पंचायत चुनावः पांच साल तक गरीब ढोते रहे वादों की लादी

Estimated read time 1 min read

14वें वित्त, मनरेगा और स्वच्छ भारत मिशन का वार्षिक औसत निकाला जाए तो एक पंचायत को लगभग 20 लाख से 30 लाख रुपये मिलते हैं। इन्हीं पैसों से पानी की व्यवस्था, घर के सामने की नाली, सड़क, शौचालय, स्कूल का प्रबंधन, साफ-सफाई और तालाब बनते हैं, लेकिन पंचायत स्तर पर ग्रामीणों को बहुत कुछ नहीं बताया जाता। नतीजन बहुत सी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रहीं और जनता विवश सी चुपचाप देखती रही। अब जब यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज हुई है तो अधिकांश पंचायतों में विपक्ष के लोग भी विभिन्न मुद्दों को लेकर जनता के सामने हैं। – एलके सिंह, बलिया, यूपी

यूपी में ग्राम पंचायतों की अवधि 25 दिसंबर को पूर्ण हो रही है। ग्राम पंचायत चुनाव को करीब देख, संभावित उम्मीदवार गांवों में सक्रिय हो चले हैं। गांव के बाजारों में या घर-घर जाकर मतदाताओं से संपर्क कर उनका विश्वास जीतने में लगे हैं, लेकिन कहीं भी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार पर कोई बात होते नहीं दिख रही है। एक बार फिर आम जनमानस के सामने धनकुबेर के कोष के दम पर ही अधिकांश प्रत्याशी प्रधान बनने का रास्ता अख्तियार करने लगे हैं।

पब्लिक मान रही कि इसी वजह से पंचायतों में सामाजिक पतन होने लगा है। डंके की चोट पर गरीबों का हक अपात्र खा रहे हैं। जांच के कई तरह के प्रावधान के बावजूद कई बड़ी योजनाओं में खुला भ्रष्टाचार सामने है। कोई गरीब आदमी अपने हक की मांग को लेकर यदि आवाज उठाता भी है तो उसकी आवाज को घर के अंदर ही दबा दिया जा रहा है, जबकि ग्रामीण भारत की तरक्की के लिए सरकारें तमाम योजनाएं इन्हीं पंचायतों के जरिए चला रही हैं।

एक पंचायत को वार्षिक मिलते हैं 20 से 30 लाख
14वें वित्त, मनरेगा और स्वच्छ भारत मिशन का वार्षिक औसत निकाला जाए तो एक पंचायत को लगभग 20 लाख से 30 लाख रुपये मिलते हैं। इन्हीं पैसों से पानी की व्यवस्था, घर के सामने की नाली, सड़क, शौचालय, स्कूल का प्रबंधन, साफ-सफाई और तालाब बनते हैं, लेकिन पंचायत स्तर पर ग्रामीणों को बहुत कुछ नहीं बताया जाता। नतीजन बहुत सी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती रहीं और जनता विवश हाल में चुपचाप देखती रही।

अब जब यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मी तेज हुई है तो अधिकांश पंचायतों में विपक्ष के लोग भी विभिन्न मुद्दों को लेकर जनता के सामने हैं। यही लोग पांच साल तक पूरी तरह चुप्पी साधे रहे, विभिन्न योजनाओं में भ्रष्टाचार खुली आंखों से देखते रहे, लेकिन अब उनके हमलावर होने से गांवों में चुनावी पारा चढ़ने लगा है। मनरेगा, जॉब कार्ड, प्रधानमंत्री प्लस, शौचालय निर्माण, सड़क निर्माण, साफ-सफाई, शिक्षा आदि के मुद्दे रोज उछल रहे हैं।

गरीबों के अंत्योदय का हाल
सरकार ने गरीब असहाय व्यक्तियों के लिए अंत्योदय कार्ड की व्यवस्था की है। यह कार्ड ऐसे गरीबों के लिए है, जिनके जीने का कोई आधार नहीं है, लेकिन कई वर्षों से इस सूची में भारी संख्‍या में कोटेदारों और पूर्व प्रधानों के परिजन,  सुखी संपन्न लोग शामिल होकर गरीबों का हक लंबे समय से खा रहे हैं। राशन कार्ड की डिजिटल सूची में सब कुछ दिख रहा है। कई कोटेदोरों ने तो अपने घर के ऐसे व्यक्ति का नाम इसमें शामिल करवा रखा है, जो नौकरी करने वाले हैं। कितनों की शादी नहीं हुई है, लेकिन काल्पनिक पत्नी के नाम अंत्योदय कार्ड चल रहा है।

वहीं गांव में असंख्य विधवा महिलाएं, प्रतिदिन मजदूरी कर अपना पेट पालने वाले लोग इस सूची से गायब हैं। वे संकट के दौर से गुजरते हुए बेहतर दिनों की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन प्रधान बनने के इच्छुक उम्मीदवारों या वर्तमान प्रधानों की ओर से इस मुद्दे पर कोई बहस नहीं हो रही। यही वजह है कि संबंधित विभाग ने भी गरीबों का हक खाने के लिए अपात्रों को खुली छूट दे रखी है।

मनरेगा में मजदूरी नहीं करने वालों के नाम जॉब कार्ड
यही हाल जॉब कार्ड में भी है। इसमें भी मजदूरी करने वाले लोग काफी कम संख्या में हैं। उनका ही नाम ज्यादा दिख रहा है जिन्होंने कभी न तो मजदूरी की है, और न अभी भी मजदूरी कर रहे हैं। इसके बावजूद यह मुद्दा पंचायतों से गायब है। इससे भी बड़ा भ्रष्टाचार मनरेगा के तहत हो रहे कार्यों में देखने को मिल रहा है। पंचायतों में मनरेगा के तहत कार्य जेसीबी से करा दिए जाते हैं और उस कार्य का भुगतान जॉबकार्ड पर लिया जाता है। ऐसे में जिनके नाम जॉब कार्ड हैं, उन्हें इसके एवज में कुछ 200 से 500 रुपये देकर बाकी रकम संबंधित ठकेदार ले लेते हैं। 

दो से अधिक बच्चे वालों में अलग हलचल
दो से अधिक बच्चों वालों के चुनाव लड़ने पर रोक की बात से पंचायतों में हलचल मची है। ग्राम पंचायत चुनाव समय पर होंगे या टलेंगे, अभी तक कोई गाइड लाइन्स जारी नहीं हुई है। मतदाता सूची ठीक कराने के कार्य में चुनाव आयोग जुट गया है। जनवरी-2021 में ग्राम पंचायत चुनाव के एलान की संभावना जतायी जा रही है।

आर्थिक जनगणना का गेम अब आया सामने
देश भर में वर्ष 2011 में हुई आर्थिक जनगणना में अंदरखाने का गेम अब सामने आ रहा है। तब जनगणना करने वाले कर्मचारियों ने जिन्हें कागज में गरीब दिखाया, उसके दुख के दिन अब विभिन्न योजनाओं के लाभ के जरिए दूर हो चले हैं। उन्हें प्रधानमंत्री आवास, आयुष्मान योजना, सौभाग्य योजना, उज्ज्वला योजना, अंत्योदय आदि का लाभ बिना किसी सिफारिश के घर के कई सदस्यों को मिला। वहीं जो लोग वास्तव में गरीब हैं, लेकिन उक्त जनगणना में गरीब नहीं दिखाए गए, वह अभी भी गरीबी की चादर में लिपटे अपने उद्धार की राह देख रहे हैं। उनके ऊपर न तो ग्राम प्रधानों का ध्यान है और न अफसरान का। यह स्थिति अब नई जनगणना के बाद ही बदल पाएगी।

(एलके सिंह बलिया, यूपी के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author