Saturday, April 27, 2024

सुप्रीम कोर्ट की मदद से कोरोना की आड़ लेकर आंदोलन को दबाने के संकेत

केंद्र सरकार के बनाए तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर जारी किसानों के आंदोलन को डेढ़ महीना होने जा रहा है। इस दौरान सरकार और किसानों के बीच बातचीत के सात दौर भी हो चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। आज शुक्रवार को होने वाली आठवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रहना तय है, क्योंकि बातचीत से एक दिन पहले ही केंद्र सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने साफ कह दिया है कि सरकार तीनों कानूनों को वापस लेने के अलावा किसी भी प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार है। इसी बीच किसान आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल पूछने के अंदाज में जो टिप्पणी की है, वह भी चौंकाने और चिंता पैदा करने वाली है।

प्रधान न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार से पूछा है कि क्या किसान आंदोलन वाली जगहों पर कोरोना संक्रमण से संबंधित स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का पालन किया जा रहा है? उसने सरकार से यह भी पूछा है कि उसने निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के मरकज वाले मामले से क्या सबक लिया है? इन सवालों के साथ ही अदालत ने कहा है कि कहीं किसान आंदोलन भी तबलीगी जमात के कार्यक्रम जैसा न बन जाए, क्योंकि कोरोना फैलने का डर तो किसान आंदोलन वाली जगहों पर भी है।

सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन को लेकर यह सवाल और टिप्पणी तबलीगी जमात के खिलाफ जम्मू की एक वकील सुप्रिया पंडित की याचिका की सुनवाई करते हुए की। याचिका में आरोप लगाया गया है कि कोरोना काल में हुए तबलीगी जमात के आयोजन से देश में कोरोना संक्रमण फैला है, लेकिन दिल्ली पुलिस कार्यक्रम के आयोजक निजामुद्दीन मरकज के मौलाना साद को गिरफ्तार नहीं कर पाई।

यहां यह गौरतलब तथ्य है कि तबलीगी जमात के उस कार्यक्रम में शिरकत करने वाले देश-विदेश के कई लोगों के खिलाफ देश के विभिन्न शहरों में मुकदमे दर्ज हुए थे। उनमें से कई लोगों को कोरोना फैलाने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था। मीडिया ने भी पूरे जोर-शोर से यह माहौल बना दिया था कि देश में कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए तबलीगी जमात और मुस्लिम समुदाय ही जिम्मेदार है।

इस प्रचार को हवा देने का काम केंद्र सरकार के मंत्री और अफसरों के अलावा भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता भी कर रहे थे, लेकिन पिछले पांच महीनों के दौरान मद्रास, बॉम्बे और पटना हाई कोर्ट के अलावा हैदराबाद और दिल्ली की स्थानीय अदालतों ने भी तबलीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ मुकदमों को खारिज कर गिरफ्तार लोगों की रिहाई के आदेश जारी किए हैं। यही नहीं, इन सभी अदालतों ने तबलीगी जमात के सदस्यों के खिलाफ निराधार आरोप लगाकर मुकदमे दर्ज करने के लिए सरकारों की खिंचाई भी की है और एक समुदाय विशेष के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए मीडिया को भी खरी-खरी सुनाई है।

इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट का कोरोना संक्रमण के लिए तबलीगी जमात को आरोपित करने वाली याचिका की सुनवाई करना तो आश्चर्यजनक है ही, उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक किसान आंदोलन के संदर्भ में तबलीगी जमात का जिक्र करना है।

भारत में कोरोना वायरस का प्रवेश हुए दस महीने से ज्यादा हो गए हैं। कोरोना काल में ही देश के विभिन्न हिस्सों में कई बड़े धार्मिक आयोजन भी हुए, जिसमें हजारों-लाखों की संख्या में लोगों ने शिरकत की। ऐसे कुछ आयोजनों में तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए, लेकिन ऐसे किसी आयोजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका नहीं जताई।

कोरोना काल में ही बिहार, मध्य प्रदेश और तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद सहित देश के कई हिस्सों में राजनीतिक दलों की बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां हुई हैं और पश्चिम बंगाल में तो अभी भी हो रही हैं, लेकिन इन रैलियों का भी सुप्रीम कोर्ट ने कोई संज्ञान नहीं लिया। यही नहीं, इन दिनों कृषि कानूनों को किसानों के हित में बताने के लिए खुद प्रधानमंत्री देश के विभिन्न इलाकों में जा रहे हैं, जहां उनके कार्यक्रम के लिए हजारों की संख्या में लोगों को जुटाया जा रहा है। ऐसे किसी कार्यक्रम से कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका भी सुप्रीम कोर्ट को नहीं सता रही है।

किसानों का आंदोलन भी पिछले डेढ़ महीने से जारी है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट में किसान आंदोलन और कृषि कानूनों के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं पर भी सुनवाई जारी है, लेकिन अभी तक की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार भी किसान आंदोलन के संदर्भ में कोरोना संक्रमण का कोई जिक्र नहीं किया, लेकिन अब जबकि सरकार और किसानों के बीच बातचीत से मसले का हल नहीं निकल रहा है, आंदोलन को कमजोर करने और किसान संगठनों में फूट डालने की तमाम सरकारी कोशिशें भी नाकाम हो चुकी हैं और किसानों ने अपना आंदोलन तेज और व्यापक करने का इरादा जता दिया है तो सुप्रीम कोर्ट को कोरोना की याद आना हैरान करता है।

आंदोलन की जगहों पर कोरोना फैलने की चिंता जता कर सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से सरकार का ‘मार्गदर्शन’ किया है कि उसे किसानों के आंदोलन से कैसे निबटना चाहिए। यह चिंता परोक्ष रूप से किसानों को धमकी भी है कि अगर उन्होंने आगे आंदोलन जारी रखा तो जैसा उत्पीड़न तबलीगी जमात वालों का हुआ था और जिस तरह उन्हें बदनाम किया गया था, वैसा ही किसानों के साथ भी हो सकता है।

सरकार ने तो तीनों कानूनों को अपनी नाक का सवाल बना लिया है। उसने साफ कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में तीनों कानून वापस नहीं लेगी। सरकार की ओर से मीडिया के जरिए सिर्फ कानूनों के समर्थन में ही प्रचार नहीं करवाया जा रहा है, बल्कि किसान आंदोलन के खिलाफ तरह-तरह की निराधार बातों का प्रचार भी मीडिया और सोशल मीडिया में शुरू से हो रहा है। किसानों के आंदोलन को खालिस्तानियों का आंदोलन बताया गया। यह भी कहा गया कि आंदोलन को विदेशी मदद मिल रही है। पाकिस्तान और माओवादियों से भी आंदोलन का संबंध जोड़ा गया। इस तरह के अनर्गल आरोप लगाने में केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्री भी पीछे नहीं रहे। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि कुछ लोग किसान आंदोलन के नाम पर इवेंट जलसा कर रहे हैं।

सरकार की ओर कराया गया यह दुष्प्रचार पूरी तरह बेअसर साबित हुआ है। किसानों की ओर से भी स्पष्ट कर दिया गया है कि कानूनों की वापसी से कम उन्हें कुछ भी स्वीकार नहीं है। किसान लंबे संघर्ष के लिए तैयार हैं। इस सिलसिले में वे पिछले दिनों आंदोलन को तेज और व्यापक करने के अपने कार्यक्रम की घोषणा भी कर चुके हैं। भीषण शीतलहर के साथ ही पिछले पांच दिनों से हो रही बारिश भी उनका मनोबल नहीं तोड़ पाई है। तूफानी बारिश के चलते उड़ते-भीगते तंबुओं, ध्वस्त शौचालयों और चारों तरफ कीचड़ हो जाने के बावजूद भी आंदोलन स्थल पर डटे रह कर बता दिया कि वे पीछे हटने वाले नहीं हैं।

दरअसल आंदोलन कर रहे किसानों और उनके आंदोलन को समर्थन दे रहे समाज के दूसरे तबकों को भी यह बात समझ में आ गई है कि अगर तीनों कानून वापस लेने की अपनी मांग से पीछे हट गए तो इसकी भारी कीमत न सिर्फ देश की किसान बिरादरी को बल्कि पूरे देश को चुकाना पड़ेगी। सरकार फिर इसी तरह के और भी कानून लाएगी और उसे ऐसा करने से कोई रोक नहीं पाएगा, इसलिए यह आंदोलन न सिर्फ किसानों की खेती बचाने के लिए है, बल्कि यह एक तरह से लोकतंत्र बचाने का भी आंदोलन है।

किसानों का अगला बड़ा कार्यक्रम 26 जनवरी को दिल्ली में प्रवेश कर गणतंत्र दिवस की परेड के समानांतर ट्रैक्टर परेड करने का है। ऐसी ही परेड का आयोजन उस दिन देश भर में राज्यों की राजधानी और जिला मुख्यालयों पर भी किया जाएगा। दिल्ली में होने वाली परेड की रिहर्सल के तौर पर किसानों ने गुरुवार को दिल्ली की सीमाओं पर ट्रैक्टर रैली निकाल कर अपनी तैयारी दिखा दी है। दूसरी ओर सरकार ने भी इस आंदोलन को कमजोर करने या उसमें फूट डालने के मकसद से एक और प्रयास किया है।

इस सिलसिले में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने गुरुवार को पंजाब के एक धार्मिक नेता और नानकसर गुरुद्वारा के प्रमुख बाबा लक्खा को दिल्ली बुलाकर उनसे किसान आंदोलन के बारे में बात की है। इसके अलावा किसानों के नाम पर हरियाणा और पंजाब से आए दो अलग-अलग समूहों ने भी तोमर से मुलाकात की है। दोनों समूहों ने शुक्रवार को होने वाली आठवें दौर की बातचीत में उनके प्रतिनिधियों को भी शामिल करने की मांग की है।

सरकार की रणनीति 45 साल पुराने सतलुज-यमुना लिंक नहर के मुद्दे को उठवा कर आंदोलन में शामिल पंजाब और हरियाणा के किसानों में फूट डालने और पंजाब के किसानों पर दबाव बनाने की है। हरियाणा से आए समूह ने कहा है कि वह शुक्रवार की बातचीत में शामिल हो कर सतलुज-यमुना लिंक नहर का मुद्दा उठाना चाहता है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी इस नहर का काम पूरा नहीं हो पाया है, जिसकी वजह से हरियाणा की खेती का भारी नुकसान हो रहा है। इस समूह ने दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे प्रदर्शन से हरियाणा के लोगों को परेशानी होने की बात भी कृषि मंत्री से कही है।

जो भी हो, सबकी निगाहें आज होने वाली आठवें दौर की बातचीत पर है। सरकार और किसानों के तेवर देखते हुए यह स्पष्ट है कि इस बातचीत का भी कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है। देखने वाली बात यही होगी कि सरकार इस आंदोलन से निबटने के लिए कौन सा कदम उठाती है। ज्यादा संभावना यही है कि सरकार 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की होने वाली सुनवाई का इंतजार करेगी और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर कदम उठाएगी, लेकिन किसानों के तेवर बता रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी उनके आंदोलन के लिए बेअसर रहने वाला है। यानी सरकार और किसानों के बीच टकराव के हालात बनते नजर आ रहे हैं।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles