यशोधरा राजे की ‘अलविदा रणनीति’ से क्या बच पाएगा सिंधिया परिवार का राजनीतिक वजूद?

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नई दिल्ली। ग्वालियर का शाही सिंधिया वंश इस समय संकट में है। संकट का कारण राजनीति है। सिंधिया परिवार की बेटी और मध्य प्रदेश सरकार में खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की यह घोषणा कि वह शिवपुरी से आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, इस संकट का एक लक्षण भर है। सच्चाई यह है कि कुछ वर्षों तक देश और प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करने वाला सिंधिया परिवार अब अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस संघर्ष में यशोधरा राजे अपने भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए सारथी की भूमिका निभा सकती हैं। अन्यथा यह माना जायेगा कि वह अब तक विरासत की राजनीति कर रही थी जब चुनौतीपूर्ण परिस्थिति बनी तो मैदान छोड़ दीं।

मध्य प्रदेश की राजनीति को आजादी के तुरंत बाद से ही प्रभावित करने वाला यह परिवार इस समय अपने राजनीतिक वजूद और विरासत पर संकट को देखकर परेशान है। एक समय तक सिंधिया परिवार ग्वालियर-चंबल संभाग में जिसके कंधे पर हाथ रख देता था वह लोकसभा-विधानसभा का चुनाव जीत जाता था। लेकिन 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने ही पूर्व सहयोगी केपी सिंह यादव से गुना संसदीय सीट हार गए। इस हार को वह पचा नहीं पाए, और कुछ समय बाद ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए।

कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद उन्होंने अपने समर्थकों और विधायकों को भी भाजपा में शामिल कराना शुरू किया। राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार को गिराने से भी परहेज नहीं किया। कांग्रेस सरकार गिराते वक्त उन्हें आशा थी कि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बना देगी। लेकिन मुख्यमंत्री बनाने की कौन कहे पार्टी में उनका इतना विरोध हुआ कि पार्टी हाईकमान को हस्तक्षेप करके विरोध को शांत कराना पड़ा।

फिलहाल लंबे समय बाद सिंधिया परिवार एक पार्टी-भाजपा में है। अभी तक सिंधिया परिवार भाजपा-कांग्रेस दोनों में था। लेकिन भाजपा में सिंधिया परिवार पहले जैसा तवज्जो नहीं मिल रहा है। राजस्थान में वसुंधरा राजे को मोदी-शाह की जोड़ी भाव नहीं द रही है तो मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी में वह सम्मान नहीं मिल रहा जिसकी वह अपेक्षा करते रहे।

फिलहाल, मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। चुनावी राज्य में हर नेता अपनी गोटी फिट कर रहा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया लोकसभा चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में उनकी बुआ ने अपनी सीट खाली करके पार्टी को यह संदेश दे दिया है कि ज्योतिरादित्य विधानसभा चुनाव लड़ने को तैयार है।

दरअसल, सिंधिया परिवार के हर सदस्य की यह इच्छा रही है कि उनके परिवार का कोई सदस्य राज्य का मुख्यमंत्री बने। राजमाता विजया राजे सिंधिया को आजीवन यह मलाल रहा कि भैया (माधवराव सिंधिया) यदि भाजपा में रहते तो वह मुख्यमंत्री बनते। लेकिन मां-बेटे की आपसी लड़ाई के कारण दोनों दो पार्टियों में रहे। यह पहली बार है कि सिंधिया परिवार के लोग एक ही पार्टी भाजपा में हैं। लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश की राजनीति में इस समय भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं है, जिसके कारण सिंधिया परिवार अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए सिर्फ किसी एक पर ही दांव लगाने की रणनीति पर चल रहा है।

मध्य प्रदेश की खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया की गुरुवार को घोषणा कि वह शिवपुरी से आगामी मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी, ने अटकलें तेज कर दी हैं कि क्या यह सीट उनके भतीजे और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए खाली की जा रही है।

गुरुवार को शिवपुरी में एक सभा को संबोधित करते हुए यशोधरा ने कहा, ‘मैंने पहले ही तय कर लिया था कि मैं चुनाव नहीं लड़ूंगी। मैं आप सभी को धन्यवाद देना चाहती हूं. एक तरह से ये मेरी अलविदा है। मैंने सदैव अपनी मां राजमाता राजे सिंधिया के पदचिन्हों पर चलने का प्रयास किया है। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने यह निर्णय लिया। आज मैं आप सभी से प्रार्थना करती हूं कि आप सभी इस फैसले में मेरा साथ देंगे।”

उन्होंने आगे कहा कि समय बीत चुका है और नई पीढ़ी को आगे आना चाहिए। यह कदम उस पत्र के बाद उठाया गया है जो उन्होंने अगस्त में भाजपा के शीर्ष नेताओं को इस साल के अंत में होने वाले चुनाव नहीं लड़ने के अपने फैसले के बारे में लिखा था। प्रदेश भाजपा प्रमुख वीडी शर्मा ने कहा है कि यशोधरा स्वास्थ्य कारणों से कदम पीछे खींच रही हैं।

हालांकि, भाजपा के अंदरूनी सूत्र शिवपुरी निर्वाचन क्षेत्र के लिए पार्टी की योजनाओं का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के हलकों में अटकलों ने जोर पकड़ लिया है, खासकर मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार के खिलाफ कथित “सत्ता-विरोधी लहर” से निपटने के लिए केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में लाने की पार्टी की रणनीति के कारण।

राज्य के एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि “ऐसी संभावना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी उनके (यशोधरा) निर्वाचन क्षेत्र या पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा जा सकता है। प्रदेश नेतृत्व अगली सूची का इंतजार कर रहा है। तभी मामला साफ हो जाएगा।”

ज्योतिरादित्य ने अब तक किसी विधानसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ा है, उन्होंने 2002 में अपने पिता और वरिष्ठ कांग्रेस नेता माधवराव सिंधिया की मृत्यु के कारण आवश्यक गुना लोकसभा उपचुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक शुरुआत की थी।

ज्योतिरादित्य ने 2002 से 2019 तक कांग्रेस सांसद के रूप में गुना का प्रतिनिधित्व किया। 2020 में, जब उन्होंने भाजपा में प्रवेश किया, तो वे राज्यसभा सदस्य बन गए।

शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री यशोधरा राजे जीवाजीराव सिंधिया (ग्वालियर के अंतिम शासक महाराजा) और विजयाराजे सिंधिया (एक प्रमुख भाजपा नेता) की सबसे छोटी बेटी हैं।

1998 में शिवपुरी विधानसभा सीट जीतकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। यशोधरा ने 2007 में विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और 2009 में ग्वालियर से लोकसभा चुनाव जीतीं। अगले लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर से सीट जीती। उन्होंने 2013 में राज्य की राजनीति में वापसी की और फिर से शिवपुरी से चुनाव लड़ा। भाजपा की जीत के बाद, उन्हें सीएम चौहान द्वारा फिर से मंत्री के रूप में शामिल किया गया।

फिलहाल, यशोधरा राजे राजनीति से अलविदा करने का ऐलान किया है। लेकिन उनके इस कदम को भतीजे ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति को मजबूत करने की चाल के रूप में देखा जा रहा है। क्योंकि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो रहे थे तो यशोधरा राजे ने कहा था कि “भाजपा की विचारधारा हमारे परिवार के खून में है। ऐसे कई मुद्दे थे जिन पर हम एक परिवार के रूप में अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा के कारण बंटे हुए थे और मैं बहुत खुश हूं कि अब यह खत्म हो जाएगा। यह पूरे सिंधिया परिवार का एक साथ आना है।”

प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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