संस्कृति, संगीत, नृत्य, कला और खेल की सीमाएं नहीं होतीं

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“संस्कृति, संगीत, नृत्य, खेल, कला की सीमाएं नहीं होती हैं। आंखों को वीजा की जरूरत नहीं होती। सपनों की सरहद नहीं होती। बंद आंखों से रोज सरहद पार चला जाता हूं मिलने”। मेहंदी हसन से कही गईं गुलजार की ये भावुक पंक्तियां वह बयां करती हैं जो देश का बंटवारा नहीं कर सका। देश की सीमाओं के बावजूद कोई न तो मेहंदी हसन के प्रति स्नेह को रोक सकता है, विशेषकर उनकी पंक्तियों ‘रंजिश ही सही’ को और न लताजी की जीवंत आवाज को। इसी तरह गुलाम अली की ‘हंगामा है क्यों बरपा’ या कलकत्ता में जन्मे फरीदा खानम की इन पंक्तियों को ‘आज जाने की जिद न करो’।

ये पंक्तियां ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपे एक लेख की शुरूआत में छापी गईं हैं। लेख बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय के बारे में लिखा गया है जिसमें हाईकोर्ट के जज ने कहा है कि संगीत, संस्कृति, नृत्य और कला की कोई सीमा नहीं होती हैं। हाईकोर्ट ने यह बात एक याचिका को रद्द करते हुए कही जिसके द्वारा यह मांग की गई थी कि पाकिस्तान के कलाकारों, गायकों, नर्तकों, तकनीशियनों और अन्यों को भारत में किसी भी तरह का काम नहीं करने दिया जाए। याचिकाकर्ता स्वयं एक सिने कलाकार हैं।

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में यह याद दिलाया कि कुछ समय पहले ऑल इंडिया सिने वर्क्स एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव के माध्यम से पाकिस्तानी कलाकारों के भारत में काम करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने और जो भी इस प्रतिबंध का उल्लंघन करे उसके विरूद्ध दंडात्मक कार्यवाही करने का निर्णय लिया था। इस संबंध में प्रधानमंत्री से अपील की गई थी कि वे इस प्रतिबंध को लागू करवाने के लिए आवश्यक कानूनी प्रावधान करें। यदि पाकिस्तानी कलाकार भारतीय कलाकारों के साथ काम करते हैं तो याचिकाकर्ता की देशभक्ति की भावना पर चोट पहुंचेगी।

इस संबंध में न्यायाधीश कहते हैं कि “देशभक्ति की इस प्रकार की भावना सर्वथा अनुचित है। यह स्पष्ट है कि देशभक्त होने के लिए पड़ोस के राष्ट्र से दुश्मनी की भावना रखना उचित नहीं कहा जा सकता। सच्चा देशभक्त वह होता है जो पूरी तरह निस्वार्थ भाव से अपने देश के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हो। ऐसा उसी समय संभव है जब वह हृदय से पूरा सात्विक (good) हो और अपने देश में हर ऐसी गतिविधि का स्वागत करता हो जो शांति, सामंजस्य (harmony) स्थापित करती हो।”

उन्होंने कहा कि “ऐसी गतिविधियां जो वास्तविक शांति को बढ़ाएं और देश के भीतर और देशों के बीच शांति व सद्भावना स्थापित कर सकें। यह याचिका इन मूल्यों के ठीक विपरीत है और पतोन्मुखी है। यदि यह याचिका स्वीकार की जाती है तो उससे  शांति, एकता और सांस्कृतिक मेलजोल संभव नहीं हो सकेगा।

इस समय विश्व कप क्रिकेट खेला जा रहा है, जिसमें पाकिस्तानी टीम भी भाग ले रही है। यह भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से ही संभव हो सका है और इससे शांति और मेलजोल की ताकतें मजबूत होंगी विशेषकर संविधान के अनुच्छेद 51 के अनुसार।”

न्यायाधीश ने कहा कि “अंत में यह कहा जा सकता है कि जो राहत याचिकाकर्ता चाहता है वह यह अदालत किसी भी हालत में नहीं दे सकती है न इस संबंध में कोई कानून बनाने का निर्देश दे सकती है। और न ही कोई शासकीय कदम उठाए जाने का आदेश दे सकती है। इसलिए अदालत की राय है कि याचिका में कोई दम नहीं है और इसलिए यह याचिका खारिज की जाती है।”

लेख के अंत में संगीत की ताकत बताते हुए बड़े गुलाम अली खान द्वारा कही गई एक जोरदार बात उद्धत की गई है। बड़े गुलाम अली कहते हैं कि यदि इंडिया के हर घर में एक बच्चे को संगीत में पारंगत कर दिया गया होता तो भारत का विभाजन नहीं होता।

(एलएस हरदेनिया पत्रकार, लेखक और एक्टिविस्ट हैं।)

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