Tuesday, April 23, 2024

फरवरी 2023 में मनरेगा के रोजगार में 7 करोड़ दिनों की कमी आई

ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के तहत मिलने वाला रोजगार गांवों के मजदूरों के लिए रोजी-रोटी का सहारा है। कोविड काल में शहरों से भागकर गांवों में आए लोगों के लिए यह जिंदा रहने का सबसे बड़ा उपाय बना था। नरेंद्र मोदी की सरकार शुरुआत से इस योजना खिलाफ रही है। इस बार के बजट में मनरेगा के मद में 29 हजार 400 करोड़ की कटौती कर दी गई।

इस योजना के जो आंकड़े फिलहाल उपलब्ध हैं, वह बता रहे हैं कि इस वर्ष जनवरी और फरवरी में इस योजना के तहत जितने लोगों को रोजगार मिला, वह चार वर्षों में सबसे कम है। इस साल जनवरी में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत 20.69 करोड़ दिन रोजगार सृजित हुए, जबकि जनवरी 2022 में 26.97 करोड़ रोजगार सृजित हुए, जनवरी 2021 में 27.81 करोड़ रोजगार सृजित हुए थे, जनवरी 2020 में भी 23.07 करोड़ रोजगार सृजित हुए थे। इस साल फरवरी में भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। इस साल फरवरी में भी सिर्फ 20.29 करोड़ रोजगार सृजित हुए। 2022 फरवरी में 26.99 करोड़, 2021 में 30.79 करोड़ और 2020 में 26.75 करोड़ रोजगार का सृजन हुआ था।

परिवारों के आधार पर देखें तो फरवरी, 2023 में, 1.67 करोड़ परिवारों ने योजना का लाभ उठाया, जबकि फरवरी 2022 में 2.02 करोड़ परिवरों ने, फरवरी 2021 में 2.28 करोड़ परिवारों ने और फरवरी 2020 में 1.87 करोड़ परिवरों को इसका फायदा मिला था। 2022 की तुलना में 2023 करीब 35 लाख परिवार इस योजना से बाहर हो गए। 

संयोग से यह कमी उसी दौर में आई है, जब योजना को लागू करने के संबंध में कई नीतिगत और तकनीकी परिवर्तन किए गए थे। उदाहरण के लिए, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 1 जनवरी, 2023 से प्रभावी रूप से राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली ऐप (NMMS) के माध्यम से उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य कर दिया था। विशेषज्ञों ने पहले ही चेताया था कि ये परिवर्तन बहुत सारे मजदूरों को नरेगा योजना से बाहर कर देंगे। जबकि सरकार का दावा था कि इससे इससे लोगों नरेगा मजदूरों का फायदा होगा।

नरेगा मजदूरों की हाजिरी दर्ज करने की इस नई प्रणाली के अलावा सरकार ने मजदूरों को मजदूरी पाने के लिए आधार कार्ड के आधार पर भुगतान की प्रणाली एबीपीएस को अनिवार्य कर दिया। नरेगा के विशेषज्ञों और इसके लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने इस नई भुगतान प्रणाली का विरोध किया था। इसके बाद सरकार ने इसमें संसोधन करते हुए ‘मिश्रित मॉडल’ अपनाया। जिसमें ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना के तहत श्रमिकों को एबीपीएस के साथ-साथ नेशनल ऑटोमेटेड क्लियरिंग हाउस (एनएसीएच) के माध्यम से भुगतान किया जा सकता है। 

मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने कहा कि हाजिरी के तरीके और भुगतान के मॉडल में परिवर्तन के चलते लगभग 30 प्रतिशत कम लोगों को रोजगार मिला। उनका कहना है, “सरकार आधार कार्ड-आधारित भुगतान प्रणाली के माध्यम से भुगतान करने के लायक नहीं होने के चलते करोड़ों श्रमिकों का भुगतान रोक कर इन आंकड़ों को पूर्व-कोविड स्तरों से नीचे लाने में सफल रही है।” 

नरेगा के बजट में कटौती के संसद की स्थायी समिति ने कहा था कि 2023-24 के बजट में केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना की धनराशि में 29 हजार 400 करोड़ की कटौती की है। ग्रामीण विकास और पंचायती राज की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “समिति इस बात से चिंतित है कि नरेगा के लिए बजट अनुमान 2023-24 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 29,400 करोड़ रुपये कम कर दिया गया है। 

मनरेगा के तहत मजदूरी ग्रामीण समाज के सबसे कमजोर तबकों के लिए रोजी-रोटी का साधन तो है ही, इन तबकों को आत्मसम्मान से जीने का अवसर भी उपलब्ध कराती है। नरेंद्र की सरकार रोजी-रोटी के इस साधन को विभिन्न तरीकों से लोगों छीन लेने की कोशिश कर रही है।

( आजाद शेखर शेखर जनचौक में सब एडिटर हैं।)

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देवानंद पवार
देवानंद पवार
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अगले 5 वर्षो में मनरेगा योजना ही बंद हो जाएगी यही हाल रहे तो

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