मोदी सरकार की मनरेगा मजदूरी की बढ़ोत्तरी “ऊंट के मुंह में जीरा”

पिछले दिनों मोदी सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए मनरेगा मजदूरी दर में 3 से 10 प्रतिशत तक की वृद्धि करने की अधिसूचना जारी की गई, जो 1 अप्रैल से प्रभावित होगी। इस अधिसूचना के बाद देश की लगभग मीडिया ने अपनी सारी वफादारी मोदी सरकार के प्रति समर्पित करते हुए लिखा – “लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने खोला खजाना… अब मनरेगा मजदूरों को मिलेगा ज्यादा पैसा।”

“लोकसभा चुनाव से पहले सरकार का तोहफा, मनरेगा की मजदूरी में बंपर बढ़ोतरी, नोटिफिकेशन जारी।” “मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले मनरेगा श्रमिकों को दी बड़ी खुशखबरी, मजदूरी दर बढ़ाने का ऐलान।” “मनरेगा मजदूरों की हो गई बल्ले-बल्ले, मोदी सरकार ने मजदूरी दर में की इतनी बढ़ोतरी।”

लेकिन किसी ने नहीं लिखा कि “मोदी सरकार ने बढ़ाई मनरेगा की मजदूरी, जो है ऊंट के मुंह में जीरा के समान।” इसे मनरेगा योजना के प्रति उनकी अज्ञानता कहें या मोदी सरकार के प्रति वफादारी या फिर 2024 के चुनाव के मद्देनजर भाजपा का एक तरह का प्रचार।

बता दें कि लगभग लोग पूरी खबर नहीं पढ़ते हैं, केवल शीर्षक से ही काम चला लेते हैं और उसे सत्य भी मान लेते हैं। यह जानकारी इन वफादारों को पूरी तरह पता है। वैसे तो केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरी की वृद्धि राष्ट्रीय स्तर पर है, लेकिन यह बढ़ोत्तरी “ऊंट के मुंह जीरा” क्यों है? को समझने लिए केवल झारखंड का ही उदाहरण काफी है।

पहली बात, मनरेगा रोजगार योजना के काम का दिन पूरे साल में केवल 100 दिन का होता है। दूसरी बात, इस योजना के लाभार्थी का रोजगार कार्ड एक परिवार का होता है। मतलब अगर एक परिवार में चार बालिग सदस्य हैं तो एक व्यक्ति को केवल 25 दिन का रोजगार मिलता है।

आगे की पूरी कहानी जानने के लिए यह जानना जरूरी है कि झारखंड में पहले केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरी 228 रुपये मिलती थी। जिसमें राज्य सरकार द्वारा 27 रुपये को जोड़ दिया जाए तो 255 रुपये हो गया। अब केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए की गई बढ़ोत्तरी के तहत झारखंड में 7.45% की बढ़ोत्तरी की गई है जो 228 रुपये का 17 रुपये होता है। यानी अब केंद्र की ओर से मनरेगा मजदूरों को 245 रुपये मिलेगा। ऐसे में अगर झारखंड सरकार की पूर्ववत राशि 27 रुपये मिला दिया जाए तो मनरेगा मजदूरों को अब 272 रुपये प्रतिदिन मिलेगा।

आंकड़े की बात करें तो केंद्र सरकार के 245 रुपये को 100 दिन से जोड़ दिया तो एक साल में एक परिवार को कुल 24,500 रुपये मिलते हैं। यानी एक साल की सरकारी कमाई मनरेगा मजदूरों के एक परिवार को 24,500 रुपये होता है इस हिसाब से एक दिन की मजदूरी प्रति परिवार 67.12 रुपये मिलते हैं यानी यदि एक परिवार में चार बालिग सदस्य हैं तो प्रति सदस्य को प्रति दिन के हिसाब से 16.78 रुपये केंद्र सरकार मजदूरी देती है। वहीं राज्य सरकार के 27 रुपये का एक साल का आंकड़ा देखा जाए तो यह प्रति परिवार को एक दिन में 0.07 रुपये मिलता है। यानी एक बालिग सदस्य को एक दिन में जो राशि उपलब्ध होती है वह काफी हास्यास्पद होती है। यह राशि प्रति व्यक्ति 17 रुपये भी नहीं होती है। जाहिर है एक बालिग व्यक्ति के बच्चे अगर दो भी हुए तो क्या इनका भोजन 17₹ में प्रति दिन संभव है? यह बहुत बड़ा सवाल है जो कार्पोरेटी पगार वाले मीडिया की समझ से परे है।

बताते चलें कि मनरेगा योजना को लेकर पिछले वर्षों से जनचौक कई सवाल उठाता रहा है, वहीं राज्य के कई सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा काम के दिन में बढ़ोत्तरी, परिवार के हर बालिग सदस्य का रोजगार कार्ड सहित मजदूरी दर में बढ़ोत्तरी की मांग की जाती रही है।

पिछले फरवरी माह के दूसरे सप्ताह में झारखंड के गढ़वा जिले में एक कार्यक्रम में मौजूद झारखण्ड नरेगा वॉच के बलराम और जेम्स हेरेंज द्वारा एक मांग पत्र रखा गया था। जिसमें कहा गया कि मनरेगा योजना में परिवार के हर सदस्य को 100 दिन के काम की गारंटी के साथ मज़दूरी दर 800 रुपया होना चाहिए।

वहीं उस कार्यक्रम में मौजूद कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने मनरेगा को लेकर कहा था कि “मौजूदा केंद्र की मोदी सरकार पारदर्शिता के नाम पर मनरेगा में अनावश्यक तकनीकी जटिलता ला रही है, जिससे लोगों के काम के अधिकार का हनन हो रहा है। असल में सरकार का मुख्य उद्देश्य मनरेगा को ख़त्म करना है।”

जयराम रमेश की बातों में दम इसलिए दिखा कि पिछले सालों से ही झारखंड के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की रुचि मनरेगा से दूर होती चली गई और राज्य के लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन करने लग गए। क्योंकि एक तो मनरेगा की वर्तमान मजदूरी से लोगों का पेट भरना मुश्किल होने लगा, दूसरा अनावश्यक तकनीक की वजह से लोग परेशान होने लग गए।

मनरेगा मजदूरों की कमी के कारण मनरेगा में अवैध रूप से ठेकेदार विकसित होने लगे तथा फर्जी मजदूर भी विकसित होने लगे। यानी मनरेगा में फर्जीवाड़ा की पैठ शुरू हो गई। हाल के दिनों में ऐसी खबरों की सुर्खिया प्रायः देखने को मिलती रही हैं। वहीं इस फर्जीवाड़े में केंद्र की नई तकनीक भी फिसड्डी साबित हो गई।

वैसे हम मनरेगा मजदूरी बढ़ोत्तरी को पूरे देश में औसत रूप से देखें तो यह बढ़ोत्तरी 28 रुपये प्रति दिन होती है। यानी वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए यह मजदूरी दर औसत 289 रुपये प्रतिदिन होगा, जबकि वित्त वर्ष 23-24 में यह 261 रुपये था। ऐसे में हम राष्ट्रीय स्तर पर भी मनरेगा मजदूरों की कमाई का अनुमान लगा सकते हैं।

बताते चलें कि भारतीय संसद ने विगत 23 अगस्त 2005 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) पारित किया। यह 2 फरवरी 2006 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के रूप में भारत के 200 ग्रामीण जिलों में लागू हुआ।

तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में इसकी आधिकारिक शुरुआत की। बाद में इसे 1अप्रैल 2008 से भारत के सभी ग्रामीण जिलों में लागू किया गया। 2 अक्टूबर 2009 को अधिनियम में संशोधन करते हुए इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कर दिया गया।

इस योजना के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल मजदूर जिसकी न्यूनतम आयु 18 वर्ष हो और वह स्वेच्छा से काम करना चाहता हो, को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों की गारंटीयुक्त मजदूरी रोजगार प्रदान किया जाता है।

सरकार के इस अधिसूचना के अनुसार देश के हरियाणा में मनरेगा मजदूरी सबसे अधिक 374 रुपये है। जबकि अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड यह सबसे कम 234 रुपये प्रतिदिन तय किया गया है।

वहीं मजदूरी दर में बढ़ोत्तरी की बात करें तो गोवा में 10.56 प्रतिशत और कर्नाटक में 10.4 प्रतिशत यानी सबसे अधिक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में मजदूरी दरों में सिर्फ 3 प्रतिशत की सबसे कम बढ़ोतरी की गई है। आंध्र प्रदेश में 10.29%, तेलंगाना में 10.29% और छत्तीसगढ़ 9.95% की बढ़ोत्तरी हुई है।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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