिया जाएगा। जब तक लोग ट्रेन या बस के लिए इंतजार कर रहे होंगे उस दौरान संबंधित राज्य या केंद्रशासित प्रदेश उन्हें भोजन मुहैया कराएं। इसके अलावा न्यायालय ने कहा था कि जहां से ट्रेन शुरू होगी वो राज्य यात्रियों को खाना और पानी देंगे।

इसके बाद यात्रा के दौरान ट्रेन में रेलवे खाना-पानी देगा। बस में भी यात्रियों को खाद्य एवं पेय पदार्थ दिए जाएं। सड़कों पर चल रहे प्रवासियों को तुरंत शेल्टर होम ले जाया जाए और उन्हें खाना-पानी से लेकर सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं। कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकारें प्रवासियों के रजिस्ट्रेशन का मामला देखें और ये सुनिश्चित करें कि जैसे ही उनका रजिस्ट्रेशन पूरा हो जाता है, उन्हें जल्द से जल्द उनके घर पहुंचाया जाए।

कोरोना वायरस की वजह से देश में 25 मार्च से लॉकडाउन लगा है। अभी लॉकडाउन का पांचवां चरण चल रहा है। हालांकि, सरकार लॉकडाउन 5.0 में अनलॉक-0.1 के तहत आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए कई तरह की रियायतें दे रही है। मगर लॉकडाउन में काम बंद होने से प्रवासी मजदूरों के सामने खाने-कमाने का संकट पैदा हो गया है। ऐसे में वो शहर छोड़ कर अपने गांवों और घरों की ओर कूच कर रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author