Sunday, April 28, 2024

लातेहार: आदिवासियों की पारंपरिक ग्रामसभा में प्रशासन ने गैर आदिवासी को प्रधान चुना, ग्रामीणों में आक्रोश

लातेहार। झारखंड के लातेहार जिला के जिला पंचायत राज पदाधिकारी द्वारा आदिवासियों की पारंपरिक व्यवस्था- ग्रामसभा प्रधान के लिए एक गैर आदिवासी का चुनाव करने के बाद से क्षेत्र के आदिवासी विचलित ही नहीं काफी आक्रोशित हैं। उन्होंने इस चुनाव के खिलाफ उच्च अधिकारियों से गुहार लगाने का निर्णय लिया है। इसके बाद भी बात नहीं बनी तो आदिवासियों ने न्यायालयों का दरवाजा भी खटखटाने का निर्णय लिया है।

जिला पंचायत राज पदाधिकारी के पत्रांक 297, दिनांक 23/06/2023 में मनिका प्रखंड के दुन्दु गांव में अलग नई ग्राम सभा ईकाई बनाने को लेकर गांव के एक गैर आदिवासी अख्तर अंसारी को ग्राम प्रधान नियुक्त करने का उल्लेख है।

नये प्रधान चुनाव सम्बन्धी आदेश से ग्राम सभा दुन्दु के आदिवासी समुदाय के लोग काफी आक्रोशित हैं। मामले पर विगत 13 अगस्त को उन्होंने दुन्दु पंचायत सचिवालय में ग्राम प्रधान राजेश्वर सिंह की अध्यक्षता में एक आपात बैठक कर एक स्वर में सरकारी अधिकारियों के पत्रों/आदेशों को संदिग्ध करार दिया। लोगों ने कहा कि सरकारी पत्रों में किसी संवैधानिक, क़ानूनी या नियमावली का उल्लेख नहीं है। लेकिन दुन्दु, चौकिया टोला निवासी अख्तर अंसारी को नामित कर आदेशित किया गया है कि उसे ही ग्राम प्रधान चुना जाए।

लोगों का कहना है कि वर्त्तमान में इसी करमाही टोला के पारम्परिक ईमानदार एवं संवैधानिक प्रक्रियाओं और कानून के जानकार ग्राम प्रधान राजेश्वर सिंह कार्यरत हैं। जिनकी वजह से बिचालियों और पंचायत प्रतिनिधियों को सरकारी योजनाओं में अवैध वसूली करने में बेहद मुश्किल हो रही है, इसी कारण प्रशासनिक अधिकारियों को मोहरा बनाकर साजिश रची जा रही है। वर्त्तमान में प्रखण्ड से लेकर जिले के अधिकारी भी बिचौलियों व ठेकेदारों के पोषक बने हुए हैं।

बैठक में कहा गया कि ग्रामीण अधिकारियों के असंवैधानिक मंसूबों को दुन्दु में सफल नहीं होने दिया जाएगा। ग्रामीणों का मानना है कि अख्तर अंसारी के ग्राम प्रधान चुने जाने से गांव के आदिवासी समुदाय में कई विसंगतियां पैदा होंगी। अब तक भाईचारे का जो माहौल कायम रहा है, उसमें भी दरारें पड़ेंगी।

यह आदिवासी बहुल गांव है और इनके पारंपरिक परब (त्योहार) सरहुल, सोहराई आदि में पशुओं की बलि चढ़ाई जाती है। इस रस्म को ग्राम प्रधान के हाथों ही संपन्न किया जाता है। इसलिए ऐसे मौके पर किसी गैर आदिवासी के प्रधान बनने से कई सामाजिक अड़चनें आएंगी, वहीं धार्मिक सौहार्द बिगड़ने की पूरी आशंका बनी रहेगी।

बैठक में कहा गया कि अधिकारियों को 5वीं अनुसूची क्षेत्र के मामले में निम्नलिखित संवैधानिक, क़ानूनी एवं रूढ़ी-परम्परा की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए। भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 (3) (क) के अनुसार रूढ़ी व प्रथा (अरी-चली) को विधि का बल प्राप्त है। जो आदिवासियों का अलिखित संविधान है। उल्लेखनीय है कि संविधान का अनुच्छेद 244 (भाग 10, अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र) की पांचवी अनुसूची के उपबंध किसी भी राज्य के अनुसूचित यानी आदिवासी बहुल क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होंगे।

वहीं भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेशों को किसी भी विधान मंडल या व्यवहार न्यायालय को अनुसरण करने की बात कही गयी है। नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत जो भी व्यक्ति संविधान को नहीं मानता हो या उल्लंघन करता हो तो उसकी नागरिकता स्वत: समाप्त हो जाती है। सुप्रीम कोर्ट (वेदांता 18. 04. 2013) के फैसले के अनुसार “लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊंची ग्रामसभा।”

बैठक में बताया गया कि पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 की धारा 4 (घ) के अनुसार प्रत्येक ग्रामसभा, लोगों की परम्पराओं और उनकी सांस्कृतिक पहचान, समुदाय के संसाधनों और विवाद निपटान के रूढ़ीजन्य ढंग का संरक्षण और परिरक्षण करने के लिए सक्षम होगी।

झारखण्ड ग्रामसभा का गठन, बैठक की प्रक्रिया एवं काम काज का संचालन नियमावली 2003 की कण्डिका 4 (1) एवं (2) में आवास या आवासों के समूहों के लिए अथवा छोटे गांव या गांव के टोलों का समूह, जिसमें समाविष्ट समुदाय परम्पराओं और रूढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलापों का प्रबंध करता हो, इनको एक प्रक्रिया अपनाते हुए अलग ग्रामसभा की मान्यता उपायुक्त के स्तर से प्रदान की जा सकती है। जबकि यहां अधिकारी ग्राम पंचायत के लिए गठित वार्डों को आधार बना रहे हैं, यह पेसा कानून के विपरीत है।

बैठक में बताया गया कि दुन्दु गांव की पारम्परिक रूढ़िगत व्यवस्थाएं और दुन्दु गांव में पूर्व से ही दो ग्राम प्रधान हैं, रामेश्वर सिंह और राजेश सिंह। दोनों का टोलावार कार्यक्षेत्र भी बंटा हुआ है। गांव में प्रथागत नियमानुसार उसी परिवार के किसी वरिष्ठ समझदार सदस्य को प्रधानी का भार दिया जाता है, जो इस गांव के जेठ रैयत (पहले-पहल गांव में बसने वाला रैयत) हैं। यहां टोलावार जेठ रैयत भी चिन्हित हैं, जिन्हें परम्परा से सरहुल पूजा के समय सर्वप्रथम सखुआ के पत्ते के दोना में प्रसाद स्वरूप गुड़ और फूल दिया जाता है। फिर गांव के पाहन (आदिवासी पुजारी) व उनके सहयोगियों द्वारा गांव के सभी वरिष्ठतम जेठ रैयतों के घरों में क्रमानुसार फूल पहुंचाया जाता है।

सरहुल के मौके पर सरहुली दाड़ी से सबसे पहले वह महिला पानी भरेगी जो दुन्दु गांव की जेठ रैयत के खानदान से वरिष्ठतम महिला हैं, फिर उससे ठीक छोटी। ऐसा ही क्रमवार चलता है। यदि इसमें एक सीढ़ी की भी चूक हो जाती है तो गांव में भयंकर विवाद उत्पन्न हो जाता है। जिसका निपटारा भी गांव के लोग ही कई-कई दिनों तक बैठक कर करते हैं। मांडर में पूजाई का विधान तब तक पाहन शुरू नहीं कर सकता है, जब तक जेठ रैयत के खानदान का कोई सदस्य नहीं पहुंच जाता है।

ऐसी अवस्था में किसी गैर आदिवासी का ग्रामसभा का प्रधान होने के कारण आदिवासियों परंपरागत पूजाई के विधान में विसंगतियों का पैदा होना स्वाभाविक हो जाता है।

प्रशासनिक पत्र/आदेश कई मायने में त्रुटिपूर्ण

जिला पंचायत राज पदाधिकारी, लातेहार के पत्रांक 297, दिनांक 23/06/2023 में अलग नई ग्राम सभा ईकाई बनाने एवं अख्तर अंसारी को ही ग्राम प्रधान नियुक्त करने का उल्लेख है। पहली बात तो यह कि संविधान के अनुच्छेद 243 (ड) के अनुसार सकुंती देवी, उपमुखिया, ग्राम पंचायत दुन्दु, अंचल मनिका, जिला लातेहार का ग्राम सभा के मामले में निर्णय लेने का कोई कानूनी या संवैधानिक अधिकार नहीं है। दूसरी बात यह कि अधिकारी द्वारा अख्तर अंसारी को ही ग्राम प्रधान नियुक्त करने हेतु एक हिसाब से नामित किया गया है। जिले के एक जिम्मेदार अधिकारी द्वारा भारत के संविधान का अनुच्छेद 244 की खुलेआम उल्लंघन किया गया है।

अंचल कार्यालय मनिका का पत्रांक 376, दिनांक 02/08/2023 के आदेश में ग्राम पंचायतों के वार्डों के हिसाब से ग्राम प्रधान चुनाव का उल्लेख किया गया है। साथ ही ग्राम पंचायत मुखिया की अध्यक्षता में बैठक करने की बात उल्लेखित है। बैठक में कहा गया कि उक्त सम्बन्ध में हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि झारखंड ग्रामसभा का गठन, बैठक की प्रक्रिया एवं काम काज का संचालन नियमावली 2003 की कण्डिका 5 (ग) के अनुसार ग्रामसभा बैठक की अध्यक्षता 5वीं अनुसूची क्षेत्र में परम्परा से प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार मान्यता प्राप्त व्यक्ति अर्थात ग्राम प्रधान ही कर सकते हैं।

साथ ही नए टोला ग्रामसभा का पुनर्गठन इस नियमावली 2003 की कण्डिका 4 (1) एवं (2) के आधार पर ही की जा सकती है न कि वार्ड के संख्याओं के आधार पर। ग्रामसभा दुन्दु के लोगों ने उपायुक्त लातेहार को आपत्ति पत्र सौंपते हुए इस गैर संवैधानिक प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग रखने का फैसला लिया है। उपायुक्त द्वारा कार्रवाई नहीं होने पर न्यायालयों का दरवाजा खटखटाने का निर्णय भी लिया गया है।

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं।)

               

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