Friday, April 19, 2024

ये मेहनतकश किसानों का आंदोलन है, इसे अपरकास्ट परिजीवी भू-मालिकों के नजरिये से न देखें

यदि कोई भी वर्तमान किसान आंदोलन को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, बिहार और गाय पट्टी के अन्य अपरकॉस्ट कृषि भूमि के मालिक परजीवियों की नजर से देखने की कोशिश करेगा, तो उसे वर्तमान किसान आंदोलन की ताकत के मुख्य स्रोत का अंदाज नहीं लगेगा। इन क्षेत्रों के अधिकांश अपरकॉस्ट किसान सिर्फ और सिर्फ कृषि भूमि का मालिक होने के चलते किसान कहे जाते हैं। पर किसान होने की किसी भी शर्त पर खरे नहीं उतरते हैं।

किसान होने की पहली शर्त यह होती है कि आय का मुख्य स्रोत खेती और उससे जुड़े अन्य उत्पादन कार्य होने चाहिए और दूसरी शर्त यह है कि खेती के श्रम का मुख्य हिस्सा या एक बड़ा हिस्सा उनका पारिवारिक श्रम होना चाहिए। इसके साथ ही एक तीसरी शर्त भी होती है, वह यह कि उनकी कृषि भूमि उनके मुख्य आवास के आस-पास (10 किलोमीटर के अंदर) होनी चाहिए।

पूर्वांचल का मेरा निजी अनुभव बताता है कि यहां की कृषि भूमि के बड़े हिस्से के मालिक अपरकॉस्ट (द्विज) हैं, जो किसान होने की  उपरोक्त मुख्य दो शर्तें पूरी नहीं करते हैं। क्रांतिकारी भूमि सुधार न होने के चलते कृषि भूमि का एक बड़़ा हिस्सा अपरकॉस्ट के ऐसे लोगों के हाथ में है, जिसकी आय का मुख्य स्रोत खेती न होकर नौकरी या कोई अन्य कारोबार है। ये अपने खेतों में अपने परिवार के साथ काम भी नहीं करते हैं, महिलाएं तो बिलकुल ही नहीं।

वे जमीन के मालिक तो हैं, लेकिन वे खुद के खेतों में काम नहीं करते हैं, पहले वे दलितों के श्रम का इस्तेमाल करके खेती करते थे और जमींदारी उन्मूलन के बाद बंटाई पर खेती दे देते हैं या आधुनिक मशीनों एवं मजदूरों-दलितों का इस्तेमाल करके खेती करते हैं। ऐसे ज्यादातर किसान पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और देश के कई अन्य हिस्सों में पाए जाते हैं, ये मुख्यत: अपरकॉस्ट के लोग हैं, जो कागजों में तो किसान हैं, लेकिन ये किसी तरह से किसान की परिभाषा में नहीं आते हैं।

खेती योग्य जमीनों के ऐसे मालिक विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, अन्य शैक्षिक संस्थाओं, नौकरशाही-प्रशासन आदि में भरे पड़े हैं या डॉक्टर या इंजिनीयर हैं या कोई अन्य पेशा या करोबार करते हैं और इसमें बहुत सारे विभिन्न पार्टियों के नेता भी हैं। ऐसे सैकड़ों लोगों को व्यक्तिगत तौर पर मैं जानता हूं। ये वे लोग हैं, जिनके हाथ में  किसी भी तरह कृषि भूमि नहीं होनी चाहिए, जो उनके पास है। उनकी जमीनें मेहनतकश दलित और अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों के हाथ में जानी चाहिए।   

कुछ ऐसे भी अपरकॉस्ट के जमीन मालिक हैं, जो अच्छी आय देने वाले किसी पेशे या करोबार में नहीं हैं, लेकिन फिर भी अपने खेतों में अपने परिवार के साथ खटते नहीं हैं, श्रम नहीं करते हैं और उनकी खेती अनुत्पादक होती है, ऐसे लोग भले दरिद्रता की स्थिति में भी रहते हों। ये अनुत्पादक परजीवी ही हैं, जो जमीन के मालिक हैं।

पूर्वांचल और बिहार में इनकी इस मानसिकता का असर कुछ मध्य जातियों पर भी दिखाई देता है, तो अपने पूरे परिवार के साथ ( जिसमे महिलाएं भी शामिल हों) खेती में काम करने से हिचकते हैं और बंटाई और मजदूरों से ही मुख्यत: खेती कराते हैं और एक हद तक ही खुद श्रम करते हैं।

मालिकाने के इस तरह के स्वरूप के चलते ही इन क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब से बहुत ही कम है। यह इस इलाके की गरीबी-कंगाली का मुख्य स्रोत है।

देश में किसानों का दूसरा समुदाय मध्य जातियों के किसानों का है, जिन्हें वर्ण व्यवस्था ने शूद्र ठहरा दिया, जिन्हें पिछड़ा वर्ग भी कहा जाता है। इस किसान आंदोलन की रीढ़ पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और देश के अन्य हिस्सों के यही किसान, मुख्यत: सिख-जाट किसान हैं। इनकी आय और समृद्धि का मुख्य स्रोत इनकी खेती है और इन खेतों में अपने परिवार के साथ ( जिसमें महिलाएं भी शामिल हैं) ये हाड़-तोड़ परिश्रम करते हैं।

इसका यह मतलब नहीं है कि ये मजदूरों के श्रम का अपने खेतों में इस्तेमाल नहीं करते हैं और उनके साथ इनका कोई अंतर्विरोध नहीं है, लेकिन ये मूलत: मेहनतकश किसान हैं। इन्हीं किसानों ने अपने श्रम के दम पर भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। यही हरित क्रांति के वाहक थे और कऱीब 40 वर्षों तक अधिकांश  भारत का इन्होंने ही पेट भरा।

विश्व इतिहास इस बात का साक्षी है कि कृषि की उत्पादकता अन्य तत्वों की अपेक्षा मुख्यत: कृषि भूमि के मालिक की श्रम के प्रति नजरिए पर निर्भर करती है। यदि खेत के मालिक के आय का मुख्य स्रोत कृषि है और श्रम का बड़ा हिस्सा पारिवारिक श्रम है, तभी खेती उत्पादक बनती है। यहां मैं पूंजीवादी फार्मिंग की बात नहीं कर रहा हूं, जो करीब एक उद्योग की तरह संचालित होती है।

इस किसान आंदोलन के रीढ़ मेहनतकश किसान होने के चलते ही यह संघर्ष अकूत मुनाफा की हवस रखने वाले कॉरपोरेट घरानों और मेहनतकश किसानों के बीच का संघर्ष बन गया है और इसी चरित्र के चलते देश के अन्य मेहनतकश तबके इसके साथ खुद को एकजुट महसूस कर रहे हैं। इस आंदोलन की रीढ़ मेहनतकश किसान होने के चलते ही यह आंदोलन इतना मजबूत दिख रहा है। वैसे भी आंदोलन के सबसे अगुवा दस्ते सिख अपनी मेहनतकश चरित्र के लिए पूरी दुनिया में जाने और सराहे जाते हैं।

इन्हें गाय पट्टी की अपरकॉस्ट परजीवी जमीन के मालिकों के नजरिए से न देखें, जो गाय पट्टी पर एक बोझ हैं और यहां की कंगाली-गरीबी के लिए जिम्मेदार हैं और श्रम विरोधी मानसिकता के वाहक हैं। यह किसान आंदोलन बहुजन-श्रमण संस्कृति के मेहनतकश किसानों का आंदोलन है, न कि ब्राह्मणवादी मूल्यों के वाहक परजीवी भू- स्वामियों का आंदोलन।

(डॉ. सिद्धार्थ जनचौक केै सलाहकार संपादक हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।

Related Articles

AIPF (रेडिकल) ने जारी किया एजेण्डा लोकसभा चुनाव 2024 घोषणा पत्र

लखनऊ में आइपीएफ द्वारा जारी घोषणा पत्र के अनुसार, भाजपा सरकार के राज में भारत की विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला हुआ है और कोर्पोरेट घरानों का मुनाफा बढ़ा है। घोषणा पत्र में भाजपा के विकल्प के रूप में विभिन्न जन मुद्दों और सामाजिक, आर्थिक नीतियों पर बल दिया गया है और लोकसभा चुनाव में इसे पराजित करने पर जोर दिया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने 100% ईवीएम-वीवीपीएटी सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा

सुप्रीम कोर्ट ने EVM और VVPAT डेटा के 100% सत्यापन की मांग वाली याचिकाओं पर निर्णय सुरक्षित रखा। याचिका में सभी VVPAT पर्चियों के सत्यापन और मतदान की पवित्रता सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया। मतदान की विश्वसनीयता और गोपनीयता पर भी चर्चा हुई।