हिमाचल द्वारा ‘राजकीय आपदा’ के बाद अब केंद्र से ‘राष्ट्रीय आपदा’ की घोषणा का इंतजार

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हिमाचल में बारिश की तबाही का मंजर अभी खत्म नहीं हुआ। इसकी जद में अब निचले इलाके भी आ गये हैं। मानवीय त्रासदी के दृश्य भयावह हैं। मलबे में दबकर मर गये लोगों की लाशें अभी निकाली ही जा रही हैं। भयावह बारिश में बहकर और चट्टानों में फंसकर मारे गये लोगों की लाशें अब भी मिल रही हैं। शिवबाड़ी मंदिर पर गिरे मलबे में मारे गये लोगों की संख्या 14 पहुंच चुकी है। इस अगस्त की बारिश में अब तक 80 लोगों के मारे जाने की खबर आ चुकी है। और इस मानसून में मरने वाले लोगों की संख्या 350 का आंकड़ा छूने की ओर है। हजारों करोड़ रुपये की बर्बादी की सूचना खुद राज्य सरकार दे रही है।

हिमाचल प्रदेश के राजस्व विभाग के अंतर्गत काम करने वाले आपदा प्रबंधन विभाग ने 18 अगस्त, 2023 को अपनी अधिसूचना में लिखा हैः “इस अप्रत्याशित गंभीर हालात को ध्यान में रखते हुए, जिसमें इंसानों की जिंदगी खत्म हुई है और जो नुकसान, तबाही और बर्बादी हुई है; निजी और सार्वजनिक क्षेत्र को जो नुकसान हुआ है; राज्य सरकार ने यह घोषणा करने का निर्णय लिया है कि हिमाचल एक ‘प्राकृतिक आपदा प्रभावित क्षेत्र’ है। जब मौसम सामान्य होगा और पहुंच आसान बनेगी तभी संपत्ति, आवश्यक सामानों, अधिसंरचना और फसलों की बर्बादी और नुकसान का वास्तविक अनुमान लगाया जा सकेगा। इसे संबंधित जिला और विभागों द्वारा देखा जायेगा और सरकार द्वारा उसका अनुरक्षण और पुननिर्माण किया जायेगा।”

17 अगस्त, 2023 को अमर उजाला की रिपोर्ट दिखा रही थी कि मंडी, शिमला, कुल्लू, सिरमौर और उसके आस-पास की 1,220 सड़कें बंद हो गई थीं। 1,841 ट्रांसफॉर्मर ठप हो गये थे और बहुत से हिस्सों में पेड़ गिरने से तार टूटकर बह गये थे। इन इलाकों के हाइवे ही बंद नहीं हुए, बल्कि जब मलबों को हटाने का प्रयास किया जा रहा था तब पहाड़ के टूटकर गिरने का सिलसिला भी चल रहा था।

17 अगस्त, 2023 को ही हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट थी कि हिमाचल में 17,120 ऐसे क्षेत्र थे जो भूस्खलन से ग्रस्त थे। इसमें भी 675 खतरनाक स्थिति में थे। इसमें सबसे अधिक वे क्षेत्र थे जो पहाड़ों की खड़ी कटाई और नदियों के पटान के करीब थे। आमतौर पर सड़कों का जो नया निर्माण हुआ है उसमें पहाड़ को सीधा काटने की नीति अपनाई गई है। इसी तरह भवन निर्माण के लिए जमीन पर लगातार दबाव बढ़ने की वजह से नदियों के आसपास के इलाकों में बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ है।

मलबा, ढलान और पानी के बहाव के रास्तों का संकरा होना भूस्खलन का एक तात्कालिक कारण उभरकर आया है। इसके अलावा ब्लास्टिंग, हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट, फुटहिल पर भवन निर्माण की बाढ़ और ऊपरी हिस्सों में पानी के बहाव में बाधाएं, सामान्य से थोड़ी भी अधिक बारिश तबाही के उस मंजर के लिए जमीन तैयार करती है, जिसमें ऊपर से नीचे तक सारा हिस्सा एक के बाद एक चपेट में आता चला जाता है।

हिमाचल में पूरे मानसून में औसतन 730 मिमी बारिश होती है। लेकिन, जून से अगस्त के बीच अब तक 742 मिमी की बारिश हो चुकी है। संभव है आगे अभी बारिश की स्थिति इसमें कुछ और इजाफा करे। जाहिर है कि बारिश की यह बढ़ोत्तरी एकदम गुणात्मक छलांग लगाते हुए नहीं दिख रही है। प्रतिदिन के हिसाब से असामान्य बारिश की घटनाएं जरूर दिख रही हैं। हिमाचल में पिछले 55 दिनों में 113 भूस्खलन की घटनाएं दिखी हैं। भूस्खलन होने में बारिश एक तात्कालिक कारक की तरह ही आ रही है लेकिन उसकी स्थितियां बनने में दूसरे कारकों की मुख्य भूमिका लग रही है।

2022 में भूस्खलन की कुल संख्या 117 थी। निश्चित ही 2023 में यह कुल संख्या कहीं ज्यादा होने वाली है। 2020 में इसकी संख्या महज 16 थी। इस राज्य ने जिन 17,120 भूस्खलनों के होने की संभावना वाले क्षेत्रों को चिन्हित किया है उसमें से 675 अधिसंचना विकास, आवास जैसी जगहों से जुड़े हुए हैं। जिन शहरों में ये चिन्हित हुए हैं उसमें मुख्य तौर पर चंबा, मांडी, कांगड़ा, लाहौल और स्पित, उना, कुल्लू, शिमला और सोलन हैं। ये वह क्षेत्र हैं जहां विकास के नाम पर प्रकृति का दोहन भयावह तरीके से चल रहा है। ज्यादातर इन्हीं शहरों के पास के गांव भूस्खलन से अधिक प्रभावित हुए हैं।

इस समय हिमाचल में कुल 68 टनल रोड निर्माण का प्रस्ताव है, जिसमें से अभी तक 11 बने हैं, 27 बन रहे हैं और 30 पर काम की तैयारियां चल रही हैं। निश्चित ही यह बहस भी इसके साथ जुड़ी हुई है कि हिमालय जैसी जगह में टनल का निर्माण कितना उपयुक्त है। वहीं सड़कों को चार लेन में बदलने के लिए पहाड़ों की कटाई और गलत तरीके से किये गये निर्माण का खामियाजा हम इस मौसम की तबाही में देख रहे हैं।

इस दौरान, गांवों की खबर बेहद कम आ रही है। यह मौसम सेब की फसल के तैयार होने का है। फरवरी के आसपास सेब की फसल में फूलों का आना शुरू होता है। यह जुलाई के अंत और अगस्त के पहले हफ्ते तक तैयार हो जाता है। हिमाचल में इस फसल का मुख्य उत्पादक क्षेत्र शिमला, मांडी और इसी से सटे ऊपर के इलाके हैं। इस समय फसल तैयार है।

सामाजिक कार्यकर्ता भगत राम मंडोत्रा ने बताया कि “इस बार मौसम की मार कुछ ज्यादा ही है। मई-जून के महीने में ओला वृष्टि ने सेब के फलों पर दाग लगा दिए हैं। हालांकि, इसमें काफी सुधार आ गया था फिर भी 10 प्रतिशत असर तो रह ही गया। अभी जब फसल तैयार है तो फसल को मंडी में बिकने के लिए आना है। बारिश ने रास्तों को बंद कर दिया है। इससे फसल की ढुलाई पर असर पड़ रहा है। संभव है इसके खरीद के दामों पर भी असर पड़ जाय।”

बहरहाल, टाइम्स ऑफ इंडिया ने 18 अगस्त की रिपोर्ट में पूणे से जो खबर दी है उसमें हिमाचल में बाढ़ और तबाही से सेबों के दाम में 20-25 प्रतिशत उछाल का अनुमान पेश किया है। सेबों की आपूर्ति मुख्यतः शिमला, कुल्लू-मनाली और जम्मू-कश्मीर से होती है। रास्तों के बंद होने से सेबों की आपूर्ति और सेबों के खराब होने के अनुमान के आधार पर बाजार के आढ़ती दामों में वृद्धि कर सकते हैं। सेबों के दाम आमतौर अभी ऊंचे बने हुए हैं।

हिंदुस्तान टाइम्स की 17 अगस्त की रिपोर्ट में सोलन, चंबा और मांडी के गांवों के प्रभावित होने की खबर है। न्यूजलॉन्ड्री के लिए हृदयेश जोशी की कुल्लू से 50 किमी दूर सेंज से की गई खबर है। यहां नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर कॉरपोरेशन की बिजली परियोजना है। यहां के बांध से अचानक छोड़े गये पानी की वजह से कई गांव के लोगों के घर, दुकानें और अन्य निर्माण बह गये। 2,500 से ऊपर लोग बेघर होने की स्थिति में आ गये हैं और वे टेंटों में रहने के लिए विवश हो गये हैं।

हिमाचल में सरकारी और गैर-सरकारी दोनों ही तरह की कथित ग्रीन बिजली परियोजनाएं बन रही हैं और आगे के लिए योजनाबद्ध की जा रही हैं। जबकि इनसे होने वाले नुकसान के बारे में लगातार खबरें भी आ रही हैं।

भारत का उत्तरी क्षेत्र हिमालय से आबाद है। और, इसी से सिंध, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों से बने विशाल भूभाग पर भारत का ऊपरी हिस्सा बसा हुआ है। इससे निकलने वाली नदियां निरंतर अपना रास्ता बदलती रही हैं और कई हिस्सों को सूखा और कई हिस्सों को अपनी आर्द्रता से आबाद करती रही हैं। इनका अध्ययन सिर्फ पहाड़ से ही नहीं जुड़ा हुआ है। यह मैदानों के साथ अनिवार्य तौर पर जुड़ा हुआ है। इन पहाड़ों पर जो भी निर्माण और विनाश चल रहा है, उसका असर मैदानों तक आता है। इसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

15 अगस्त, 2023 को जब प्रधानमंत्री मोदी लाल किले से एक लंबा और विवादित भाषण दे रहे थे, उस समय हिमाचल और उत्तराखंड मानसून की बारिश की तबाही से जूझ रहा था। ये दोनों राज्य इस मानसून में दूसरी बार इसकी मार झेल रहे थे। वहीं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश का पूर्वी इलाका, बिहार और झारखंड का एक बड़ा हिस्सा कम बारिश से सूखे की स्थिति में पहुंचता दिख रहा था। यह देश के लिए कोई सामान्य स्थिति नहीं है। विविध तरीके के हिंसा से जूझ रहे देश में मानसून की मार कम भयावह नहीं है।

प्रधानमंत्री मोदी के पिछले भाषणों में हम कार्बन उत्सर्जन को लेकर बड़े-बड़े दावे सुन चुके हैं। उन्होंने इसे सौर उर्जा परियोजनाओं से जोड़कर कई दावे किये। हालांकि यह बात तब भी साफ थी कि यह सौर उर्जा परियोजना एक बड़े कथित पूंजी निवेश से सीधे जुड़ी हुई है और इसमें अडानी और कुछ अन्य राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां उतर चुकी हैं। इस बार इन सब बातों का जिक्र नहीं था। उनका भाषण, जैसा कि विश्लेषक बता भी रहे हैं, 2024 के चुनाव की एक शुरूआत थी।

जो भी हो, लेकिन हिमाचल के आम लोगों की जिंदगी की तबाही और बर्बादी को यूं ही दरकिनार नहीं किया जा सकता। इसे एक राष्ट्रीय आपदा के तौर पर देखना चाहिए और केंद्र से इसकी घोषणा भी होनी चाहिए। साथ ही, पर्यटन, आलीशान आवासीय परियोजनाओं, होटलों, सड़क और सर्वाधिक हाइड्रो प्रोजेक्ट निर्माण को लेकर गंभीर चिंतन करने और इन्हें प्रकृति, परिस्थितिकी और आम इंसानी जीवन के साथ जोड़कर चलने की जरूरत है।

(अंजनी कुमार पत्रकार हैं।)

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