नई दिल्ली। तमिलनाडु में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) की आदमकद प्रतिमा जल्द ही लगने जा रही है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 20 अप्रैल को घोषणा की कि उनकी सरकार वीपी सिंह का सम्मान करने और तमिल समाज की ओर से ‘आभार’ व्यक्त करने के लिए चेन्नई में ऐसी प्रतिमा स्थापित करेगी।
ऐसे में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि आखिर वीपी सिंह ने तमिल समाज के लिए ऐसा क्या कर दिया कि उनकी मौत के लगभग 14 साल बाद तमिल समाज उनका आभार व्यक्त करना चाहता है?
इसका खुलासा स्टालिन ने वीपी सिंह के योगदानों की चर्चा करते हुए कहा, “बीपी मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया। जिससे सरकारी नौकरियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिला। और यह वीपी सिंह थे जिन्होंने कावेरी न्यायाधिकरण के गठन में मदद की। कावेरी तमिलनाडु के लोगों की जीवन रेखा है”।
स्टालिन ने दावा किया कि वीपी सिंह तमिलनाडु को अपना मानते थे और तर्कवादी और समाज सुधारक पेरियार को अपना नेता स्वीकार करते थे। सिंह करुणानिधि को अपने भाई के रूप में सम्मान करते थे और उन दोनों के बीच बहुत सौहार्दपूर्ण रिश्ता था। पूर्व प्रधानमंत्री विभिन्न मौकों पर तमिलों के कल्याण के लिए खड़े रहे।
स्टालिन के घोषणा के तुरंत बाद, वीपी सिंह की पोतियों अद्रीजा मंजरी और ऋचा मंजरी ने सीएम को धन्यवाद देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया।
स्टालिन ने अभी हाल ही में एक सामाजिक न्याय सम्मेलन किया था। जिसमें देश के प्रमुख विपक्षी दल शामिल हुए थे। यह सम्मेलन आगे चलकर विपक्षी पार्टियों के राष्ट्रीय गठबंधन का आकार लेगा जो 2024 लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देगा। लेकिन स्टालिन भाजपा के हिंदुत्ववादी राजनीति का जवाब देने के लिए कोई वैकल्पिक गठबंधन बनाने की बजाए एक वैचारिक आधारभूमि तैयार करने में लगे हैं। इस दिशा में वह वीपी सिंह को प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करना चाह रहे हैं।
उत्तर भारत के राजनीतिक दल व्यक्तिगत बातचीत में भले वीपी सिंह के नाम और काम की चर्चा करते हों, लेकिन आमतौर पर हर राजनीतिक दल सार्वजनकि तौर पर उनके नाम से परहेज करता है। यहां तक कि सामाजिक न्याय की शक्तियां भी। सवर्ण नेतृत्व वाली भाजपा-कांग्रेस तो मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने के लिए लंबे समय तक उन्हें कटघरे में खड़ा करती रहीं। लेकिन सामाजिक न्याय की शक्तियां उनके कदम को मजबूरी में उठाया हुआ बताती हैं। इसलिए मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने का श्रेय वीपी सिंह को देने की बजाए खुद लेती हैं। ऐसे में यह सवाल ही नहीं उठता है कि उत्तर भारत की पार्टियां उन्हें किसी सामाजिक बदलाव का वाहक मानें।
1989 में जनता दल की सरकार को भाजपा का बाहर से समर्थन था। वीपी सिंह ने अगस्त 1990 में ओबीसी के लिए आरक्षण पर मंडल आयोग की रिपोर्ट के माध्यम से एक बड़ा जोखिम उठाया था, जो 1970 के दशक से लंबित था।
मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के बाद वीपी सिंह को अपने सहयोगी भाजपा के साथ ही विशेष रूप से उच्च जाति समूहों (सिंह स्वयं एक ठाकुर थे) के हिंसक विरोध का सामना करना पड़ा। उस समय उत्तर भारत के शिक्षण संस्थानों से लेकर सड़कों पर सवर्ण जातियों ने विरोध-प्रदर्शन किया। ऐसे में डीएमके (DMK)के रूप में एक दृढ़ सहयोगी मिला, जिसका नेतृत्व एम करुणानिधि कर रहे थे। DMKजनता दल सरकार में भी एक सहयोगी थी, जिसके नेता मुरासोली मारन एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और दिल्ली में पार्टी का चेहरा थे।
नवंबर 1990 में जनता दल की सरकार गिरने के बाद भी वीपी सिंह और डीएमके के बीच मधुर संबंध बना रहा। सिंह के पास मंडल परियोजना के लिए ऐसी सहयोगी द्रविड़ पार्टी थी जिसने पेरियार के नेतृत्व में सामाजिक न्याय आंदोलन से उभरने के बाद लंबे समय से पिछड़े वर्गों और समूहों के नेताओं के शीर्ष पर पहुंचने के लिए दरवाजे खोल दिए थे। इसका मतलब यह था कि तमिलनाडु शायद एक ऐसा राज्य था जहां मंडल आयोग की स्थापना का पूरे दिल से स्वागत किया गया था। मंडल पैनल में संयोग से तमिलनाडु में ओबीसी मछुआरा समुदाय के सदस्य सुब्रमण्यम शामिल थे।
इसके परिणामस्वरूप तमिलनाडु में मंडल आयोग की रिपोर्ट जारी करने की मांग को लेकर विरोध और रैलियां देखी गईं, जिसने देश भर के सामाजिक न्याय से जुड़े नेताओं को आकर्षित किया था।
विश्वास मत की हार के बाद वीपी सिंह सरकार के पतन के बाद, करुणानिधि के नेतृत्व वाली डीएमके और द्रविड़ कज़गम (डीएमके के पूर्ववर्ती डीके) ने मंडल के कार्यान्वयन के समर्थन में चेन्नई और कन्याकुमारी के बीच चार दिनों में कई जनसभाओं का आयोजन किया।
वीपी सिंह इन रैलियों में प्रमुख रूप से उपस्थिति थे, मुरासोली मारन मंच पर उनके अंग्रेजी भाषणों का अनुवाद किया करते थे। घटनाओं को व्यापक रूप से तमिल मीडिया द्वारा कवर किया गया था।
उस दौरान वीपी सिंह के भाषणों को व्यापक रूप से कवर करने वालों में से एक विदुथलाई राजेंद्रन थे, जो डीके के एक अनुभवी नेता थे और पार्टी के मुखपत्र ‘विदुथलाई’ से जुड़े थे। माना जाता है कि राजेंद्रन ने दिसंबर 2022 में स्टालिन को सिंह के लिए एक मूर्ति बनाने का सुझाव दिया था।
स्टालिन एक सामाजिक न्याय मंच स्थापित करने के लिए समान विचारधारा वाले भाजपा विरोधी दलों की मांग कर रहे हैं, ऐसी ही एक ऑन लाइन बैठक आयोजित की गई जिसमें एक दर्जन से अधिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
(प्रदीप सिंह की रिपोर्ट।)