उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर अपनी प्राथमिकता राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति व्यक्त करते हुए कहा है कि अदालत को यह सुनिश्चित करना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकार संतुलित हों। हम समझते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश में कई संकट हैं।इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में 4 जी मोबाइल सेवा की बहाली की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सूबे में अभी के लिए 4 जी इंटरनेट सुविधाएं दिए जाने से इनकार कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई मांगों पर गौर करने के लिए केंद्र से एक उच्चस्तरीय समिति का गठन करने को कहा। समिति का नेतृत्व गृह मंत्रालय के सचिव करेंगे। इस तरह जम्मू-कश्मीर में 4G इंटरनेट बहाल करने का मसला उच्चतम न्यायालय ने सरकार के पाले में डाल दिया है और कहा है कि यह उच्च स्तरीय कमेटी जिलावार फैसला ले।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने उच्चतम न्यायालय में केंद्र शासित प्रदेश में 4जी इंटरनेट सेवा बहाली का यह कहते हुए विरोध किया था कि आतंकवादी और सीमा पार से उनके हैंडलर्स लोगों को फेक न्यूज के जरिए भड़काते हैं। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कोर्ट से कहा था कि आतंकी गतिविधियों और भड़काऊ सामग्रियों के जरिए लोगों को भड़काने के कई मामले थे। खास तौर पर फेक वीडियो और फोटोज जो सुरक्षा और कानून व्यवस्था के को नुकसान पहुंचाने वाले हैं।
नवगठित केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करके कहा था, ‘प्रदेश में मौजूद आतंकी मॉड्यूल और सीमा पार से उनके हैंडलर्स फेक न्यूज और टारगेटेड मेसेज के जरिए लोगों को भड़काते हैं और आतंक को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट का गलत इस्तेमाल करते हैं।’ फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स ने कोविड-19 महामारी को देखते हुए प्रदेश में 4 जी इंटरनेट सेवा बहाली की मांग को लेकर उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इसी के जवाब में प्रशासन ने यह दलील दी थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर की जनता को 4जी इंटरनेट सेवाओं से वंचित रखना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21 और 21ए का उल्लंघन है’।
जस्टिस एनवी रमना, आर सुभाष रेड्डी और बीआर गवई की पीठ ने फैसले में कहा है कि महामारी के दौरान कम स्पीड वाले इंटरनेट से केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को हो रही समस्या हमारे संज्ञान में लायी गयी। जवाब में केंद्र ने राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कुछ गंभीर मुद्दे हमारे सामने रखे। दोनों बातों में संतुलन बनाना जरूरी है। हमने जनवरी में दिए फैसले में केंद्र शासित प्रदेश में इंटरनेट बहाली से जुड़ा मसला एक उच्च स्तरीय कमेटी को सौंपा था। हमारा अभी भी मानना है कि पूरे प्रदेश में एक आदेश के जरिए हाई स्पीड इंटरनेट नहीं देना उचित नहीं है। हर इलाके की सुरक्षा स्थिति की समीक्षा कर अलग-अलग फैसला लिया जाना चाहिए।
पीठ ने केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष कमेटी बनाने का आदेश दिया।इस कमेटी में केंद्रीय टेलीकॉम सचिव के साथ जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव भी होंगे।तीन उच्च अधिकारियों की यह कमेटी याचिकाकर्ताओं की तरफ से रखे गए बिंदुओं पर विचार करेगी। कमेटी हर इलाके में सुरक्षा स्थिति का आकलन करने के बाद केंद्र शासित क्षेत्र प्रशासन को सिफारिश देगी। उसी के आधार पर इलाके में प्रायोगिक तौर पर 3G या 4G इंटरनेट उपलब्ध कराया जाएगा।
फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स नाम की संस्था की तरफ से दाखिल याचिका में कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट की सही सुविधा नहीं होने के कारण डॉक्टर कोविड 19 के इलाज को लेकर दुनिया भर में हो रही गतिविधियों की जानकारी हासिल नहीं कर पा रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान जिन मरीजों का घर से निकलना मुश्किल है, वह 4G इंटरनेट न होने के चलते डॉक्टरों से मशविरा भी नहीं ले पा रहे हैं। वहीं कुछ निजी स्कूलों की तरफ से कहा गया था कि देश भर में बच्चे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन धीमी स्पीड के 2G इंटरनेट के चलते जम्मू-कश्मीर के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है। इसलिए कोर्ट मामले में दखल दे।
जम्मू-कश्मीर प्रशासन की तरफ से इन बातों का जवाब देते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि वहां स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था सुचारू रूप से काम कर रही है। केंद्र सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा था कि वहां अब भी आंतरिक सुरक्षा को गंभीर खतरा बना हुआ है। मोबाइल इंटरनेट को 2G तक सीमित रखने से भड़काऊ सामग्री के प्रसार पर नियंत्रण है। स्वास्थ्य और शिक्षा के नाम पर सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता।
एटॉर्नी जनरल ने हंदवाड़ा की घटना का हवाला देते हुए कहा था कि कल हंदवाड़ा में एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है, जिसमें 5 जवान मारे गए। क्या हम आतंकवादियों और उनके समर्थकों को इस बात की सुविधा दें कि वह सेना के मूवमेंट की वीडियो बना कर सीमा पार भेजें? इंटरनेट की सीमित स्पीड सिर्फ वहां के लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी नहीं है, बल्कि यह सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ा मसला है।
एटॉर्नी जनरल ने जोर देकर कहा था कि यह सरकार का एक नीतिगत निर्णय था, जिसमें न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है। सॉलिसीटर जनरल ने कहा था कि जबकि लैंडलाइन का पता लगाया जा सकता है, तो “राष्ट्रविरोधी” गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने के बाद मोबाइल फोन को आसानी से फेंक दिया जा सकता है। इन दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने 4 मई को फैसला सुरक्षित रखा था।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ क़ानूनी मामलों के जानकार भी हैं।)
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