बीजेपी वाले और खुद प्रधानमंत्री मोदी ही कहते रहे हैं कि देश अमृतकाल से गुजर रहा है। चारों तरफ अमृत की वर्षा हो रही है। अब तो भक्त लोग यह भी कहने से गुरेज नहीं कर रहे हैं कि जो पापी होगा, उसे ही अमृत काल नहीं दिखेगा। कुम्भ मेले में तो बीजेपी के भगत और कथित साधु संत और कथावाचक भी कहते सुने जा रहे हैं कि जिसने कुम्भ में स्नान नहीं किया वह पापी तो है ही देशद्रोही भी है।
यानी इस बयान का मतलब यह भी हो सकता है कि देश की 140 करोड़ जनता में जिसने कुम्भ का दर्शन और स्नान नहीं किया वे सब पापी हैं और देशद्रोही भी। लगे हाथ यह भी कह सकते हैं कि गांव देहात से लेकर शहर में रहने वाले भगवा धारी और चन्दन धारी भी अगर कुम्भ नहीं पहुंचा तो वह देशद्रोही है। अमृत काल में देशद्रोही होने का यह बड़ा प्रमाण है।
महाकुम्भ में कितने लोग मारे गए और कितने लापता हैं उसकी सही जानकारी सरकार नहीं दे रही है। थेथरई यह है कि संसद के भीतर इस मसले पर सवाल करने वाले सांसदों को भी मूर्ख बनाया जा रहा है और सवाल पूछने वालों पर ठहाके लगाये जा रहे हैं। उधर महाकुम्भ में जिसने भी यूपी सरकार पर सवाल उठाने की कोशिश की है उसे दंडित करने की व्यवस्था की जा रही है। दलाल मीडिया को तो पहले सरकार के पक्ष में मिला ही लिया गया।
पहले दलाल मीडिया को महाकुंभ के झूठे आडंबरी प्रचार के बदले लाखों करोड़ों के विज्ञापन देकर सरकार की कमजोरी को ढकने का खेल हुआ था और फिर उसी दलाल मीडिया को और पैसे और विज्ञापन देकर कुम्भ की मौत और लापता लोगों की संख्या नहीं बताने का अभियान चल रहा है। दलाल मीडिया की चांदी कट रही है।
लेकिन खबर यह नहीं है। खबर तो यह है कि एक फरवरी को मोदी सरकार ने नया बजट पेश किया है। इस बजट के बारे में विपक्ष ने कई सवाल उठाए हैं लेकिन सरकार का दावा है कि इससे बेहतर बजट आज तक नहीं आया। यह बजट भारत को विकसित भारत बनाने की दिशा में अगला कदम है।
चारों तरफ चकाचक है और दुनियाभर के देश भारत के सामने नतमस्तक है। बजट पेश होने के दो दिन बाद फ़ोर्ब्स पत्रिका ने भारत को दुनिया के दस शक्तिशाली देशों की सूची से बाहर कर दिया। यह मोदी सरकार पर बड़ा तमाचा था। लेकिन सच तो यही है कि दलाल मीडिया ने इस खबर को भी मुद्दा नहीं बनाया।
इस खबर को रंगहीन सा कर दिया मानो कुछ हुआ ही नहीं। खबर छुपाने का यह अमृतकाल है। सवाल करो तो ठहाके लग जाते हैं और लोग कहते हैं कि आप लोग केवल निगेटिव ही देखते हैं। कुछ बेहतर भी देखो। हिन्दुओं की बढ़ती ताकत को देखो।
लेकिन कितना देखा जाए? इस बजट में तो सरकार ने देश के एक बड़े संस्थान को ही खत्म करने की शुरुआत जो कर दी है। दलाल मीडिया को इससे क्या लेना देना। लेकिन सच यही है कि अमृतकाल में देश की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्था जिसे एनआईआरडीपीआर के नाम से भी जाना जाता है, के लिए यह काल विष के समान हो गया है। मोदी सरकार ने पिछले दस सालों में कई सरकारी संस्थानों को बंद किया है या फिर बेच दिया है, ऐसे बजट को देखते हुए अब लग रहा है कि सरकार की निगाह अब इसी संस्थान पर जा टिकी है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब मोदी सरकार के निशाने पर देश का गौरव और ग्रामीण विकास और पंचायती राज व्यवस्था की महती संस्था राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान यानी एनआईआरडीपीआर आ गई है?
और अगला सवाल यही है कि क्या अन्य कई सरकारी संस्थाओं को बंद करने के बाद अब मोदी सरकार इस संस्था को ही बंद करने का इरादा रख रही है?
कुछ और सवाल भी हो सकते हैं लेकिन बड़ी बात तो यही है कि इस बार के बजट में इस संस्था को बजट विहीन कर दिया गया है। हालिया बजट में इस संस्थान को मात्र एक लाख दिया गया है।
बता दें कि यह संस्था हैदराबाद में स्थित है और इसमें 100 से ज्यादा संकाय सदस्य हैं और यहां कुल कर्मचारियों की संख्या 222 है। ग्रामीण विकास प्रबंधन में नियमित स्नातकोत्तर डिप्लोमा और दूरस्थ शिक्षा में तीन पाठ्यक्रम प्रदान करता है यह संस्थान।
इसके साथ ही ग्रामीण विकास में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करने का काम करने वाला यह संस्थान अब सरकार के निशाने पर आ गया है। यहां के कर्मचारियों में 54 एससी, सात एसटी और 56 ओबीसी श्रेणी के कर्मचारी शामिल हैं। पिछले साल के 2024-25 बजट में इस संस्था को 73.68 करोड़ की राशि अलॉट की गई थी जबकि इस साल के बजट में मात्र एक लाख रूपये संस्थान के नाम पर अलॉट किये गए हैं।
आगे बढ़ें इससे पहले इस महती संस्थान के बारे में जानकारी जरूरी है। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन एक अग्रणी संस्थान है। यह ग्रामीण विकास व पंचायत राज क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्वीकृति प्राप्त एक उत्कर्ष केंद्र है।
संस्थान का मुख्यालय तेलंगाना राज्य के हैदराबाद शहर में स्थित है। इसके अलावा उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए गुवाहाटी में एक क्षेत्रीय कार्यालय भी है। संस्थान में ग्रामीण विकास तथा स्वरोज़गार क्षेत्र में तैनात अधिकारियों तथा लाभार्थियों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा ग्रामीण विकास क्षेत्र में कार्य करने के इच्छुक छात्रों के लिए स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम भी चलाए जाते हैं।
संस्थान की शुरुआत 1950 में देश के गोष्ठी उन्नयन ब्लॉक के ग्रामीण अधिकारियों को प्रशिक्षण देने के लिए हुई। इसका पहला कार्यालय मसूरी में वर्ष 1958 में बना। बाद में देहरादून में एक प्रशिक्षण केंद्र खुला। फिर वर्ष 1962 में दोनों कार्यालयों को मिला कर केंद्रीय गोष्ठी उन्नयन संस्थान बना गया। बाद में इसे हैदराबाद में स्थानांतरित कर इसका नाम राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान किया गया।
हालांकि इस संस्थान पर कई दाग भी लगते रहे हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान के परिसर में व्यापक यौन शोषण के मामले दर्ज किए गए हैं। वर्ष 2018 में इंडोनेशिया की एक छात्रा का यौन शोषण करने के आरोप में संस्थान के सहायक प्रोफ़ेसर सत्य रंजन महाकुल साइबराबाद पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किए गए।
वर्ष 2015 में संस्थान के सहयोगी प्रोफ़ेसर डॉ वी सुरेश बाबू सहायक प्रोफ़ेसर श्रीमती जी वैलेंटाइना की यौन उत्पीड़न के लिए कार्रवाई की गई थी। पर केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने उन्हें दंड से मुक्त कर दिया।
संस्थान की वरिष्ठ अधिकारी तथा कवयित्री हेमांगी शर्मा ने यह आरोप लगाया था कि मशहूर कवि तपन कुमार प्रधान ने एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान उनका यौन शोषण किया था। परन्तु डॉ. प्रधान ने अपनी पुस्तकों में यह दावा किया है कि हेमांगी शर्मा के साथ उनका पिछले जन्म से अंतरंग संबंध था।
संस्थान के अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार के कई आरोप भी लगे हैं। इनमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से लेकर वरिष्ठ अध्यापक भी शामिल हैं। कार्यकर्ता तपन कुमार प्रधान ने संस्थान के महानिदेशक को अपने पत्र तथा केंद्रीय सूचना आयोग को अपनी पिटीशन में संस्थान के परिसर में व्यापक अनियमितता का खुलासा किया था।
लेकिन बड़ी बात तो यही है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) अधिकारियों और ग्राम पंचायतों तथा जिला परिषदों के निर्वाचित सदस्यों की क्षमता निर्माण के लिए बहीखाता पद्धति तथा ग्रामीण विकास योजनाओं के क्रियान्वयन के तौर-तरीकों पर प्रशिक्षण आयोजित करता है। यह राज्य ग्रामीण विकास संस्थानों (एसआईआरडी) तथा जिला विस्तार प्रशिक्षण केंद्रों का भी संचालन करता है।
एनआईआरडीपीआर के कर्मचारी संघ ने अपने 222 कर्मचारियों के भविष्य को लेकर आश्चर्य और चिंता व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है, “इस फैसले ने 222 कर्मचारियों और उनके परिवारों को चौंका दिया है और उन्हें निराश कर दिया है, जिनका भविष्य अनिश्चित है।
और अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि कर्मचारियों से परामर्श किए बिना ही उन्हें अलग करने का फैसला लिया गया, जिसमें 54 एससी, सात एसटी और 56 ओबीसी श्रेणी के कर्मचारी शामिल हैं। इस तरह के अप्रत्याशित कदम ग्रामीण विकास और विकेंद्रीकरण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा करता है।”
सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि आवंटन से लगता है कि सरकार ने एनआईआरडीपीआर को बंद करने का फैसला किया है। डे ने कहा, “एनआईआरडीपीआर के लिए 1 लाख रुपये का आवंटन यह धारणा देता है कि संस्थान बंद हो जाएगा। अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने के अलावा, यह योजनाओं का मूल्यांकन करने के लिए अध्ययन भी करता है। अगर इसे बंद कर दिया जाता है तो यह देश के लिए बहुत बड़ा नुकसान होगा।”
ग्रामीण विकास मंत्रालय के पूर्व आर्थिक सलाहकार साहू ने कहा कि आवंटन में कमी से जनशक्ति प्रशिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो सकता है। साहू ने कहा, “जनशक्ति के प्रशिक्षण का पूरा ग्रामीण विकास पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो जाएगा। सरकार को आवंटन पर फिर से विचार करने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा कि हर संस्थान में कुछ कमियां होती हैं और सरकार को उन्हें सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए, लेकिन फंड आवंटन में इतनी अचानक और तेज कमी शायद सही रास्ता न हो।
एक अधिकारी ने कहा कि सरकार ने अरुण जेटली इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट से एनआईआरडीपीआर और एसआईआरडी का मूल्यांकन करने को कहा है। अधिकारी ने कहा, “सरकार का रुख यह है कि वह पिछले 70 सालों से स्वायत्त संस्थानों का पोषण कर रही है और उससे आगे भी उनसे मदद की उम्मीद नहीं की जा सकती। उन्हें फंड जुटाना होगा।” इससे एनआईआरडीपीआर के पास फीस बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा।
बातें कई तरह की जा रही हैं लेकिन बड़ी बात तो यही है कि इतने महत्वपूर्ण संस्थान के लिए अचानक बजट में कटौती क्यों की गई है?
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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