अमेरिका-इज़राइल रिश्ता:ऐतिहासिक, भू-राजनीतिक और धार्मिक बुनियादों का एक गहरा गठबंधन

मध्य-पूर्व में जब भी कोई युद्ध या संघर्ष होता है, अमेरिका का रुख लगभग तय होता है। वह उचित-अनुचित का खयाल किए बिना इज़राइल के पक्ष में खड़ा होता है। चाहे वह गाज़ा पर बमबारी हो, वेस्ट बैंक में बस्तियों का विस्तार हो, या ईरान के साथ बढ़ता तनाव हो, अमेरिका की नीतियों में इज़राइल का बचाव करना एक तरह की परंपरा बन चुका है। यह एक साधारण कूटनीतिक मित्रता नहीं, बल्कि गहरी ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी है, जो दशकों में दोनों देशों के अपने अपने साझे फायदे के रूप में आकार ले चुकी है।

इस रिश्ते को समझने के लिए हमें इसके विभिन्न परतों को गहराई से विश्लेषण की जरूरत है:

भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य: अमेरिका की पश्चिमी चौकी

उदाहरण: शीत युद्ध काल में इज़राइल की भूमिका

1950–1990 के बीच, जब शीत युद्ध अपने चरम पर था, मध्य-पूर्व सोवियत और अमेरिकी प्रभाव के लिए युद्धभूमि बन गया था। मिस्र, सीरिया और इराक जैसे कई अरब देश सोवियत संघ के करीब थे। ऐसे में इज़राइल अमेरिका के लिए एकमात्र ऐसा देश था, जो न केवल लोकतांत्रिक था, बल्कि पूरी तरह अमेरिका के खेमे में था।

आज की भूमिका

आज भी इज़राइल अमेरिका के लिए ईरान के प्रभाव को संतुलित करने वाला प्रमुख सहयोगी है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम, हिज़्बुल्ला जैसे समूहों को उसका समर्थन, और अमेरिका विरोधी रुख — इन सबका जवाब अमेरिका इज़राइल को सैन्य रूप से मज़बूत कर के देता है।

उदाहरण: अमेरिका ने इज़राइल को F-35 स्टील्थ फाइटर जेट्स की आपूर्ति की — जो अब तक की सबसे उन्नत तकनीक है, जबकि अधिकांश देशों को यह सुविधा नहीं मिलती।

आर्थिक संबंध: तकनीक और हथियार दोनों में गहरी साझेदारी

अमेरिकी सैन्य सहायता का अर्थशास्त्र

हर साल अमेरिका इज़राइल को लगभग 3.8 बिलियन डॉलर की सैन्य सहायता देता है। आलोचक इसे “नि:शर्त समर्थन” कहते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि उस सहायता का अधिकांश हिस्सा अमेरिकी हथियार कंपनियों से खरीदारी में ही खर्च होता है, जिससे अमेरिका में रोज़गार और अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।

उदाहरण: राफेल, एल्बिट और इज़रायली एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियों के साथ अमेरिका की कंपनियां संयुक्त रक्षा प्रौद्योगिकी पर काम करती हैं। डेविड स्लिंग, आयरन डोम जैसे रक्षा सिस्टम अमेरिका-इज़राइल की संयुक्त परियोजनाएं हैं।

टेक्नोलॉजी और इनोवेशन

इज़राइल को “स्टार्ट-अप नेशन” कहा जाता है। इज़राइल प्रति व्यक्ति सबसे अधिक स्टार्टअप देने वाला देश है। अमेरिका की गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल जैसी कंपनियों के इज़राइल में शोध केंद्र हैं।

उदाहरण: Intel का इज़राइली R&D सेंटर उसकी चिप तकनीक के लिए विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण है। अमेरिका के सिलिकॉन वैली और इज़राइल के हाईफा-तेल अवीव क्लस्टर के बीच सीधा संपर्क है।

धार्मिक और सांस्कृतिक आयाम: ईसाई धर्म और यहूदी परंपराओं का जुड़ाव

ईसाई इवेंजेलिकल प्रभाव

अमेरिका के एक बड़े ईसाई समुदाय, जिसे ईवेंजेलिकल क्रिश्चियन कहा जाता है, उसका मानना है कि यहूदी लोगों का इज़राइल लौटना बाइबल की भविष्यवाणियों की पूर्ति है। खासकर दक्षिणी अमेरिका में यह धार्मिक विचारधारा बड़ी संख्या में वोटरों को प्रभावित करती है।

उदाहरण: डोनाल्ड ट्रंप ने यरुशलम को इज़राइल की राजधानी मानने का निर्णय धार्मिक वोटरों को ध्यान में रखते हुए लिया, जबकि यह कदम अंतरराष्ट्रीय नियमों के विरुद्ध था।

“ज्यूडियो-क्रिश्चियन” सभ्यता का विचार

अमेरिकी पहचान में एक अवधारणा है — “Judeo-Christian Values” , यानी यहूदी और ईसाई नैतिक परंपराओं की साझी विरासत। इस सोच के अनुसार, इज़राइल को अमेरिका एक सांस्कृतिक रिश्तेदार की तरह देखता है, जो मध्य-पूर्व में अकेला लोकतांत्रिक और उदारवादी देश है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: होलोकॉस्ट, अपराधबोध और नैतिक उत्तरदायित्व

द्वितीय विश्व युद्ध और यहूदियों का संहार

1940 के दशक में नाज़ी जर्मनी द्वारा यहूदियों का जनसंहार (होलोकॉस्ट) हुआ। इस त्रासदी के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों में यह भावना प्रबल थी कि यहूदियों को एक सुरक्षित राष्ट्र मिलना चाहिए।

उदाहरण: 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद, अमेरिका उसे मान्यता देने वाला पहला प्रमुख राष्ट्र बना। राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने कहा था — “I had faith in Israel before it was established, I have faith in it now.”

प्रभावशाली यहूदी लॉबी

अमेरिका में यहूदी समुदाय संख्या में कम होते हुए भी अत्यंत संगठित, शिक्षित और राजनीतिक रूप से सक्रिय है। AIPAC जैसे संगठन कांग्रेस और सीनेट में इज़राइल समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाने में प्रभावी हैं।

उदाहरण: लगभग हर अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार को AIPAC के मंच से अपनी प्रतिबद्धता जतानी पड़ती है।

क्या इस रिश्ते में बदलाव संभव है?

हाल के वर्षों में अमेरिकी युवाओं और प्रगतिशील राजनेताओं के बीच इज़राइल की नीतियों, विशेषकर फ़िलिस्तीनी मुद्दे पर, असहमति बढ़ रही है। बर्नी सैंडर्स जैसे नेता शर्तों के साथ समर्थन की बात करते हैं। लेकिन, यह विरोध मुख्यधारा में पूरी तरह स्थापित नहीं हो सका है।

उदाहरण: जब गाज़ा पर इज़राइली हमले में सैकड़ों नागरिक मारे गए, तब अमेरिका में कॉलेज परिसरों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए- परंतु बाइडन सरकार की नीति नहीं बदली।

केवल राजनीति नहीं, यह एक विचारधारा है

अमेरिका और इज़राइल का रिश्ता केवल राजनयिक या सैन्य नहीं है। यह एक साझा ऐतिहासिक यात्रा, धार्मिक विश्वासों, सांस्कृतिक पहचान, और रणनीतिक ज़रूरतों की जटिल बुनावट है।

यह संबंध कई बार आलोचना के घेरे में आता है, खासकर जब इसे न्याय और मानवाधिकारों के चश्मे से देखा जाता है। लेकिन, यह समझना होगा कि यह समर्थन किसी एक नेता या सरकार का निर्णय नहीं, बल्कि एक गहराई से जड़ जमा चुका ऐतिहासिक गठबंधन है।

भविष्य में अगर यह रिश्ता बदलेगा, तो केवल नीतिगत बदलाव से नहीं, बल्कि अमेरिकी सामाजिक और राजनीतिक चेतना में बड़े बदलावों से होगा। फिलहाल के लिए, इज़राइल अमेरिका के लिए केवल एक सहयोगी नहीं, बल्कि उसकी रणनीतिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतिबिंब है।

(उपेंद्र चौधरी वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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