बांबे हाईकोर्ट और मरकज में भाग लेने वाले जमात के लोग।

कोरोना मामले में जमातियों को बदनाम किया गया; सरकार, पुलिस और एजेंसियां करें पश्चाताप: बॉम्बे हाईकोर्ट

तबलीगी जमात वाले आपको याद हैं? आपको याद नहीं हैं तो हम बताते हैं कि इन्हीं पर यानी तबलीगी जमात की वजह से भारत के समस्त मुसलमानों पर कोरोना फैलाने का आरोप प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लगाया था। बॉलीवुड ऐक्टर सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी को रहस्यमय मौत बनाने वाले मीडिया की बहस से ठीक पहले टीवी डिबेट का हिस्सा कोरोाना फैलाने वाला तबलीगी जमात ही हुआ करती थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार 21 अगस्त को एक ऐतिहासिक आदेश अपनी सख्त टिप्पणियों के साथ जारी किया।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि कोरोना मामले में तबलीगी जमात में विदेश से आये जमातियों को बलि का बकरा बनाया गया। और मीडिया ने सोची समझी साज़िश के तहत तबलीगी जमात वालों को बदनाम किया। इसके साथ ही कोर्ट ने उनके खिलाफ दर्ज सारे एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया। बता दें कि दिल्ली में तबलीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज में कुछ विदेशी मुस्लिम आये थे। कोविड-19 फैलाने का आरोप इन्हीं पर लगा और धीरे-धीरे पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का यह हथियार बन गया था।
हाईकोर्ट का यह फैसला शुक्रवार को आया था बावजूद इसके कथित मुख्यधारा के  मीडिया में इस खबर को दबा दिया गया। किसी टीवी बहस में ज़िक्र तक नहीं हुआ। भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मोदी भक्त के तौर पर जाने जाने वाले अर्णब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, अंजना ओम कश्यप, रोहित सरदाना जैसे पत्रकारों ने इस बड़ी खबर पर चुप्पी साध ली।
हाई कोर्ट के जस्टिस टीवी नलवडे और जस्टिस एमजी सेवलीकर की बेंच ने कहा – भारत में इस संक्रमित बीमारी के जो ताजा आंकड़े और हालात हैं वे बता रहे हैं कि याचिकाकर्ताओं (विदेश से आए तबलीगी जमात)  पर जो कार्रवाई की गई, वह नहीं ली जानी चाहिए थी। अभी भी समय है संबंधित लोग (सरकार, पुलिस और अन्य जांच एजेंसियां) अपनी इस गलती पर पश्चाताप करें और इस संबंध में कुछ पॉजिटिव कदम उठाकर उस नुकसान की भरपाई करें।


इस बात को गौर से पढ़िए। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि वीजा नियमों में यह कहीं नहीं लिखा है कि विदेश से आने वाला किसी धार्मिक स्थल पर नहीं जा सकता और न ही ऐसी किसी सामान्य धार्मिक गतिविधि में भाग ले सकता है। विदेश से आये जमाती जिन जिन शहरों में गये, उन्होंने अपनी आमद की जानकारी उस शहर की पुलिस को दी। उन्होंने कुछ भी छिपाने की कोशिश नहीं की। इस बात के तथ्य और सबूत मौजूद हैं कि हर शहर की पुलिस को पूरी जानकारी और सूचना थी कि विदेश से जमाती किस लिए आये हैं। उन्हें यह भी सूचना और जानकारी है कि इस मरकज में क्या होता है। वहां सब कुछ सार्वजनिक होता है और कोई भी जाकर वहां देख सकता है।

कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के मरकज में आये जमातियों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (यानी अखबार और टीवी न्यूज चैनल) ने बहुत बड़ा प्रचार अभियान चलाया। इससे यह संदेश गया कि भारत में कोविड19 फैलाने में विदेश से आये जमातियों का हाथ है।

पाठकों को याद होगा कि जब नफरत फैलाने वाले टीवी चैनलों के दफ्तर में कई पत्रकार और वहां के कुछ कर्मचारी कोरोना की चपेट में आये, उसके बावजूद आज तक, जी न्यूज, रिपब्लिक, टाइम्स नाऊ, इंडिया टुडे जैसे चैनलों ने माफी नहीं मांगी। हालांकि उन्हें उस वक्त तक यह अच्छी तरह मालूम हो चुका था कि कम से कम जमाती उनके चैनलों में कोरोना फैलाने नहीं आये। खुद को देश का अग्रणी अखबार बताने वालों के संपादकों ने नफरत की इस आंधी को बढ़ावा दिया। दूर दराज के कस्बों से जमातियों की गिरफ्तारी बड़ी खबर बनाकर लगाई गई। कई अखबारों के दफ्तर भी कोरोना की चपेट में आये लेकिन किसी संपादक ने अभी तक जमातियों और मुसलमानों से नफरत की इन झूठी खबरों के लिए माफी नहीं मांगी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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