बनारसः एनजीटी ने यूपी सरकार से पूछा-सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बिना कछुआ सेंक्चुअरी कैसे हटाई गई?

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वाराणसी। उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा पार बसाई गई टेंट सिटी को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रधान पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार से तीखे सवाल किए हैं। एनजीटी ने सरकारी वकीलों से स्पष्ट रूप से पूछा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में किसी भी अभयारण्य को डीनोटिफाई करने पर रोक लगाई हुई है, तो फिर वाराणसी में कछुआ सेंक्चुअरी को किन आधारों पर डीनोटिफाई किया गया और वहां टेंट सिटी कैसे बसा दी गई? अदालत ने यह भी जानना चाहा कि सेंक्चुअरी हटाने के बाद वहां के कछुए और अन्य जलीय जीव-जंतु कहां चले गए? क्या उन्हें समाप्त कर दिया गया या किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया गया?

एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल की पीठ ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि जब सरकार स्वयं मानती है कि गंगा में नाले गिर रहे हैं और कछुए गंगा की सफाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, तो फिर सेंक्चुअरी की अधिसूचना को रद्द करने का क्या औचित्य था? इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

बनारस में गंगा की रेती पर तंबुओं का शहर बसाया गया था

एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को तीन सप्ताह के भीतर पूरे मामले पर विस्तृत रिपोर्ट और भविष्य की योजना को लेकर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि केवल सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन ही नहीं, बल्कि आगे की रणनीति भी अहम है।

करीब दो साल पहले वाराणसी में गंगा पार रेतीले मैदान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटित पांच सितारा कॉटेज और टेंट सिटी को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। एनजीटी के सख्त रुख को देखते हुए टेंट सिटी बसाने वाली गुजरात की दोनों कंपनियां – निरान और प्रवेग – पीछे हट गई हैं।

सरकार के वकील का जवाब

उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल एंपावरमेंट कमेटी (CEC) ने कछुआ सेंक्चुअरी को डीनोटिफाई करने के लिए एक अंतरिम याचिका दाखिल की थी। लेकिन सरकार यह स्पष्ट नहीं कर पाई कि इस अंतरिम याचिका के आधार पर बिना सुप्रीम कोर्ट की अंतिम मंजूरी के सेंक्चुअरी को हटाने और टेंट सिटी बसाने का निर्णय कैसे लिया गया?

याचिकाकर्ता सौरभ तिवारी ने बहस के दौरान सवाल उठाया कि टेंट सिटी बसाने वाली कंपनियों पर पर्यावरणीय हर्जाने के रूप में 34 लाख 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था, लेकिन अब तक इसकी वसूली नहीं हुई। इस पर एनजीटी ने सरकार से जवाब मांगा कि यह जुर्माना अब तक क्यों नहीं वसूला गया?

बनारस की गंगा का एक सच यह भी

सरकारी वकील ने जवाब दिया कि इस संबंध में पत्र लिखकर जल्द ही कार्रवाई करने की योजना बनाई जा रही है। अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया कि सरकार हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करे कि अब तक इस राशि की वसूली क्यों नहीं हुई और उसकी वर्तमान स्थिति क्या है? एनजीटी ने स्पष्ट किया कि इस मामले में अगली सुनवाई 26 मई को होगी, जहां सरकार को अपनी विस्तृत रिपोर्ट और भविष्य की योजना पेश करनी होगी।

कछुओं घर कैसे बदल गया?

जनवरी 2024 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने टेंट सिटी बसाने और कछुआ सेंचुरी को स्थानांतरित करने के मामले में कड़ी नाराजगी जाहिर की। एनजीटी ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से तीखा सवाल किया कि “बनारस के कछुओं को कैसे पता कि उनका घर बदल गया है?” किसी भी सेंचुरी का दायरा बढ़ाया या घटाया जा सकता है, लेकिन उसे स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।

एनजीटी की प्रधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद वाराणसी के कलेक्टर को निर्देश दिया कि टेंट सिटी बसाने वाली दोनों कंपनियों से पर्यावरणीय जुर्माना वसूलकर सरकारी खजाने में जमा कराया जाए। इन कंपनियों पर समान रूप से 17 लाख 12 हजार 500 रुपये का जुर्माना लगाया गया था। पहले केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के सचिव पर नियमों के उल्लंघन के कारण 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था, जिसे बाद में घटाकर 5 हजार रुपये कर दिया गया। मंत्रालय ने जुर्माना पूरी तरह समाप्त करने का अनुरोध किया था, लेकिन इसे पूरी तरह खारिज कर दिया गया।

वाराणसी के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने 2023 में एनजीटी में एक याचिका दायर कर टेंट सिटी परियोजना को रद्द कराने और कछुआ सेंचुरी को स्थानांतरित किए जाने के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने तर्क दिया कि कुछ लोगों के ऐशो-आराम के लिए पर्यावरण कानूनों की अनदेखी की गई और गंगा के कछुओं को खतरे में डाल दिया गया। उनका कहना था कि कछुआ सेंचुरी की सीमा में परिवर्तन किया जा सकता है, लेकिन कछुओं को जबरन किसी दूसरी जगह नहीं भेजा जा सकता।

रेत पर लगाए गए थे टेंट

एनजीटी के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 13 जनवरी 2024 को सुनवाई के दौरान पर्यावरण मंत्रालय की तीखी आलोचना की। ट्रिब्यूनल ने सवाल किया कि जब कछुआ सेंचुरी को हटाने की अधिसूचना जारी की गई, तो कछुओं को इसकी जानकारी कैसे मिली? वे आखिर गए कहां? एनजीटी ने स्पष्ट किया कि कछुआ सेंचुरी केवल कागजों पर नहीं हटाई जा सकती, क्योंकि इसे घोषित करने का आधार ही वहां के कछुओं की उपस्थिति थी।

6 फरवरी 2024 को एनजीटी के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फिर सवाल उठाया कि आखिरकार कछुआ सेंचुरी को स्थानांतरित करने की जरूरत ही क्यों पड़ी? क्या कोई प्राकृतिक वास स्थान किसी और जगह ले जाया जा सकता है? कछुए वहीं बसते हैं, जहां का वातावरण उनके लिए उपयुक्त होता है। ट्रिब्यूनल ने वाराणसी के कलेक्टर को निर्देश दिए कि दोनों कंपनियों से जुर्माना वसूला जाए, लेकिन प्रशासन ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की।

2023 में वाराणसी में गंगा किनारे निरान और प्रवेग नामक दो निजी कंपनियों ने टेंट सिटी स्थापित की थी। यह अस्थायी शहर धनाढ्य वर्ग के लिए एक लग्जरी होटल की तरह था, जहां एक कॉटेज के लिए 25-30 हजार रुपये तक वसूले गए। इस टेंट सिटी में बिना किसी पर्यावरणीय अनुमति के कार्यक्रम और शादियां आयोजित की गईं, जिससे गंगा की पवित्रता को नुकसान पहुंचा।

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि टेंट सिटी परियोजना पूरी तरह से वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए चलाई गई थी, जो वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक साबित हुई। परियोजना संचालकों ने “नदी गंगा (पुनर्जीवन, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण के आदेश-2016” का पालन नहीं किया। एनजीटी ने इस परियोजना में हुई अनियमितताओं की जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित की, जिसने 24 मई 2023 को रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में बताया गया कि कंपनियों ने बिना आवश्यक अनुमति लिए ही टेंट सिटी का संचालन किया और जल एवं वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियमों का उल्लंघन किया।

एनजीटी की सख्ती

30 अक्टूबर 2023 को एनजीटी ने कहा कि वाराणसी में गंगा के किनारे टेंट सिटी एक मौसमी गतिविधि के रूप में चलाई गई थी। 16 जनवरी 2023 को इसे संचालित किया गया और 31 मई 2023 को मॉनसून से पहले इसे बंद कर दिया गया। लेकिन जब मामला ट्रिब्यूनल में पहुंचा, तो 15 दिसंबर 2023 को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के सदस्य सचिव को तलब किया गया। ट्रिब्यूनल ने पूछा कि गंगा किनारे पर्यावरण कानूनों का इतना बड़ा उल्लंघन कैसे हुआ? अवैध कंक्रीट संरचनाओं का निर्माण क्यों किया गया और अब तक दोषियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि टेंट सिटी की निर्माण सामग्री और अन्य संरचनाएं अभी भी गंगा किनारे पड़ी हुई हैं। एनजीटी ने यूपीपीसीबी के सदस्य सचिव को चेतावनी दी कि यदि इस पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्हें भी जवाबदेह ठहराया जाएगा। अदालत में सुनवाई के दौरान यह भी सामने आया कि टेंट सिटी परियोजना को लेकर प्रशासन ने कई पर्यावरणीय मानकों की अनदेखी की। गंगा की पारिस्थितिकी को संरक्षित रखने के लिए बनाए गए नियमों के उल्लंघन की बात भी रिपोर्ट में स्पष्ट हुई। न्यायाधिकरण ने प्रशासन से यह स्पष्ट करने को कहा कि जब पहले ही इस परियोजना पर आपत्ति जताई जा रही थी, तो इसके संचालन की अनुमति क्यों दी गई?

विशेषज्ञों का कहना है कि टेंट सिटी जैसी परियोजनाएं गंगा की जैव विविधता को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। गंगा में रहने वाले जलीय जीव, विशेषकर डॉल्फिन और अन्य दुर्लभ प्रजातियां, इस प्रकार के हस्तक्षेप से प्रभावित होती हैं। एनजीटी ने इस मुद्दे पर सरकार और संबंधित एजेंसियों को कड़ा संदेश दिया है कि किसी भी तरह के निर्माण से पहले पर्यावरणीय प्रभाव का पूरी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए।

गंगा की पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए बनाए गए विभिन्न नियमों के बावजूद टेंट सिटी परियोजना को शुरू किया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह परियोजना फिर से शुरू की जाती है, तो यह न केवल गंगा के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि इससे जुड़ी कानूनी अड़चनों के कारण प्रशासन की साख पर भी असर पड़ेगा।

बनारस के पर्यावरणविदों का कहना है कि गंगा के किनारे इस तरह की गतिविधियां नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर सकती हैं और इससे भूजल स्तर पर भी असर पड़ेगा। पहले से ही जलवायु परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण के कारण गंगा की स्थिति खराब हो रही है, ऐसे में टेंट सिटी जैसी परियोजनाएं संकट को और बढ़ा सकती हैं।

बनारस के एक्टिविस्ट डा.लेनिन रघुवंशी कहते हैं, “एनजीटी का यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। टेंट सिटी परियोजना ने न केवल गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचाया, बल्कि पर्यावरणीय कानूनों का भी खुला उल्लंघन किया। गंगा के कछुओं के प्राकृतिक आवास से छेड़छाड़ कर उन्हें अनिश्चित भविष्य में धकेल दिया गया। एनजीटी के आदेश के बावजूद अभी तक प्रशासन की ओर से अपेक्षित कार्रवाई नहीं की गई है। यह जरूरी है कि पर्यावरणीय नियमों को सख्ती से लागू किया जाए और भविष्य में इस तरह की अवैध परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए।”

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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