Sunday, April 28, 2024

ग्रांउड से चुनाव: भूपेश बघेल के क्षेत्र में सब कुछ नहीं है दुरुस्त

पाटन। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की सभी 70 सीटों पर 17 नंवबर को मत डाले जाएंगे। इसमें मैदानी और उत्तरी हिस्से की सीटें भी शामिल हैं। दूसरे चरण के मतदान में सीएम भूपेश बघेल, डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव, भाजपा के दिग्गज नेता ओपी चौधरी, विजय बघेल समेत कई अन्य नेताओं के भाग्य का फैसला होगा।

इस चरण के चुनाव में कई हाई प्रोफाइल सीटें हैं। जिसमें कई दिग्गज नेता आमने-सामने हैं। ऐसी ही एक सीट है पाटन विधानसभा। जिसे कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है। यहां से सूबे के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और दुर्ग के सांसद और सीएम के भतीजे विजय बघेल आमने-सामने हैं। 

चुनावी मौसम के बीच सीट का जायजा लेने के लिए ‘जनचौक’ की टीम पाटन विधानसभा गई। यह सीट एक तरफ से राजधानी रायपुर और दूसरी तरफ से स्टील सिटी भिलाई से सटी हुई है। हम भिलाई की तरफ से इस सीट का जायजा लेने पहुंचे। इस तरफ से जाते हुए पचमेड़ी से विधानसभा की शुरुआत होती है।

त्योहारी सीजन में प्रचार का माहौल कम

विधानसभा क्षेत्र की सड़कें एकदम साफ और बिना गड्ढे की हैं। पचमेड़ी में सड़क के बगल में एक सरकारी स्कूल है। जिसकी दीवारों को ट्रेन की थीम पर पेंट किया गया है। यहां से भाजपा और कांग्रेस के झंड़ों के साथ भूपेश बघेल और विजय बघेल की हाथ जोडें तस्वीरें दिखाई देनी शुरू हो जाती हैं।

काफी दूर जाने के बाद भी हमें प्रचार का माहौल नहीं दिखाई देता है। त्योहारी सीजन होने के कारण ज्यादातर लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त थे।

पाटन की ओर जाती सड़क देखने लायक है। दोनों तरफ खेत, मशीनों से कटता धान, बायोडायवर्सिटी पार्क और होर्डिंग में पाटन का सामुदायिक रेडियो का ऐड लगा हुआ दिखता है। सड़क पर लगे बोर्ड के सहारे हम पाटन की तरफ बढ़ रहे थे।

तभी हमने फुंडा गांव जाने का निर्णय लिया। सड़क किनारे बसे इस गांव की सहकारी समिति के बाहर कई पुरुष बैठे हुए थे। इसी गांव में कुछ महिलाएं और बच्चियां भाजपा का प्रचार-प्रसार कर रही थीं। वो लोगों के घरों में पर्चियां बांटने के साथ-साथ विजय बघेल जिंदाबाद के नारे लगा रही थीं।

इससे आगे बढ़ने पर गांव में अलग-अलग जगहों में भाजपा और कांग्रेस के झंडे लगे हुए थे। इसी विधानसभा से पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी जनता कांग्रेस की तरफ से मैदान में हैं। लेकिन गांव में जहां तक हम गए वहां तक उनके प्रचार का कुछ भी नहीं दिखाई दिया।

इसके इतर निर्दलीय उम्मीदवार की प्रचार गाड़ी घूमते हुए मिली। गांव के एंट्री प्वांइट पर एक परिवार मिला। जिसमें महिला आंगनवाड़ी कार्यकर्ता है। नाम न लिखने की शर्त पर उन्होंने सरकार के शराबबंदी के वायदे पर सवाल उठाए और कहा कि इस बार सरकार 15 हजार का वायदा कर ही है। जबकि पिछले बार 500 कह कर एक रुपया भी नहीं दिया।

स्लोगन से पटा गांव

गांव की इस गली में भाजपा के ही झंडे लगे हुए थे। हम गांव में आगे की ओर बढ़े तो पता चला कि गांव में लगभग 350 घर हैं। जिसमें 1500 से 1600 के करीब वोटर हैं।

बंगाल की तरह यहां भी गांव के बीच तालाब में महिलाएं कपड़े धो रही थीं। गांव की गलियां पक्की थीं। गांव में तालाब के पास एक गली की बाएं ओर लिखा था “धान का कटोरा के राखिस मान अब भूपेश भैया लिही 20 कुंटल धान”।

वहीं दाहिनी ओर लिखा था “विकास की बात भाजपा के साथ” साथ ही खड़ी प्रचार गाड़ी में “अउ नई सहिबो बदल के रहिबो” लिखा था।

धान के मुद्दे पर करेंगे वोट

तालाब के चारों तरफ घर बने हुए थे। ऐसे ही एक घर के बाहर हमें कुलदीप वर्मा और उनके पड़ोसी मिले। कुलदीप पेशे से बस कंडक्टर हैं। साथ ही उनके पास ढाई एकड़ खेती भी है। वह कहते हैं कि “मैं दोनों ही काम करता हूं। एक बच्ची है जो सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं और पत्नी हाउस वाइफ है।”

कुलदीप का कहना था कि वह कई बार बाहर ड्यूटी लग जाने के कारण वोट नहीं डाल पाते हैं। इस बार उनकी ड्यूटी नहीं लगी है इसलिए वह इस बार वोट डालेंगे। उनका वोट विकास के नाम पर होगा।

वह कहते हैं कि हमारे गांव का ज्यादातर वोट भाजपा को ही जाता है। भले ही यह कांग्रेस का गढ़ है। लेकिन यहां भाजपा ही आगे रहती है। कुलदीप सरकार की एमएसपी पर धान खऱीदी से खुश हैं।

कुलदीप का कहना था कि उन्हें धान बिक्री पर सारा बोनस मिलने के साथ-साथ प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास भी मिला है। कांग्रेस की केजी से पीजी तक फ्री एजुकेशन की घोषणा से कुलदीप खुश हैं। उनका मानना है कि इस तरह से गरीब के बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे।

कुलदीप।

गांव में दीवाली के माहौल के बीच घरों के बाहर दीये और रंगोली बनी हुई थी। गांव में कहीं-कहीं कच्चे घर भी दिखाई देते हैं।

वायदों पर भरोसा नहीं

ऐसे ही एक कच्चे घर के सामने ललित यादव और उसकी सास बैठी थीं। ललिता 22 साल की हैं और पहली बार वोट करेंगी। उनकी सबसे बड़ी शिकायत है कि उन्हें सरकारी आवास नहीं मिला है और उसकी सास का कहना था कि उसके बड़े बेटे और पति का इस बार सूची में नाम ही नहीं है। उन्हें इस बात का दुख है कि उनके घर के दो वोट कम हो जाएंगे।

हमने ललिता से काफी देर तक बात की। उसकी छह महीने की बेटी है। जमीन के नाम पर उनके पास एक टुकड़ा भी नहीं है। उसके पति मजदूरी करते हैं।

ललिता की दोनों आंखों के बगल में ऊपर तक काले घेरे थे। हमने उनसे इसका कारण पूछा तो बोलीं, “सिक्ल सेल की समस्या है और शरीर में मात्र आठ ग्राम खून है।”

खानपान के बारे पूछने पर वह कहती हैं कि “पति मजदूर हैं, जितना कमाते हैं उससे घर ही चल पाता है। ऐसे में दूध और फल कहां से खाऊंगी? सर पर छत्त नहीं है। मैंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत फॉर्म भरा था। लेकिन मेरा नाम ही नहीं आया।”

कांग्रेस के द्वारा महिलाओं को 15 हजार और भाजपा द्वारा 12 हजार रुपये सालाना देने के वायदे पर हमने ललिता की प्रतिक्रिया पूछी तो वह हंसते हुए कहती हैं कि “पता नहीं जीतने के बाद कोई देगा की नहीं।”

ललिता।

लेकिन उसकी शिकायत है कि उन्हें अभी तक बीपीएल कार्ड नहीं मिला है। जिसके कारण उन्हें सरकारी रियायत पर चावल नहीं मिल पाता है। जबकि उसकी सास के पास बीपीएल कार्ड है। जिसमें उन्हें 35 किलो चावल मिलता है।

ओबीसी वोटर की संख्या ज्यादा

पाटन विधानसभा में ओबीसी और दलित वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। जातिगत समीकरण भी इस सीट के लिए खास है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सांसद विजय बघेल दोनों ही ओबीसी हैं और अमित जोगी अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखते हैं।

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा साल 2022 में की गई जातिगत जनगणना के अनुसार प्रदेश में 43.5% ओबीसी हैं। इसमें साहू समुदाय की संख्या 24 प्रतिशत है।

जबकि पाटन विधानसभा का जातीय समीकरण देखें तो यहां साहू वोटर 65,000, कुर्मी 26,000, सतनामी 29,000, यादव 21,000 और आदिवासी वोटर 21,000 हैं। 

पाटन विधानसभा के सड़क किनारे लोहरसी ग्राम पंचायत है। सड़क के किनारे कुछ घर और दुकानें हैं। यहां एक सड़क किनारे गली में कुछ बुजुर्ग महिलाएं बैठी हुई थीं। चुनाव का कुछ खास माहौल यहां भी नहीं दिखाई दे रहा था। इन महिलाओं में तीन आदिवासी गोंड समुदाय की थीं। हमने उनसे आधारभूत सुविधाओं के बारे में बात की।

स्वास्थ्य सुविधा से कोई खुश तो कोई नाखुश

गोमतीबाई चंद्राकर ने हमें बताया कि यहां से तीन किलोमीटर दूर तर्रा में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। जहां सामान्य सर्दी बुखार के अलावा बीपी की दवाई मिल जाती है। डॉक्टर के रेगुलर आने और सारी दवाई मिलने के बारे पूछने पर वह कहती हैं कि कभी-कभी डॉक्टर नहीं आते हैं। बाकी दवाइयां मिल जाती हैं।

गोमतीबाई चंद्राकर।

गर्भवती महिलाओं को लेकर उनका कहना है कि तर्रा में सामान्य जांच होती है। बाकी डिलीवरी के लिए पाटन ही जाना पड़ता है।

गोमतीबाई की बात से केकतीबाई ठाकुर इत्तेफाक नहीं रखती हैं। वह कहती हैं कि “अस्पताल में सारी दवाइयां नहीं मिलती हैं। हमलोग बुजुर्ग हैं। जिस दवाई की जरूरत होती है वह मिलती ही नहीं। डॉक्टर बाहर से लेने को कह देते हैं।”

आवास है लेकिन बिजली नहीं

केकतीबाई बुजुर्ग हैं, जिनकी उम्र तकरीब 65 साल के आसापास होगी। गोंड जाति से ताल्लुक रखने वाली केकतीबाई के पास सरकारी आवास तो है लेकिन उसमें बिजली नहीं है।

वह मुझे अपने आवास को दिखाते हुए बताती हैं कि “चार साल पहले पति का देहांत हो गया है। मेरे घर के सामने बहू-बेटा रहते हैं। लेकिन मुझे पूछते नहीं हैं। मैं यहां अकेली रहती हूं।”

वह अपने घर को दिखाते हुए कहती हैं कि “मेरे पास इस आवास के अलावा कुछ नहीं है।” घर में एक चारपाई थी। उसमें कुछ बोरे और कपड़े रखे थे। घर में लाइट नहीं थी।

उन्होंने बताया कि “मैं कई दफा सचिव के पास अपनी फरियाद लेकर गई हूं, हर बार मुझे आश्वासन देकर भेज देते हैं। मैं अकेली हूं अंधेरे में रहने को मजबूर हूं।”

केकतीबाई।

हमने उनसे काम धंधे के बारे में पूछा तो केकतीबाई बोलीं कि “पहले शऱीर में ताकत थी तो मजदूरी कर लेती थी। अब शरीर साथ नहीं देता तो सोसायटी से मिलने वाले चावल के भरोसे जिदंगी चल रही। पहले विधवा पेंशन 350 मिलती थी अब 500 मिल रही है। इससे ही गुजारा कर रही हूं। इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।”

चौथी बार चाचा भतीजा आमने-सामने

पाटन विधानसभा में भाजपा और कांग्रेस के अलावा 18 प्रत्याशी मैदान में हैं। लेकिन जनता के बीच सीधी टक्कर चाचा-भतीजे के बीच है। कांग्रेस धान के बढ़े समर्थन मूल्य पर वोट मांग कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा 2018 में शराबबंदी पर किए गए वायदे को याद दिलाकर जनता को बता रही है कि सरकार ने अपना वायदा पूरा नहीं किया है। 

साल 2018 में हुए चुनाव के दौरान मुख्य़मंत्री भूपेश बघेल पांचवीं बार पाटन से विधायक चुने गए थे। उनकी लड़ाई एक बार फिर भतीजे के साथ है।

ये चुनावी टक्कर पहली बार नहीं है। भूपेश बघेल अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से ही पाटन पर काबिज हैं। साल 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार 2003 में विधानसभा चुनाव हुआ। उस समय पाटन सीट पर भूपेश बघेल और विजय बघेल आमने-सामने थे। इसमें भूपेश बघेल की जीत हुई।

साल 2008 के चुनाव में विजय बघेल ने भूपेश बघेल को उनके ही गढ़ में तकरीबन 59 हजार वोट से हार दिया। साल 2013 के चुनाव में भाजपा की सरकार के दौरान एक बार फिर दोनों आमने-सामने आए और चाचा ने भतीजे के 10 हजार वोट से हरा दिया। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में विजय बघेल दुर्ग से सांसद चुने गए।

(पूनम मसीह की ग्राउंड रिपोर्ट।)

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