Tuesday, May 30, 2023

झारखंड: वेदांता इलेक्ट्रोस्टील की लापरवाही ने ली मजदूर की जान, पहले भी हो चुकी हैं कई दुर्घटनाएं

बोकारो। झारखंड के बोकारो स्थित वेदांता इलेक्ट्रोस्टील में एक ठेका मजदूर पप्पू कुमार महतो (24 वर्ष) पिता नन्दलाल महतो की मौत 4 मई शाम 3.30 बजे उस वक्त हो गई जब वह कोकओवेन साइड में काम कर रहा था और सेफ्टी नहीं होने के कारण ऊपर से राॅड का पूरा बंडल उसके ऊपर आ गिरा। पप्पू की मौत मौके पर ही हो गई थी, फिर भी तसल्ली के लिए उसे कंपनी के भीतर बने प्राथमिक चिकित्सालय में ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

उसके बाद ठेका कंपनी की ओर से दोबारा उसे बोकारो स्थित सदर अस्पताल ले जाया गया। जिसकी जानकारी मृतक के परिवार वालों और गांव वालों को हुई तो उन्होंने अस्पताल पहुंचने के पहले ही गाड़ी रास्ते में रोक ली और पप्पू के शव को वापस कंपनी ले आए। बताया जाता है कि कंपनी के अधिकारियों की योजना थी कि पप्पू कुमार की लाश को सदर अस्पताल में छोड़कर भाग जाएं, ताकि कंपनी मुआवज़ा से बच सके।

बता दें कि पप्पू वेदांता इलेक्ट्रोस्टील कंपनी की ठेकेदार ऑनशोर कंस्ट्रक्शन कंपनी प्रा. लि. सियालजोरी में कार्यरत था। इस बावत कंपनी में कार्यरत मजदूर बताते हैं कि ऐसी घटनाएं आए दिन कंपनी में होती रहती हैं। वे कहते हैं कि ऐसी घटनाएं कंपनी की सुरक्षा व्यवस्था में हो रही लापरवाही के कारण होती हैं।

Vedanta Electrosteel 6
ठेका मजदूर पप्पू कुमार महतो (फाइल)

लोगों की मानें तो सेफ्टी की सही व्यवस्था नहीं होने की वजह से पिछले एक साल के अंदर लगभग दर्जनों मजदूरों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इस मुद्दे को लेकर स्थानीय समाजसेवी और जनप्रतिनिधि लगातार आवाज उठाते रहे हैं। लेकिन कंपनी हमेशा इन लोगों की बातों को नजरअंदाज करती रही है।

बता दें कि ग्रामीणों ने पप्पू के शव के साथ कंपनी जाने के रास्ते अलकुसा मोड़ सड़क को जाम कर दिया। जाम में कंपनी की गाड़ियों को रोका गया। ग्रामीण 4 मई की शाम 6.00 से 5 मई की दोपहर 1.00 बजे तक सड़क जाम कर धरने पर बैठे रहे। तब जाकर कंपनी एसडीपीओ, एसडीएम चास, सीओ चास और चंदनक्यारी और थाना प्रभारी सियालजोरी की मध्यस्थता में एक बातचीत हुई।

बातचीत में मृतक मजदूर के परिजन को कंपनी की ठेकेदार ऑनशोर कंस्ट्रक्शन कंपनी प्रा. लि. ने 15 लाख रुपये मुआवज़ा देने और परिवार के किसी एक सदस्य को ईएसएल वेदांता में योग्यता के अनुसार नियोजन दिये जाने पर सहमति बनी।

Vedanta Electrosteel 8
कंपनी और मजदूरों के बीच हुए समझौते का पत्र

यह पहली घटना है जिसपर कंपनी मुआवज़ा देने को बाध्य हुई है, जबकि इसके पहले की घटनाओं में मारे गए मजदूरों को कोई भी मुआवज़ा नहीं मिला है। क्योंकि ऐसी दुर्घटनाओं को कंपनी दूसरा मोड़ देकर अक्सर बच जाती है। पिछले दिनों वेदांता इलेक्ट्रोस्टील के ब्लास्ट फर्नेस 2 में आग लगने की एक और घटना हुई थी, जिसमें कोई हताहत तो नहीं हुआ लेकिन इस घटना से आसपास में रखे कुछ सामान जलकर राख हो गए।

जानकारी के मुताबिक पिघला हुआ लोहा जिसको लिक्विड कहते हैं, जिसे गिरा कर राॅड या प्लेट बनाया जाता है। लिक्विड जिस रास्ते से गिराया जाता है उस रनर में छेद हो जाने के कारण वह लिक्विड नीचे गिरना शुरू हो गया जिसके कारण नीचे रखे सामान जलकर राख हो गए। खैरियत यह रही कि नीचे कोई मजदूर नहीं था।

इसी तरह आए दिन दुर्घटना होती रहती है। प्लांट में सेफ्टी का ज्यादा महत्व नहीं है। सही से मेंटेनेंस भी नहीं किया जाता है, जिस कारण ऐसी घटनाएं होती हैं। वैसे तो वेदांता इलेक्ट्रोस्टील सेफ्टी के मामले में बहुत आगे रहने की कोशिश करता है, जो केवल पेपर पर ही सिमट कर रह जाता है, धरातल पर नहीं उतरता है।

Vedanta Electrosteel 5
कंपनी में हादसे से लगी आग को बुझाते कर्मचारी

वेदांता इलेक्ट्रो स्टील प्लांट की मौजूदा स्थिति से अवगत कराने से पहले यह बताना जरूरी हो जाता है कि इसकी नींव इलेक्ट्रो स्टील कंपनी के नाम से लगभग 2005-2006 में रखी गई थी।

सैकड़ों की संख्या में चीनी नागरिकता वाले कारीगरों, इंजीनियरों और तकनीशियनों की मदद से वर्ष 2008-09 में इलेक्ट्रो स्टील नामक कम्पनी अस्तित्व में आयी। बाद के दिनों में परिस्थितिवश इलेक्ट्रो स्टील ने इसे वेदांता ग्रुप के हाथों बेच दिया और वेदांता ग्रुप ने इसका नाम वेदांता इलेक्ट्रो स्टील कर दिया।

क्षेत्र के ग्रामीण प्लांट को स्थापित करने के लिए किसानों ने अपनी कृषि योग्य जमीन कंपनी को दी थी, लेकिन कंपनी ने इनके साथ बड़ी नाइंसाफी की। इस जमीन को जमीन दलालों और भू-माफियाओं के द्वारा लिया गया। जिस वक्त इस जमीन को लिया जा रहा था, उस वक्त यहां के लोगों को 350 से 850 रुपये प्रति डिसमिल की कीमत पर भुगतान किया गया था।

इस प्लांट को स्थापित करने के लिए जिन गांव के लोगों ने जमीन दी, उनमें भागाबांध, मोदीडीह, चंदाहा, कुमारटाड़, सियालजोरी, अलकुसा, गिद्ध टाड़, भंडारीबांध, मोहाल, तेतुलिया इत्यादि गांव शामिल हैं। इन गांवों के लोगों ने इस आशा और विश्वास के साथ जमीन दी थी कि यहां के लोगों को नौकरी और रोजगार दिया जाएगा।

लेकिन 20% जमीन दाताओं को ही रोजगार दिया गया है, बाकी 80 फ़ीसदी रैयतों को अभी तक रोजगार नहीं दिया गया है और आज स्थिति यह है कि प्रभावित गांव के लोगों को आधार कार्ड देखते ही उनके पेपर को डस्टबिन में फेंक दिया जाता है।

रैयतों का 350 से 850 रुपये प्रति डिसमिल की दर से जमीन का जो मुआवजा बनता था, उसे भी पूरी तरह से भुगतान नहीं किया है, रैयत आज भी प्लांट का चक्कर लगा रहे हैं।

Vedanta Electrosteel 3
कंपनी के अंदर काम कर रहा मजदूर

बांधडीह रेलवे साइडिंग में जिसमें रॉ-मेटेरियल की ढुलाई ईएसएल वेदांता के द्वारा बड़े वाहनों से की जाती है, जिसमें ओवरलोड की शिकायत उपायुक्त और आरटीओ से कई बार की गई फिर भी ओवरलोड कम नहीं हुआ। इसके कारण प्रदूषण भी बहुत फैलता है, पेड़ पौधे पूरी तरह काली गंदगी से भरे हुए हैं।

रोड के किनारे जो भी मकान हैं, उनके भी रंग काले हो गए हैं। जिस कारण यहां रहने वाले लोग टीबी, दमा सहित कई सांस की बीमारियों को झेलने को मजबूर हैं। इन बीमारियों के कारण बांधडीह गांव के दो से तीन लोगों की मौत भी हो चुकी है।

रेलवे साइडिंग में लगभग 600 से 800 मजदूर कार्य करते हैं, परंतु इन मजदूरों को ना ही पीएफ और ना ही ईएसआई का कोई लाभ मिल पाता है। इस विषय पर लगभग सात-आठ बार आंदोलन भी किया गया। लेकिन अभी तक मजदूरों के पीएफ और ईएसआई की व्यवस्था नहीं की गई है। जिस वजह से यहां के मजदूरों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

वहीं रेलवे साइडिंग में सेफ्टी की भी सुविधा नहीं रखी जाती है, जिसके कारण कई बार दुर्घटना हो चुकी है। बताना जरूरी हो जाता है कि प्लांट के अंदर सेफ्टी का कोई भी इन्तजाम नहीं रखा गया है, जिस कारण ऑक्सीजन प्लांट में वर्ष 2017-18 के बीच एक विस्फोट हुआ था जिसमें कई मजदूर घायल हुए थे।

इस विस्फोट का नतीजा यह रहा कि विस्फोट का जो मलबा निकला वह मलबा भागाबांध गांव के घरों में घुस गया था। एक तरह से भागाबांध गांव प्लांट की चहारदीवारी में कैद है। जिस कारण कभी भी गांव के लोगों को कोई बड़ी दुर्घटना होने पर अपनी जान गंवानी पड़ सकती है। 2 वर्ष के भीतर यहां अलग-अलग दुर्घटनाओं में 8 से 15 लोगों की मौत हो चुकी है।

2020 से 21 के बीच यहां बीएफ 2 ब्लास्ट फर्नेस टू में एक लिफ्ट में दुर्घटना होने के कारण तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी। करीब 2 से 3 महीने पहले प्लांट के अंदर 220 केवीए एमआरएसएस साइडिंग में बिजली के शार्ट सर्किट के कारण बहुत बड़ा विस्फोट हुआ, जिसमें 10 से 15 लोगों की मौत हुई थी। जबकि प्रशासनिक और कंपनी के आंकड़ों के हिसाब से 3 लोगों को मृत घोषित किया गया था। इसी तरह आए दिन प्लांट के भीतर भी छोटी बड़ी दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

Vedanta Electrosteel 4
कंपनी में लगी आग

अधिकारी जबरन मजदूरों से काम करवाते हैं और मना करने पर प्लांट से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, जिसकी वजह से मजदूर भी बंधुआ मजदूर की तरह कार्य कर रहे हैं। यह जांच का विषय है मगर प्रशासनिक मिलीभगत से सबकुछ हो रहा है।

एक समाजिक कार्यकर्ता सनाउल अंसारी बताते हैं कि वेदान्ता इलेक्ट्रो स्टील ने सरकारी सांठगांठ करके अपनी हेकड़ी इस तरह से जमा ली है कि कोई भी कानून या सरकारी संस्था उसके लिए मायने नहीं रखती है। श्रम विभाग और प्रदूषण नियमों को हमेशा ठेंगा दिखाना इसकी परिपाटी है।

लगातार सुरक्षा मानकों की अवहेलना के कारण आए दिन दुर्घटना होना आम बात है। सुरक्षाकर्मी लोकल गुंडे का किरदार निभाने के लिए रखे गये हैं, जिनका काम स्थानीय लोगों को आतंकित करना रह गया है। बेतरतीब ढंग से ट्रैफिक संचालन और माल ढुलाई के कारण सड़क दुर्घटना होना आम बात है। कारखाने में सेफ्टी का कोई इन्तजाम नहीं है।

(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of

guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles

2012 से ही अडानी की दो ऑफशोर शेल कंपनियां I-T रडार पर थीं

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में अडानी समूह की जिन कंपनियों का जिक्र हुआ है उनमें...

पहलवानों पर किन धाराओं में केस दर्ज, क्या हो सकती है सजा?

दिल्ली पुलिस ने जंतर-मंतर पर हुई हाथापाई के मामले में प्रदर्शनकारी पहलवानों और अन्य...