राज्यसभा से राघव चड्ढा के निलंबन पर SC ने कहा- विपक्षी दल की आवाज को बाहर करना गंभीर मसला

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सुप्रीम कोर्ट ने आप नेता राघव चड्ढा को राज्यसभा से अनिश्चित काल के लिए निलंबित किए जाने पर चिंता व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा की याचिका पर सुनवाई की, ‌जिन्होंने राज्यसभा से अपने निलंबन को चुनौती दी है। चड्ढा को 11 अगस्त को मानसून सत्र के दौरान अनिश्‍चित काल के लिए निलंबित कर दिया गया था।

न्यायालय ने यह भी सवाल किया कि क्या विशेषाधिकार समिति किसी संसद सदस्य (सांसद) को अनिश्चित काल के लिए निलंबित करने का ऐसा आदेश जारी कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि “इस तरह के अनिश्चितकालीन निलंबन का असर उन लोगों पर पड़ेगा जिनके निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है? सदस्य को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की विशेषाधिकार समिति की शक्ति कहां है?”

सुप्रीम कोर्ट ने एक संसद सदस्य के अनिश्चितकालीन निलंबन और इसके लोगों के प्रतिनिधित्व करने के अधिकार पर पड़ने वाले प्रभाव पर गंभीर चिंता व्यक्त की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि आनुपातिकता के सिद्धांत को ध्यान में रखा जाना चाहिए और विपक्षी दल की आवाज को बाहर करना एक गंभीर मामला है। सीजेआई ने कहा- “हमें उन आवाज़ों को संसद से बाहर न करने के बारे में बहुत सावधान रहना चाहिए।”

चड्ढा को इस आरोप में निलंबित कर दिया गया था कि उन्होंने कुछ सदस्यों की इच्छा का पता नहीं लगाया, जिनके नाम जीएनसीटीडी (संशोधन) विधेयक 2023 के लिए चयन समिति के सदस्यों के रूप में उनके द्वारा प्रस्तावित किए गए थे। राज्यसभा सभापति ने चड्ढा को सदन द्वारा पारित एक प्रस्ताव के बाद विशेषाधिकार समिति द्वारा जांच लंबित रहने तक निलंबित कर दिया था।

सुनवाई के दौरान पीठ ने पूछा कि क्या चड्ढा की कार्रवाई संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन होगी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सदन के नियमों के अनुसार, चयन समिति के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के चरण में सदस्यों की सहमति आवश्यक है।

यह बताते हुए कि चड्ढा के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उन्होंने सदस्यों को चयन समिति में शामिल करने का प्रस्ताव देने से पहले उनकी इच्छा को सत्यापित नहीं किया था, सीजेआई ने पूछा कि क्या यह ऐसा उल्‍लंघन हो सकता है, जिस पर अनिश्चितकालीन निलंबन किया जाए। सीजेआई ने बताया कि सदन में बाधा डालने वाले सदस्य को केवल शेष सत्र के लिए निलंबित किया जाता है।

सीजेआई ने यह भी कहा कि राज्यों की परिषद में प्रक्रिया और संचालन के नियमों के नियम 256 और 266 वर्तमान मामले में लागू नहीं होते हैं और पूछा कि क्या किसी सदस्य को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने के लिए अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है। सीजेआई ने कहा, “उन्होंने इच्छा का पता नहीं लगाया.. यह उनके खिलाफ एकमात्र आरोप है। उन्हें अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया गया। नियम 256 और 266 का पहली नजर में कोई उपयोग नहीं होता। हमें आनुपातिकता का सिद्धांत भी लागू करना चाहिए।”

चूंकि विशेषाधिकार समिति के लिए अपनी जांच पूरी करने के लिए कोई बाहरी सीमा निर्धारित नहीं है, तो क्या इसका मतलब यह होगा कि चड्ढा अनिश्चितकाल के लिए निलंबित रहेंगे। चड्ढा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि आप सांसद पहले ही इस कृत्य के लिए माफी मांग चुके हैं और चेयरपर्सन को भी लिखित रूप से माफी पत्र देने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। साथ ही, उन्होंने संसद के विशेषाधिकारों की शक्तियों को ‘कैनलाइज’ करने की आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि उनका दुरुपयोग न हो।

पीठ ने अंततः सुनवाई शुक्रवार (3 नवंबर) तक के लिए स्थगित कर दी और दोनों पक्षों से गुरुवार तक अपनी दलीलों को दाखिल करने को कहा। सीजेआई ने कहा, “हम विशेषाधिकारों के व्यापक सवाल पर नहीं जा सकते। आइए इसे आवश्यकता से अधिक विस्तारित न करें। हम विशेषाधिकार समिति के अधिकार क्षेत्र में नहीं जा रहे हैं.. एकमात्र सवाल अनिश्चितकालीन निलंबन का है।”

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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