सुप्रीम कोर्ट ने जेल सुधारों पर एससी कमेटी के सुझावों पर केंद्र और राज्यों से मांगा जवाब

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जेल सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया और केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों से जवाब मांगा है।

कोर्ट ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख पर हिरासत में बंद महिलाओं और बच्चों, ट्रांसजेंडर कैदियों और मौत की सजा पाए दोषियों के मुद्दों पर उनकी मदद की जानी चाहिए। न्यायालय ने यह भी कहा कि जेलों में कैदियों को चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, आईटी की उपलब्धता और मुलाकात के अधिकार में सहायता के लिए जेल परिसर में बुनियादी ढांचे जैसे अन्य मुद्दे भी रिपोर्ट में हैं।

यह रिपोर्ट महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर कैदियों के अधिकार, खुली जेलें, मौत की सजा पाए दोषियों, जेलों के भीतर हिंसा, जेल कर्मचारियों की गतिशीलता और सुधारात्मक प्रशासन जैसे विभिन्न मुद्दों पर प्रकाश डालती है।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ 1,382 जेलों में अमानवीय स्थितियों में स्वत: संज्ञान जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे 2013 में पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.सी. द्वारा प्रस्तुत एक पत्र याचिका के आधार पर शुरू किया गया था।

पीठ ने बताया कि समिति के संदर्भ की शर्तें शुरू में 25 सितंबर, 2018 को जस्टिस मदन बी. लोकुर, एस. अब्दुल नज़ीर और दीपक गुप्ता की पीठ द्वारा पारित एक आदेश द्वारा स्थापित की गई थीं।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति राजेश बिंदल ने टिप्पणी की कि “जेलों में भीड़भाड़ एक बड़ा मुद्दा है, इसमें समय लगेगा। खुली जेलों को भी एक विकल्प के रूप में देखा जा सकता है- हमारे पास यह राजस्थान में है”।

न्यायालय ने विशेष रूप से न्याय मित्र अधिवक्ता गौरव अग्रवाल से रिपोर्ट की प्रतियां केंद्र और राज्य सरकारों के साथ साझा करने का अनुरोध किया। अगली सुनवाई 26 सितंबर को दोपहर 2 बजे तय की गई है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें इस प्रकार हैं:

जेलों में भीड़ की समस्या का समाधान

समिति अंडर ट्रायल समीक्षा समिति तंत्र को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) के दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन पर जोर देती है। इसका उद्देश्य जेलों में भीड़भाड़ की समस्या का समाधान करना है।

जेल विभाग की निगरानी के लिए निगरानी समिति

रिपोर्ट जेल विभागों के कामकाज की निगरानी, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए हर राज्य में निरीक्षण समितियों की स्थापना की सिफारिश करती है।

कानूनी कार्यवाही का आधुनिकीकरण

जिला अदालतों को न केवल न्यायिक रिमांड बढ़ाने के लिए बल्कि सुनवाई करने के लिए भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करने पर रिपोर्ट में जोर।

महिला कैदियों को सशक्त बनाना

समिति ने कहा कि केवल 10 राज्यों में, महिला कैदियों को दुर्व्यवहार/उत्पीड़न के लिए जेल कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की अनुमति है। यह एक मजबूत शिकायत निवारण तंत्र की आवश्यकता को रेखांकित करता है और महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल के लिए टेली-मेडिसिन सुविधाओं पर जोर देता है।

खुली जेल प्रणाली का विस्तार

रिपोर्ट में कहा गया है कि खुली जेल प्रणाली केवल 19 राज्यों में सक्रिय है और पूरे देश में इसकी स्थापना की सिफारिश की गई है, जिससे संभावित रूप से पुनर्वास को बढ़ावा मिलेगा।

समावेशी जेल मैनुअल

रिपोर्ट में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुरूप विशिष्ट प्रावधानों के साथ एक समर्पित अध्याय शामिल करने के लिए 2016 के मॉडल जेल मैनुअल को संशोधित करने पर जोर दिया गया है।

हिंसा पर अंकुश

समिति सुधार सुविधाओं के भीतर हिंसा पर अंकुश लगाने के लिए जेलों में विचाराधीन कैदियों और दोषियों को अलग करने का सुझाव देती है।

(साभार: द लाइव ला, अनुवाद: एस आर दारापुरी)

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