‘ये जो कुल्हाड़ी पेड़ में मारी, तुमने अपने पैर पे मारी’

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देहरादून। देहरादून-दिल्ली एक्सप्रेस-वे के लिए आशारोड़ी रेंज में साल के सैकड़ों साल पुराने जंगल को काटने का काम लगातार जारी है। दूसरी तरफ दून के सामाजिक संगठन और पर्यावरण प्रेमियों की ओर से किया जा रहा प्रदर्शन का सिलसिला भी लगातार जारी है। रविवार को एक बार फिर विभिन्न संस्थाओं से जुड़े लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता मोहंड के जंगल पहुंचे। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर प्रदर्शनकारियों को हटाने के साथ ही काम शुरू करवाया, लेकिन काटकर गिराये गये पेड़ों की जिस भी शाखा पर ठेकेदार के मजदूरों ने कुल्हाड़ी चलाने का प्रयास किया, प्रदर्शनकारी उन शाखाओं पर बैठे गये। यह सिलसिला कई घंटों तक चलता रहा। बाद में मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारी के पास एक फोन आया। इसके तुरंत बाद अधिकारी ने मजदूरों को चले जाने के लिए कहा। पुलिस खुद भी मौके से लौट गई। कई घंटे तक प्रदर्शन करने के बाद प्रदर्शनकारी लौट गए और इसके बाद फिर से पेड़ों को गिराने का काम शुरू कर दिया गया।

पेड़ों का यह कटान दिल्ली से देहरादून के सफर का समय कम करने के नाम पर किया जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने के बाद दिल्ली से देहरादून ढाई घंटे में पहुंच जाएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी एक ट्वीट में कुछ दिन पहले यह दावा किया। यह एक्सप्रेस हाईवे 3 किमी देहरादून की सीमा में और 8 किमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले की सीमा घने जंगलों से होकर गुजरेगी, जो शिवालिक पहाड़ियों का हिस्सा है। शिवालिक पहाड़ियों के जंगल अपनी जैव विविधता के लिए मशहूर हैं।

यहां सबसे ज्यादा संख्या में साल और सागौन के पेड़ हैं। ज्यादातर पेड़ों की उम्र सौ वर्ष से ज्यादा है। सड़क चौड़ी करने के लिए करीब 14 हजार पेड़ काटे जाने की बात कही गई है। लेकिन, इस गिनती में सिर्फ बड़े पेड़ ही शामिल किये गये हैं। छोटे और मझोले पेड़ कितने काटे जाएंगे, इसकी कोई गिनती रखने की जरूरत नहीं समझी गई। आशोरोड़ी और मोहंड का यह क्षेत्र राजाजी नेशनल पार्क का हिस्सा है। यह हाथियों का गलियारा है और टाइगर व चीते सहित सैकड़ों प्रजाति के वन्य जीव, पक्षी और तितली प्रजाति की हजारों स्पीशीज का यह इलाका पसंदीदा निवास है। 

काटे जा रहे पेड़ों के आगे जमा हो गए लोग

जंगलों के काटने के खिलाफ इस प्रदर्शन की अगुवाई कर रही संस्था सिटीजन फाॅर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा कहते हैं, दिल्ली से देहरादून वापस लौटते हुए घुमावदार पहाड़ियां शुरू होते ही पहाड़ों का खुशनुमा एहसास मन को तरोताजा कर देता है। गाड़ी की रफ्तार कुछ धीमी रखें तो एक तरफ चौड़ी सफेद घुमावदार नदी तो दूसरी तरफ पुराने साल के पेड़ों की छनकर आती धूप उल्लास से भरती है। चिड़ियों और झींगुरों की आवाज और ठंडी हवा के झोंके बताते हैं कि हम अब मैदानों के धूल-धूसरित वातावरण को छोड़कर प्रकृति के सानिध्य में पहुंच चुके हैं। अरोड़ा कहते हैं कि यह चौड़ी सड़क देहरादून आने वालों से यह खुशनुमा एहसास छीन लेगी। सौ किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भागने वाली गाड़ियों में बैठे लोगों को यह सब देखने और महसूस करने का समय ही नहीं मिल पाएगा।

सोशल एक्टिविस्ट इरा चौहान कहती हैं, इस एक्सप्रेस-वे के बन जाने से दो-ढाई घंटे में दिल्ली पहुंचने और यह हाईवे पर्यटन उद्योग साबित होने का झांसा दिया गया है। इसके खतरों से अनजान भोली-भाली जनता इस तथाकथित विकास के प्रचार-प्रसार में शामिल हो गई है, वह नहीं समझ पा रही है कि हम देहरादून को देश के तमाम अन्य शहरों की तरह एक गर्म, दुर्गम, प्रदूषित और भीड़भाड़ वाले शहर में बदलने की राह पर चल पड़े हैं। प्रदर्शन में शामिल सोशल एक्टिविस्ट प्रेम बहुखंडी कहते हैं, देहरादून के 50 प्रतिशत लोग दिल्ली जाते ही नहीं, 25 प्रतिशत लोग साल में एक-दो बार जाते हैं। 10-15 प्रतिशत महीने में एक-दो बार। सिर्फ 5 प्रतिशत लोग ही इस हाईवे से नियमित रूप से दिल्ली आते-जाते हैं। वे सवाल उठाते हैं कि क्या इसलिए हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है कि ये 5 प्रतिशत लोग 10 मिनट जल्दी पहुंच जाएं। 

अच्छी संख्या में हुई युवती और युवाओं की भागीदारी

प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचे भारत ज्ञान विज्ञान समिति के विजय भट्ट कहते हैं, जलवायु परिवर्तन आज के दौर की बड़ी चुनौती है। पूरी दुनिया में सतत विकास की बात कही जा रही है। हमारा देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास लक्ष्य को लागू करने के समझौते का हिस्सा है, भाषणों में सतत विकास की खूब बात होती है, लेकिन जब धरातल पर काम करने का वक्त आता है तो कभी ऑल वेदर रोड के नाम पर लाखों पेड़ काटकर कुछ हजार बताये जाते हैं तो कभी दिल्ली पहुंचने में देरी न हो, इसके लिए हजारों साल पुराने जंगल का सफाया किया जाता है। वे कहते हैं फिलहाल यह रोड़ पर्याप्त चौड़ी है। इससे ज्यादा चौड़ी सड़क जरूरत नहीं सिर्फ हवस है। 

युवा निभा रहे भागीदारी

इस प्रदर्शन की सबसे खास बात यह रही कि युवाओं ने इसमें अच्छी संख्या में शिरकत की। इस दौर में जब युवाओं का एक बड़ा वर्ग साम्प्रदायिक जहर भरे व्हाट्सअप मैसेज फाॅरवर्ड करने को अपनी शान समझ बैठा है, ऐसे में जंगल बचाने के आंदोलन में युवाओं की भागीदारी आश्वस्त करती है कि है कि हमारा भविष्य निराशाजनक नहीं है। छात्राओं के संगठन पराशक्ति से जुड़ी छात्राओं ने जब ‘ये जो कुल्हाड़ी, पेड़़ पे मारी, तुमने अपने पैर पे मारी’, गाया तो जंगल काटे जाने से सामने आने वाले दुष्परिणामों की तस्वीर जेहन में उभर गई। छात्र संगठन एसएफआई के जुड़े छात्रों ने डफली की थाप पर कई जनगीत गाये। 

रविवार को किये गये प्रदर्शन में जिन प्रमुख संगठनों ने हिस्सा लिया, उनमें सिटीजन फाॅर ग्रीन देहरादून, द अर्थ एंड क्लाइमेट चेंज इनिशिएटिव, पराशक्ति, एसएफआई, भारत ज्ञान विज्ञान समिति, उत्तराखंड महिला मंच, तितली ट्रस्ट, आघास, फ्रेंड्स ऑफ दून, खुशियों की उड़ान आदि शामिल थे। इन सभी संगठनों की सोमवार शाम को एक बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में जंगल काटे जाने के खिलाफ आंदोलन की रणनीति तैयार करने पर बात की जाएगी। समझा जाता है कि सभी संगठन एक मत से इस आंदोलन को आगे बढ़ाने पर सहमत हैं। आंदोलन किस तरह से आगे बढ़ाया जाएगा, इस पर बात की जानी है।

(देहरादून से वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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