Sunday, April 28, 2024

महाराष्ट्र के स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, कहा- एक हफ्ते में विधायकों की अयोग्यता पर सुनवाई करें

सुप्रीम कोर्ट ने उन विधायकों की अयोग्यता पर फैसला देने में देरी को लेकर महाराष्ट्र के स्पीकर राहुल नार्वेकर को कड़ी फटकार लगाई है, जो उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना छोड़कर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले बाग़ी गुट के साथ गठबंधन कर गए थे। कोर्ट ने कहा कि स्पीकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत कार्यवाही को अनिश्चितकाल तक विलंबित नहीं कर सकते हैं और कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों के प्रति सम्मान की भावना होनी चाहिए। पीठ ने कहा, “हम संवैधानिक शक्ति का उपयोग करके जारी किए गए निर्देशों के प्रति सम्मान और गरिमा की उम्मीद करते हैं।”

पीठ ने नार्वेकर को चेतावनी दी कि वह ज़िम्मेदारी से भागते नहीं रह सकते हैं और यह जानना चाहा कि अदालत के 11 मई के फ़ैसले के बाद क्या कार्रवाई की गई। सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर बागी शिवसेना विधायकों की लंबित अयोग्यता याचिकाओं का निपटारा करने के लिए प्रक्रियात्मक निर्देश और समयसीमा जारी करें। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत को सूचित करेंगे कि कार्यवाही के निपटारे के लिए क्या समय सीमा निर्धारित की जा रही है।

सुनील प्रभु बनाम अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य विधान सभा मामले में सुनवाई करते हए मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि इस संबंध में कार्यवाही, जो मई से लंबित है, अनिश्चित काल तक नहीं चल सकती। पीठ ने कहा कि इस न्यायालय के आदेश के अनुसार अध्यक्ष को उचित समयावधि के भीतर कार्यवाही पर निर्णय लेने की आवश्यकता है।

पीठ शिवसेना पार्टी के दो गुटों के महाराष्ट्र विधान सभा सदस्यों (विधायकों) के खिलाफ लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर शीघ्र निर्णय लेने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस साल जुलाई में कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर से जवाब मांगा था।

पार्टी के उद्धव ठाकरे गुट के विधायक सुनील प्रभु की याचिका राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता अजीत पवार और प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल सहित आठ विधायकों के एकनाथ शिंदे गुट में शामिल होने के तुरंत बाद दायर की गई थी।

प्रभु ने अपनी याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इस साल 11 मई को स्पीकर को लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर उचित अवधि के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। हालांकि, अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है।

याचिका के अनुसार, निष्पक्षता की संवैधानिक आवश्यकता के अनुसार अध्यक्ष को अयोग्यता के प्रश्न पर शीघ्रता से निर्णय लेना होगा।प्रभु ने आगे तर्क दिया कि अयोग्यता की कार्यवाही पर निर्णय लेने में स्पीकर की निष्क्रियता “गंभीर संवैधानिक अनुचितता का कार्य है”। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि स्पीकर को उनके समक्ष लंबित अयोग्यता याचिकाओं का निपटारा करना होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि मई के बाद से कुछ भी नहीं हुआ है।

स्पीकर (भाजपा नेता राहुल नार्वेकर) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारी होने के बावजूद उनका मजाक उड़ाया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई में विधानसभा अध्यक्ष को सही समय के भीतर याचिकाओं पर फैसला देने के लिए कहा था। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने नार्वेकर की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा- ‘मिस्टर एसजी, उन्हें निर्णय लेना है। वह ऐसा नहीं कर सकते। अदालत के 11 मई के फ़ैसले के बाद स्पीकर ने क्या किया?’

कुछ बागी शिवसेना विधायकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल ने आरोप लगाया कि ऐसी तस्वीर पेश की गई है कि संवैधानिक प्राधिकारी याचिकाओं पर बैठे हुए हैं। प्रभु की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि स्पीकर इस मामले में एक न्यायाधिकरण के रूप में काम कर रहे हैं।

इसके बाद सीजेआई ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी। हमें स्थिति बताएं कि इसमें कितना समय लगेगा। कार्यवाही अनिश्चित काल तक नहीं चल सकती।

बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने भी कहा कि याचिकाकर्ता ने खुद विधानसभा अध्यक्ष से समय मांगा था। अंततः पीठ ने स्पीकर को प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश जारी किये।

जून 2022 में विभाजन के बाद शिंदे, ठाकरे की जगह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। विभाजन के बाद, शिंदे गुट के बागी विधायकों को राज्य में विधान परिषद सदस्य (एमएलसी) चुनाव में मतदान करते समय पार्टी व्हिप के खिलाफ काम करने के लिए तत्कालीन उपाध्यक्ष से अयोग्यता नोटिस मिला।

शीर्ष अदालत को इस बात पर विचार करने के लिए बुलाया गया था कि क्या विद्रोही सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए।जवाब दाखिल करने का समय 12 जुलाई तक बढ़ाकर शिंदे और उनके बागी विधायकों के समूह को अंतरिम राहत दी। इसके बाद, 29 जून, 2022 को कोर्ट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी द्वारा बुलाए गए फ्लोर टेस्ट को भी हरी झंडी दे दी।

इससे ठाकरे सरकार गिर गई, जिसके बाद शिंदे ने सदन में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के समर्थन से मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

लगभग एक साल बाद, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि एकनाथ शिंदे गुट के 34 विधायकों के अनुरोध के आधार पर फ्लोर टेस्ट बुलाने का कोश्यारी का फैसला गलत था। न्यायालय ने माना कि कोश्यारी के पास यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त वस्तुनिष्ठ सामग्री नहीं थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सदन का विश्वास खो चुके हैं।

हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि ठाकरे ने शक्ति परीक्षण का सामना नहीं किया, लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया। फिर भी, न्यायालय ने महाराष्ट्र विधान सभा के अध्यक्ष को निर्देश दिया था कि वह शिवसेना के एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट के विधायकों के खिलाफ लंबित अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लें।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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