सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने पार्टियों से चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले चंदे का ब्योरा मांगा

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2 नवंबर 23 को दिए गए एक निर्देश पर कार्रवाई करते हुए चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को 30 सितंबर, 2023 तक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से उनके द्वारा प्राप्त योगदान का पूरा विवरण “डबल सीलबंद लिफाफे” में प्रस्तुत करने के लिए कहा है, जिसमें प्रत्येक बॉन्ड के सामने दाताओं का नाम, ऐसे प्रत्येक बॉन्ड की राशि और बैंक क्रेडिट विवरण शामिल हैं।

चुनाव आयोग ने 3 नवंबर को सभी पार्टी अध्यक्षों, महासचिवों और कोषाध्यक्षों को भेजे एक पत्र में 15 नवंबर, 2023 को शाम 5 बजे तक एक डबल-सीलबंद लिफाफे में उपरोक्त विवरण मांगा, जिस पर स्पष्ट रूप से ‘गोपनीय-चुनावी बॉन्ड’ लिखा हुआ और जानकारी प्रस्तुत करने वाली पार्टी के नाम का उल्लेख हो। इसमें कहा गया है कि विवरण वाले पहले सीलबंद लिफाफे को दूसरे विधिवत सीलबंद लिफाफे में पैक किया जाना चाहिए।

चुनाव आयोग ने निर्देश दिया है कि ऐसी सभी पार्टियां, जिन्होंने चुनावी बॉन्ड योजना की शुरुआत के बाद से कभी भी चुनावी बॉन्ड के माध्यम से कोई दान प्राप्त किया है, उन्हें 30 सितम्बर 2023 तक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त ऐसे सभी दान का विवरण प्रस्तुत करना होगा। प्रत्येक बॉन्ड के लिए दाताओं का विस्तृत विवरण, ऐसे प्रत्येक बॉन्ड की राशि और प्रत्येक बॉन्ड के खिलाफ प्राप्त पूर्ण विवरण, बैंक खाते का विवरण जिसमें खाता जमा किया गया है और ऐसे प्रत्येक क्रेडिट की तारीख बताने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में 2 नवंबर को पारित एक आदेश में चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि वह राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन पर “अद्यतित” डेटा सीलबंद लिफाफे में पेश करे। इसमें कहा गया था कि यह अभ्यास दो सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए और डेटा सीलबंद कवर में शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को सौंप दिया जाना चाहिए।

चूंकि राजनीतिक दलों द्वारा प्रस्तुत वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में उन्हें केवल चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त योगदान की दानदाताओं या प्रत्येक दानकर्ता द्वारा योगदान की गई राशि का कोई उल्लेख किए बिना, कुल राशि की घोषणा करने की आवश्यकता होती है, चुनाव आयोग को पार्टियों से इन अतिरिक्त विवरणों को नए सिरे से मांगने की आवश्यकता थी।

वर्ष 2018 चुनावी बॉन्ड योजना की संवैधानिकता पर तीन दिनों की सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग को इस साल 30 सितंबर तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड की मात्रा पर डेटा पेश करने का निर्देश देते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त दान का डेटा 2 सप्ताह के भीतर सीलबंद कवर में जमा करने का आदेश दिया था ।

दरअसल चुनावी बॉन्ड योजना-2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ , जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने कहा था कि सरकार की इस दलील को स्वीकार करना थोड़ा मुश्किल है कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों की फंडिंग का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है।

संविधान पीठ ने सुझाव दिया था कि वर्तमान योजना में “गंभीर कमियों” का ध्यान रखते हुए एक बेहतर पोल बॉन्ड योजना तैयार की जा सकती है। संविधान पीठ ने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2023 तक के बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त योगदान का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

इस योजना के तहत, केवल वे राजनीतिक दल जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, और जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो बॉन्ड प्राप्त करने के पात्र होंगे।

इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय ज़रिया है। यह एक वचन पत्र की तरह है जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से ख़रीद सकता है और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीक़े से दान कर सकता है।

भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी 2018 को क़ानूनन लागू कर दिया था। इस योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक राजनीतिक दलों को धन देने के लिए बॉन्ड जारी कर सकता है।

इन्हें ऐसा कोई भी दाता ख़रीद सकता है, जिसके पास एक ऐसा बैंक खाता है।जिसकी केवाईसी की जानकारियां उपलब्ध हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड में भुगतानकर्ता का नाम नहीं होता है।

योजना के तहत भारतीय स्टेट बैंक की निर्दिष्ट शाखाओं से 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये में से किसी भी मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे जा सकते हैं।

चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है, जिसके दौरान इसका इस्तेमाल सिर्फ़ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है।

भारत सरकार ने इस योजना की शुरुआत करते हुए कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड देश में राजनीतिक फ़ंडिंग की व्यवस्था को साफ़ कर देगा। लेकिन पिछले कुछ सालों में ये सवाल बार-बार उठा कि इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखी गई है, इसलिए इससे काले धन की आमद को बढ़ावा मिल सकता है।

एक आलोचना यह भी है कि यह योजना बड़े कॉर्पोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाई गई थी।

केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिये चंदा दिया जा सकता है, जिन्होंने लोकसभा या विधान सभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल किया हो।

योजना के तहत चुनावी बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिनों की अवधि के लिए ख़रीद के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं।इन्हें लोकसभा चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि के दौरान भी जारी किया जा सकता है।

(जे.पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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