Friday, April 19, 2024

विरोधियों पर शिकंजा कसने का नया हथियार है ‘नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’

‘नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्ट पोर्टल’ सरकार विरोधी विचारधारा पर शिकंजा कसने और सोशल मीडिया पर आरएसएस दक्षिणपंथ की मोनोपोली खड़ी करने का जरिया बनने जा रही है। आने वाले समय में सोशल मीडिया पर उठने वाली हर असहमति की आवाज़ को चिन्हित करने के लिए गृह मंत्रालय ‘नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्ट पोर्टल’ पर साइबर क्राइम वॉलंटियर्स की भर्ती करने जा रही है। साथ ही असहमति में उठने वाली हर आवाज़ का तेज़ी से अपराधीकरण करने की दिशा में भी गृह मंत्रालय ने कदम उठाया है।

द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने तमाम राज्यों को पत्र लिखकर कहा है कि ‘नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल’ पर आई शिकायतों में से अधिकाधिक की जांच और एफआईआर दर्ज़ की जाए। गृह मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पोर्टल पर पंजीकृत कुल शिकायतों का केवल 2.5% ही फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR) में परिवर्तित होता है।

गृह मंत्रालय का उद्देश्य पोर्टल के माध्यम से इंटरनेट पर “गैरकानूनी सामग्री” को चिह्नित करने के लिए “साइबर-क्राइम वॉलंटियर्स” के एक समूह को गठित करना है।

जब आप इस सरकारी पोर्टल पर जाएंगे तो आपको चार विकल्प मिलेंगे

  1. फाइनेंशियल फ्रॉड (वित्तीय धोखाधड़ी)
  2. जॉब फ्रॉड (नौकरी संबंधी धोखाधड़ी)
  3. मैट्रिमोनियल फ्रॉड (विवाह संबंधी धोखाधड़ी)
  4. सेफ यूज ऑफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (सोशल मीडिया का सुरक्षित इस्तेमाल)

इससे पहले 15 सितंबर को सुदर्शन न्यूज़ चैनल के एक सांप्रदायिक कार्यक्रम “नौकरशाही जेहाद” के खिलाफ़ एक याचिका पर सुनवाई के दौरान मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करके कहा है कि यदि मीडिया से जुड़े दिशा-निर्देश (रेगुलेशन) उसे जारी करने ही हैं तो सबसे पहले वह डिजिटल मीडिया की ओर ध्यान दे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े दिशा-निर्देश तो पहले से ही हैं। हलफनामा में यह भी कहा गया है कि- “डिजिटल मीडिया पर ध्यान इसलिए भी देना चाहिए कि उसकी पहुँच ज़्यादा है और उसका प्रभाव भी अधिक है।”

गृह मंत्रालय की नज़र में गैरकानूनी क्या है

सबसे पहले ये जानते हैं कि गैर कानूनी है क्या? जैसा कि इस सरकारी वेबसाइट पर दर्ज़ है- “गैरकानूनी सामग्री को भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ़, भारत की रक्षा के खिलाफ, राज्य की सुरक्षा के खिलाफ, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के खिलाफ, सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के उद्देश्य वाली सामग्री, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने और बाल यौन शोषण संबंधित सामग्री के रूप में वर्गीकृत किया गया है।”

अब यदि पिछले कुछ वर्षों में यूएपीए, देशद्रोह जैसी धाराओं में गिरफ्तार किए गए बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, साहित्यकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, अधिवक्ताओं, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर एक नज़र डालें तो साफ हो जाता है कि सरकार के खिलाफ़ कुछ भी कहने, और सत्ताधारी पार्टी की विचारधारा के उलट कुछ भी लिखना ही गैरक़ानूनी है। पत्रकार प्रशान्त कनौजिया ने अपने ट्विटर एकाउंट पर यही तो लिखा था कि राम मंदिर में दलितों का क्या हिस्सा है। उनकी इस पोस्ट को समाज को जाति, धर्म, और वर्ग में बाँटने वाला बताकर उनके खिलाफ़ आईटी एक्ट और सौहार्द्र बिगाड़ने वाला बताकर कई धाराओं में केस दर्ज़ करके दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया गया था।

जबकि आरएसएस की विचारधारा से संबंध रखने वाले कितना भी सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने वाली, नफ़रती कंटेट पोस्ट करें उनके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती। उलटा उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। अभी दो दिन पहले ही अनिल कुमार सौमित्र को IIMC  में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया है जबकि उसने पिछले साल अपने फेसबुक पोस्ट में राष्ट्रपति महात्मा गांधी को ‘पाकिस्तान का राष्ट्रपिता’ बताकर उनकी निंदा की थी।  इसी तरह तेलंगाना के भाजपा विधायक टी राजा के मुस्लिम विरोधी पोस्ट के खिलाफ़ भी कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

कहने का लब्बोलुआब ये है कि गृहमंत्रालय के दक्षिणपंथी आरएसएस-भाजपा के अलावा अन्य विचारधारा की कोई भी सरकार विरोधी अभिव्यक्ति गैर कानूनी कैटेगरी में आती है। और इस सरकारी पोर्टल के सहारे अन्य विचारधारा के लोगों पर शिकंजा कसा जाएगा।         

कौन होगा साइबर क्राइम वॉलंटियर 

इस सरकारी वेबसाइट में कहा गया है, “नेक लोगों का साइबर क्राइम वॉलंटियर्स के रूप में पंजीकृत होने का स्वागत है। इन साइबर क्राइम वॉलंटियर्स की भूमिका अवैध / गैरकानूनी ऑनलाइन सामग्री की पहचान, उनकी रिपोर्टिंग और उन्हें हटाने में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद करना होगा। वॉलंटियर्स को साइबर क्राइम वॉलंटियर्स के रूप में सूचीबद्ध होने के लिए फोटोग्राफ, नाम और पता का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।

जाहिर है चूंकि ये पोर्टल सरकार के गृहमंत्रालय के अधीन काम करता है। और सरकार दक्षिणपंथी आरएसएस की है और शिकार दूसरी विचारधारा के लोगों का करना है तो साइबर क्राइम वॉलंटियर्स में ‘भाजपा साइबर सेल’ के लोगों की भर्ती की जाएगी। इसीलिए साइबर क्राइम वॉलंटियर्स चयनित करने के लिए कोई स्पष्ट और पारदर्शी प्रणाली भी नहीं बनाई गई है।  

सरकार का जोर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का अपराधीकरण करना 

पिछले साल 30 अगस्त, 2019 को इस साइबर क्राइम पोर्टल को लांच किया गया था। लांचिंग के बाद से अब तक पोर्टल पर 2 लाख से अधिक शिकायतें दर्ज़ हुई हैं, लेकिन एफआईआर केवल 5,000 मामलों में ही दर्ज़ की गई है। गृह मंत्रालय की सारी नाराजगी इसी बात को लेकर है। उनका ज़ोर है कि शिकायत दर को ज़्यादा से ज़्यादा एफआईआर में रुपांतरित करके अपराधी बनाने की दर बढ़ाई जाए।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ‘द हिंदू’ अख़बार को बताया है कि देश भर में रोजाना औसतन 1,000 साइबर क्राइम की शिकायतें मिलती हैं। लेकिन इन शिकायतों के एफआईआर में रूपांतरण की दर बहुत कम है। साइबर क्राइम पोर्टल के डेटा के मुताबिक जुलाई में, 30,000 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें  केवल 273 एफआईआर दर्ज की गईं।

बता दें कि इस पोर्टल को 30 अगस्त, 2019 को लोगों को एक केंद्रीकृत मंच पर सभी प्रकार के साइबर अपराधों की रिपोर्ट करने में मदद करने के लिए लॉन्च किया गया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सितंबर 2018 में जो सरकारी पोर्टल लांच किया गया था उस पर केवल चाइल्ड पोर्नोग्राफी, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन उत्पीड़न अपराधों की शिकायतों को ही दर्ज़ किया जाता था।

महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने राज्यसभा में लिखित में बताया था कि- “  नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक इस साल यानि 20202 की 1 जनवरी से 18 सितंबर के दरम्यान नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर बाल पोर्नोग्राफी, बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के खिलाफ कुल 13,244 शिकायतें दर्ज़ की गई हैं।

जबकि 4 फरवरी को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा को सूचित किया था कि 30 अगस्त, 2019 से 30 जनवरी, 2020 तक इस सरकारी पोर्टल पर 33,152 साइबर क्राइम की घटनाएं दर्ज की गई थीं, जहां संबंधितों द्वारा कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा 790 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई थी।

वहीं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा संकलित आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में पंजीकृत साइबर अपराधों की संख्या में 63.5% की वृद्धि हुई है। साल 2018 में 27,248 मामलों की तुलना में साल 2019 में साइबर अपराध के तहत कुल 44,546 मामले दर्ज किए गए। इस तरह साल 2019 में, साइबर अपराध के 60.4% मामले (44,466 मामलों में से 26,891) धोखाधड़ी के, इसके बाद 5.1% (2,266 मामलों) यौन शोषण के और 4.2% (1,874 मामलों) डिसरिप्यूट यानि मान-मर्यादा को ठेस पहुँचाने के तहत दर्ज़ करवाए गए थे।

साल 2015 में ही सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट 66ए को रद्द करने के बावजूद दर्ज़ किए जा रहे मुकदमे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 (ए) को सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन और असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था।  साइबर उत्पीड़न या मानहानि आदि से जनता को राहत दिलाने के नाम पर जोड़ी गई धारा जनता पर ही अंकुश लगाने का जरिया बनती जा रही थी। 

लेकिन भाजपा की राज्य सरकारों की मनमानी देखिए कि सुप्रीम कोर्ट के इस स्पष्ट निर्देश के बावजूद उत्तर प्रदेश में आईटी एक्ट की धारा 66ए में मुकदमे धड़ल्ले से दर्ज़ होते चले आ रहे हैं।  

औरैया के हरिओम की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति समित गोपाल की पीठ सुनवाई करते हुए 21 अक्तूबर, 2020 को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से पूछा – कि आईटी एक्ट 2000 की धारा 66 ए को सुप्रीम कोर्ट की ओर से असंवैधानिक घोषित करने के बाद भी यूपी पुलिस इस धारा में मुकदमे क्यों दर्ज कर रही है? कोर्ट ने कहा कि, सर्वोच्च अदालत के स्पष्ट निर्देश के बावजूद इसका पालन क्यों नहीं किया जा रहा है। अदालत ने 4 सप्ताह में दोनों अधिकारियों को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। 

बता दें कि याची हरिओम के खिलाफ बेला थाने में आईटी एक्ट की धारा 66 ए और 506 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। जबकि धारा 66 ए को सुप्रीम कोर्ट ने श्रेया सिंघल केस में असंवैधानिक घोषित करके इस धारा के तहत मुकदमे दर्ज ना करने का निर्देश दिया है। इतना ही नहीं बाद में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लि‌बर्टी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में कोर्ट ने श्रेया सिंघल केस का आदेश देश के सभी उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालयों और सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को भेजने का निर्देश दिया था, ताकि आदेश का सभी राज्यों में पालन किया जा सके। 

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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