निर्दोषों की हत्या, हत्या होती है जज साहेब,जनसंहार पर पर्देदारी ठीक नहीं!

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आज से आठ साल पहले छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के एडेसमेट्टा में सुरक्षाबलों द्वारा आठ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। मरने वाले चार नाबालिग भी थे। सुरक्षाबलों द्वारा निर्दोष आदिवाासियों के जनसंहार की उक्त घटना के आठ साल बाद 8 सितंबर, 2021 बुधवार को रिटायर्ड जस्टिस वीके अग्रवाल ने अपनी न्यायिक जांच रिपोर्ट कैबिनेट को सौंपी है। 

सरकेगुड़ा मुठभेड़ पर आयोग की पिछली रिपोर्ट के विपरीत, रिपोर्ट को कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था।

जस्टिस वीके अग्रवाल ने अपनी न्यायिक जांच रिपोर्ट में कहा है कि मारे गए लोगों में से कोई भी माओवादी नहीं था। वे सभी निहत्थे आदिवासी थे। जस्टिस अग्रवाल ने रिपोर्ट में बताया है कि आदिवासियों पर 44 गोलियां चलाई गई थीं जिनमें से 18 गोलियां सीआरपीएफ की कोबरा यूनिट के केवल एक कॉन्स्टेबल ने चलाई थीं।

साथ ही उन्होंने रिपोर्ट में सुरक्षा बलों को सेफ्टीगार्ड प्रदान करते हुये कहा है– “हो सकता है डर के मारे सुरक्षाबलों ने फायरिंग शुरू कर दी हो।” 

जस्टिस वीके अग्रवाल की न्यायिक जांच रिपोर्ट में जनसंहार कांड को तीन बार ‘गलती’ बताया गया है। जस्टिस अग्रवाल की रिपोर्ट में बताया गया है कि 25 से 30 लोग 17-18 मई 2013 के दरम्यान रात बीज पांडम त्योहार मानाने के लिए इकट्ठा हुए थे। तभी वहां सुरक्षाबलों की टुकड़ी ने मौके पर आकर फॉयरिंग शुरू कर दी थी। जबकि दूसरी ओर से कोई गोली नहीं चली थी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कोबरा कॉन्स्टेबल देव प्रकाश की मौत माओवादियों की गोली से नहीं हुई थी।

जस्टिस वी के अग्रवाल की न्यायिक जांच रिपोर्ट में संभावना जतायी गयी है कि यह फायरिंग ‘गलत धारणा और डर की प्रतिक्रिया’ की वजह से हुई होगी। अगर सुरक्षाबलों के पास पर्याप्त उपकरण होते, खुफिया जानकारी होती तो इस घटना को टाला जा सकता था। रिपोर्ट में बताया गया है कि सुरक्षाबलों में कई कमियां पाई गईं। ऑपरेशन के पीछे कोई मजबूत खुफिया जानकारी नहीं थी।

उक्त घटना को अंजाम देने के बाद उस वक्त सुरक्षाबलों की तरफ से कहा गया था कि वे आग की चपेट में आ गए थे और इसके बाद जवाबी कार्रवाई की। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि उनको कोई ख़तरा नहीं था।

जबकि घटना के तत्काल बाद पीड़ित ग्रामीणों ने कहा था कि जब गोलीबारी होने लगी तो वे लोग चिल्लाने लगे थे। वे कह रहे थे, गोलीबारी रोक दो, हमारे लोगों को गोली लगी है। 

17-18 मई 2013 की रात को एडेसमेट्टा में 25-30 ग्रामीण आदिवासी लोग बीज पांडम त्योहार मनाने के लिये एकजुट हुये थे  और अचानक हुयी फॉयरिंग में 8  लोग मारे गए थे। एडेसमेट्टा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। निकटतम सड़क से भी इसकी दूरी लगभग 17 किलोमीटर है। 

जबकि इससे एक साल पहले ही एडेसमेट्टा की ही तरह, सरकेगुड़ा के लोग जून 2012 में बीज पांडम समारोह के लिए एकत्र हुए थे। तब भी सुरक्षा बलों ने नाबालिगों सहित 17 लोगों की हत्या कर दी थी। न्यायमूर्ति अग्रवाल की सरकेगुड़ा रिपोर्ट, जिसमें सुरक्षाकर्मियों को भी आरोपित किया गया था, अभी भी राज्य के कानून विभाग के पास लंबित है। जज साहेब क्या सुरक्षाबलों को हर साल गलती करने के लिये ही आपने उन्हें ‘गलती’ का सुरक्षा कवच पहनाया है। 

बता दें कि एडेसमेट्टा मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मई 2019 से सीबीआई भी अलग से जांच कर रही है। 

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