छत्तीसगढ़। आरक्षण के मुद्दे पर सियासी पारा चढ़ने के साथ सर्व आदिवासी समाज ने भी अब उच्च न्यायालय के फैसले को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। छत्तीसगढ़ में जगह-जगह आदिवासियों का विशाल हुजूम उमड़ पड़ा है। बस्तर से लेकर सरगुजा तक जगह-जगह आदिवासी रैली निकाल कर प्रदर्शन कर रहे हैं। कई जगह आदिवासियों ने सड़क मार्ग तक जाम कर दिया है। “आदिवासी आरक्षण बचाओ” के बैनर तले सर्व आदिवासी समाज ने जगह-जगह बड़ी रैली की है। इस दौरान व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी बन्द रहे, प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ स्थानीय विधायक के खिलाफ जमकर नारेबाजी की है।
राज्यपाल को सौंपे गए ज्ञापन में आदिवासी समाज ने जिक्र किया कि छत्तीसगढ़ प्रदेश में हाईकोर्ट के फैसले से आदिवासी समाज का 32% आरक्षण कम होकर 20%हो गया इस फैसले से प्रदेश में शैक्षणिक (मेडिकल, इंजीनियरिंग, लॉ, उच्च शिक्षा) एवं नए भर्तियों में आदिवासियों को बहुत नुकसान हो जाएगा ।
राज्य बनने के साथ ही 2001 से आदिवासियों को 32% आरक्षण मिलना था परंतु नहीं मिला। केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के द्वारा जारी 5 जुलाई 2005 के निर्देश के अनुसार जनसंख्या अनुरूप आदिवासी 32%, एससी 12% , और ओबीसी के लिए 6% आरक्षण जारी किया गया था। छत्तीसगढ़ शासन को बारंबार निवेदन आवेदन और आंदोलनों के बाद आरक्षण अध्यादेश 2012 के अनुसार आदिवासियों को 32%, एससी 12% एवं ओबीसी को 14% दिए गए अध्यादेश पर हाई कोर्ट से मुहर लगाने की अपील की गयी। लेकिन छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सही तथ्य नहीं रखने से हाईकोर्ट ने आरक्षण अध्यादेश 2012 को अमान्य कर दिया। अभी तक छत्तीसगढ़ शासन द्वारा कोई ठोस पहल आदिवासियों के लिए नहीं की गयी है इसके विपरीत छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सभी भर्तियों एवं शैक्षणिक संस्थाओं में आदिवासियों के लिए दुर्भावनापूर्ण आदेश जारी किए जाने लगे।

छत्तीसगढ़ में 60% क्षेत्रफल पांचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित है, जहां प्रशासन और नियंत्रण अलग होगा। अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों की जनसंख्या 70% से लेकर 90% से ज्यादा है और बहुत गांवों में 100% आदिवासियों की जनसंख्या है। अनुसूचित क्षेत्रों में ही पूरी संपदा (वन, खनिज और बौद्धिक) है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज शैक्षणिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से पिछड़ा हुआ है। संवैधानिक प्रावधान के बाद भी आदिवासी बाहुल्य पिछड़े प्रदेश में आदिवासियों को आरक्षण से वंचित करना प्रशासन की विफलता और षड्यंत्र है। छत्तीसगढ़ में आरक्षण के लिए आवेदन के साथ लोकतान्त्रिक तरीके से आंदोलन करने के लिए समाज बाध्य होगा।
बताते चलें कि इससे पहले प्रदेश में चक्का जाम की अगुवाई भारतीय जनता पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा की तरफ से की गई थी। बीजेपी का आरोप था कि आदिवासियों के 32% आरक्षण को 20% कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ ऐसा पहला राज्य बना है, जहां किसी समुदाय के आरक्षण को छीना गया है। बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर में तीसरी और चौथी श्रेणी के नौकरियों में स्थानीय आरक्षण डॉ रमन सिंह की सरकार में मिलता था । उस पर भी रोक लगाने का आदेश जारी हुआ है। विकास मरकाम ने बताया कि प्रदेश में एक के बाद एक आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को छीनने का काम किया जा रहा है।
क्या है मुद्दा?
राज्य सरकार ने 2012 आरक्षण के अनुपात में बदलाव किया था। इसमें अनुसूचित जनजाति वर्ग का आरक्षण 32% कर दिया गया। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 12% किया गया। इस कानून को गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। बाद में कई और याचिकाएं दाखिल हुईं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को इस पर फैसला सुनाते हुए राज्य के लोक सेवा आरक्षण अधिनियम को रद्द कर दिया। इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति का आरक्षण 32% से घटकर 20% पर आ गया है। वहीं अनुसूचित जाति का आरक्षण 12% से बढ़कर 16% और अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14% हो गया है। शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण खत्म होने की स्थिति है। वहीं सरगुजा संभाग के जिलों में जिला कॉडर का आरक्षण भी खत्म हो गया है।
(छत्तीसगढ़ से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)