सन् 1992 में बाबरी ध्वंस और; 2002 के गुजरात नरसंहार के आसपास जन्मे बच्चे अब गबरू जवान हो गए होंगे। उन्हें यह भी मालूम नहीं होगा कि देश की आज़ादी का आंदोलन क्या था? हमारे स्वाधीनता आंदोलन के सेनानियों के पीड़ादायक कष्टों और सूली पर टंगे लोगों की शहादत को शायद ही वे जान पाए होंगे। उन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि पिछले दस वर्षों से अधिक सत्ता के प्रमुख नरेन्द्र मोदी और अमित शाह जिस महान संस्था से सम्बंधित हैं उस संस्था के जन्मदाता गुरु गोलवलकर और कथित वीर सावरकर का इतिहास देश से गद्दारी का रहा है। घर के इन भेदियों के बावजूद गांधी जी ने जिस तरह अनशन और सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया इससे अंग्रेज भागने को मज़बूर हुए। आज उन तमाम स्वाधीनता संग्रामियों की वजह से हम आज़ाद भारत में रह रहे हैं।
दुख इस बात का है कि आज फिर देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठे अहंकारी की गद्दारी का कच्चा चिट्ठा सामने आया है। जिसमें कथित राष्ट्रवादियों का विद्रूप चेहरा सामने है। जवान पीढ़ी को भली-भांति समझना होगा।
पता चला है कि हमारे पीएम मोदी जी USAID के एजेंट हैं इसकी पुष्टि उस तस्वीर से होती है जिसको बीजेपी नेता किशन रेड्डी, जो तेलंगाना बीजेपी अध्यक्ष भी हैं, ने 25 सितंबर, 2014 को फेसबुक पर पोस्ट की थी। किशन रेड्डी ने लिखा था कि 1994 में “अमरीकन काउंसिल ऑफ यंग पॉलिटिकल लीडर्स” (ACYPL) के बुलावे पर मोदी अमरीका गये थे।
इस टीम में किशन रेड्डी ख़ुद और बीजेपी के नेता अंनत कुमार भी थे।
तो क्या यह समझा जाए कि मोदी की अमरीका से सेटिंग 1994 से चल रही है? कौन सा खेल खेला गया? कहा जाता है कि ACYPL और USAID एक दूसरे की मदद करते हैं, दोनों के नाम अलग हैं पर काम एक है…दोनों मिल कर विदेशों में सरकार गिराते हैं।
USAID का क़िस्सा अब भारत के ख़िलाफ़ 2012 से किसी बड़ी साज़िश का इशारा दे रहा है…भारत के दुश्मन देशभक्त बन कर भारत का नुक़्सान कर रहे हैं। फ़र्ज़ी राष्ट्रवादी गैंग….ये विचार कृष्णन अय्यर काँग्रेस पेज भारत जोड़ो न्याय यात्रा #भारतजोड़ोयात्रा से सामने आए थे।
यह इस बात का प्रमाण है कि 2012 में USAID का उपयोग अन्ना आंदोलन में हुआ। जिससे कांग्रेस सरकार को गिराना संभव हुआ। मोदी जी1994 में,ACYPL के आमंत्रण पर संघ की ओर से अमरीका अपने दो साथियों के साथ गए थे उसमें अमरीकी नेताओं को सहयोग देने का प्रशिक्षण दिया गया। कांग्रेस का झुकाव चूंकि USSR की ओर था इसलिए मनमोहन सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए USAID की ओर से भरपूर राशि दी गई। हालांकि तब सरकार की ख़ुफ़िया एजेंसी को कानों-कान खबर नहीं मिली कि विपक्ष को मदद अमेरिका से आ रही है।
बहरहाल, येन-केन प्रकारेण अमेरिका परस्त मोदी की सरकार 2014 में बनी। इसीलिए मोदी ट्रम्प की बल्ले रही। लेकिन बीच में जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद मोदी के प्रति ट्रम्प की नफ़रत बढ़ी। मोदी ने बाइडन की चाटुकारिता करने का रिकॉर्ड बनाया। लेकिन भारतीय मूल की कमला हेरिस और ट्रम्प की टक्कर में जब डोनाल्ड ट्रम्प जीते तो फिज़ा बदल गई।
डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने गद्दार को सबक सिखाने के लिए उसे शपथ समारोह में नहीं बुलाया। भारत देश की यूपीए सरकार से मोदी के गद्दारी की पोल ना खुलने पाए इसलिए वे परमिशन लेकर ट्रम्प के दरवाजे पहुंचे जहां उन्हें रिसीव करने ट्रम्प नहीं आए। जबकि अन्य तीन आमंत्रित राष्ट्राध्यक्षों को उन्होंने ही रिसीव किया। उसके बाद जो बेइज्जती इतने बड़े भारत देश की हुई उससे मोदी को गिला नहीं। कुबूल कुबूल सारी शर्तें कुबूल कर वापस आ गए। देश की वेशकीमती सम्पत्ति बेचकर देश को कंगाल किया और अब ट्रम्प के सामने ये हाल।
इधर मोदी के प्रिय गौतम अडानी मामले में अमेरिका को सहयोग देने का जो वायदा मोदी जी ने किया है देखना है, उसे किस तरह पूरा करते हैं। देश के साथ गद्दारी का जो सिला मोदी जी को यहां से मिला है। वह चुनरी का दाग़ भी छूट नहीं सकता। अपनी पोल खुलने से पहले वे राहुल गांधी पर चीन और अमेरिका की मदद के झूठे इल्जाम भी लगाते रहे हैं। चोर की दाढ़ी में तिनका ऐसे ही लोगों के लिए कहावत बनी है। जबकि इस मदद से अमेरिका की मज़बूती के लिए मोदी जी ने ही गद्दारी की है। चुनी हुई संसद ,चुनाव आयोग से लेकर न्यायपालिका , कार्यपालिका तक को धराशाई किया।
कहने का आशय यह है कि राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाने वाले खुद बा खुद औंधे मुंह गिर गए हैं। नवजवान पीढ़ी जिसने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गद्दारी का इतिहास ना पढ़ा हो वे इन घटनाओं पर गौर करें तथा देश को ग़द्दारों से मुक्त कराने संघर्ष करें। आज देश के मुख पर करारा तमाचा मारा है अमेरिका ने। एक कहावत है जब हम में खोट हो तो दूसरे को कैसे दोष दें। आइए पहले अपनी खोट सुधारें।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं। लेख में दिए गए विचार लेखक के अपने निजी हैं।)
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