सुशांत की लाश पर बिहार में बिछ रही है वोटों की बिसात

बिहार का चुनाव भूख, गरीबी, शिक्षा, इलाज, बाढ़, कोरोना या फिर लॉकडाउन में बिहारी मजदूरों के रिवर्स पलायन पर नहीं लड़ा जाएगा। यह चुनाव सिर्फ़ सुशांत सिंह राजपूत की लाश पर राजनीति करके लड़ा जाएगा। बिहार की चुनावी रणनीति के तहत ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आदेश पर 25 जुलाई को पटना के राजीवनगर थाने में केके सिंह द्वारा रिया चक्रवर्ती समेत छह लोगों के खिलाफ़ नामजद एफआईआर दर्ज करवाई गई। आत्महत्या के लिए उकसाने, आपराधिक षड़यंत्र रचने, चोरी, धोखाधड़ी, और धमकी देने जैसी धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया और बिहार सरकार की सिफारिश पर केंद्र की मोदी सरकार ने सुशांत केस की जांच सीबीआई को सौंप दी।

14 जून की रात में बांद्रा स्थित अपने फ्लैट पर सुशांत सिंह ने आत्महत्या कर ली थी। मामले को बिहार बनाम बंगाल करके बिहारी अस्मिताबोध पैदा किया गया। बिहार की लोकस्मृतियों में बंगाली औरतों के जादूगरनी होने की मनगढ़ंत बात रही है।

दरअसल कोलकाता लंबे समय तक भारत की राजधानी रही है। तब सारे औद्योगिक कल कारखाने और दूसरे काम धंधे कोलकाता में ही ज़्यादा होते थे। बिहार के लोग तब रोजी-रोटी के लिए कोलकाता शहर जाते थे और वहां के रंगढंग में रम जाते थे। ज़्यादा दिनों तक अपने गांव देश वापस न लौटने के कारण बिहार में एक सामूहिक अंधमान्यता विकसित हो गई थी कि कोलकाता की औरतों को जादू आता है और वो बिहार के मर्दों को अपने मोहपाश में बांधकर उन्हें अपने वश में कर लेती हैं। फिर वो जो चाहती हैं आदमी वही करता है। https://twitter.com/SatisValaganth/status/1288836156570759170?s=19

बिहार की अस्मिताबोध को पैदा करने और रिया को खलनायिका साबित करने के लिए इसी लोकस्मृति का सहारा लेकर रिया चक्रवर्ती (बंगाली महिला) द्वारा जादू टोना करके सुशांत की हत्या करने का सोशल मीडिया पर मोदी समर्थक और भाजपा नेताओं के एकाउंट से महीनों एक पूरा अभियान ही चलाया गया। कई न्यूज चैनलों पर तो रिया द्वारा सुशांत के घर पर तांत्रिक बुलाकार जादू-टोना करवाने पर कई-कई एपीसोड चलाए गए। यानि रिया को पहले जादू-टोना जानने वाली ‘विच’ बनाया गया और फिर शुरू की गई ‘विच हंटिंग’। ये सरकारी, प्रशासनिक और मीडिया तीनों स्तर पर एक साथ किया गया। https://twitter.com/writer_saurabh/status/1289832461027819520?s=19

रिया से सरकार की कोई दुश्मनी नहीं है। पर बिहार चुनाव सिर पर है कोई तो बलि का बकरा चाहिए न? तो रिया को फांसने के लिए सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक साथ काम पर लगाया गया। रिया चक्रवर्ती को किसी न किसी केस में फंसाना ही थी। सुशांत हत्या केस और मनीलांड्रिंग में न सही तो ड्रग केस में ही फंसाकर रिया को जेल में डाल दिया गया है। अब मीडिया रिया की गिरफ्तारी को बिहारी अस्मिता की जीत और सुशांत सिंह राजपूत को मिला न्याय बताकर पेश कर रही है। बाकी का काम चुनावी मंचों से भाषणवीर कर ही लेंगे और इस तरह इस पूरे मसले को वोट में बदलने की योजना को अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। 

https://twitter.com/IndrajitChakra/status/1303560009540710401?s=19
https://twitter.com/IndrajitChakra/status/1302602717320241153?s=19

राकेश अस्थाना, एनसीबी डायरेक्टर वाया सीबीआई
सुशांत केस में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से छूटने के बाद रिया चक्रवर्ती को एनसीबी के फंदे में फांसकर जेल में डाल दिया गया। रिया के जेल जाने से सुशांत समर्थक बिहार के लोगों में खुशी की लहर है। नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) के डायरेक्टर जनरल राकेश अस्थाना मोदी-शाह के संकटमोचक हैं। एक नज़र राकेश अस्थाना की पृष्ठभूमि पर डाल लेते हैं,

साल 2018 में तत्कालीन सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा ने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ हैदराबाद के बिज़नेसमैन सतीश बाबू की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की थी। सतीश बाबू ने आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने ख़िलाफ़ जांच रोकने के लिए अस्थाना को तीन करोड़ रुपयों की रिश्वत दी। सतीश बाबू ने रिश्वत दुबई में रहने वाले मनोज प्रसाद की मदद से दी। एफ़आईआर के मुताबिक, मनोज प्रसाद का दावा था कि वो सीबीआई में लोगों को जानता है और जांच को रुकवा सकता है।

बता दें कि सतीश बाबू के ख़िलाफ़ जो जांच चल रही थी उसकी अगुआई राकेश अस्थाना कर रहे थे। राकेश अस्थाना उस समय अंतरिम निदेशक थे और सरकार उन्हें स्पेशल डायरेक्टर नियुक्त करना चाहती थी, जिसका सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने विरोध किया तो उनको रातों रात जबरदस्ती छुट्टी पर भेज दिया गया।

बता दें कि आलोक वर्मा ने केंद्र सरकार के उस फ़ैसले को कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें उनके जूनियर आरके अस्थाना के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के बाद सरकार ने जबरन छुट्टी पर भेज दिया था। राकेश अस्थाना ने वर्मा पर आरोप लगाया था कि वर्मा ने उन लोगों से घूस ली है, जिनके ख़िलाफ़ सीबीआई कई गंभीर आरोपों की जांच कर रही थी।

गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना, पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के क़रीबी रहे हैं। ख़ास बात ये कि गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री और अमित शाह के गृह मंत्री रहते अस्थाना उस दौर में गुजरात के प्रमुख पदों पर रहे हैं और फिर में मोदी-शाह के केंद्र सरकार की सत्ता में काबिज होने पर अस्थाना को सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर के रूप में नियुक्ति मिल गई।

याद दिला दें कि राकेश अस्थाना ने अपने अब तक के करियर में उन अहम मामलों की जांच की है जो कि वर्तमान राजनीतिक समीकरणों के लिहाज से बेहद ख़ास रहे हैं। इन मामलों में गोधरा कांड की जांच, चारा घोटाला, अहमदाबाद बम धमाका और आसाराम बापू के ख़िलाफ़ जांच शामिल है। पुलिस के कई विवादित मामलों को सुलझाने में उनका नाम शामिल रहा है। इनमें से एक मामला गुजरात दंगों का भी है। उनकी जांच के बाद 2002 के दंगों में मोदी को क्लीन चिट मिली थी, जो उस दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव का लेख।)

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