सियासत या मजबूरी! कांग्रेसी भूपेंद्र हुड्डा के साथ दिखे भाजपा नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह

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मेवात के चर्चित नेता रहे चौधरी खुर्शीद अहमद की पहली बरसी पर उनके विधायक बेटे आफताब अहमद को बुधवार 17 फरवरी को सरदारी तो मिल गई, लेकिन इसी के साथ बीजेपी नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह भी अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन तलाशते मिले। मेवात की रस्म के मुताबिक पिता की मौत के एक साल बाद बेटे को पगड़ी बांधकर न सिर्फ परिवार की बल्कि इलाके की सरदारी सौंपी जाती है। इस मौके पर कांग्रेस नेता आफताब अहमद ने जबरदस्त शक्ति प्रदर्शन किया। आफताब हरियाणा विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के उपनेता भी हैं।

स्व. खुर्शीद अहमद पांच बार विधायक रहे और एक बार सांसद रहे। इसके अलावा वह सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस भी करते थे। पिछले साल उनका निधन हुआ था। उन्हें खिराज-ए-अकीदत पेश करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री #भूपेंद्र_सिंह_हुड्डा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा समेत हरियाणा #कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता आपसी गुटबाजी भुलाकर नूंह (#मेवात) पहुंचे, लेकिन सबकी नजरों ने जो देखा, उससे वो हैरान हो गए। #भाजपा नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह जो आरएसएस की दीक्षा ले चुके हैं और अपने बेटे को सांसद बनवा चुके हैं, मंच पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बगल बैठे नजर आए। इस दौरान वो हुड्डा के कान में फुसफुसाते और ठहाका लेते भी दिखाई दिए।

हुड्डा और बीरेंद्र सिंह एक समय कांग्रेस में #राजीव_गांधी के खासमखास रहे और आपस में जबरदस्त मतभेद भी रखते रहे। हुड्डा और उससे पहले #भजनलाल ने बीरेंद्र को कांग्रेस में ठीक से पैर नहीं जमाने दिया। तंग आकर सही समय पर बीरेंद्र ने भाजपा की राह पकड़ ली। उन्हें केंद्र में मंत्री पद भी मिला, लेकिन जल्द ही भाजपा आलाकमान को पता चल गया कि सर छोटूराम का नाती होने के बावजूद चौधरी बीरेंद्र की जाटों में बहुत ज्यादा स्वीकार्यता नहीं है, इसलिए भाजपा आलाकमान ने उन्हें हाशिए पर लगा दिया, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उनके आईएएस बेटे बृजेंद्र सिंह को भाजपा ने टिकट दिया। बृजेंद्र किसी तरह #हिसार से अपनी सीट निकाल ले गए, लेकिन मंत्री नहीं बन सके।

इस घटनाक्रम के बाद बीरेंद्र सिंह भाजपा में भी नेपथ्य में चले गए, हालांकि उन्होंने किसी प्रदेश का राज्यपाल बनने के लिए बहुत हाथ-पैर मारे, लेकिन गृह मंत्री अमित शाह ने घास नहीं डाली। इन दिनों घोर निराशा में चल रहे बीरेंद्र सिंह ने दिसंबर 2020 में #किसान_आंदोलन का समर्थन कर दिया था। उनके इस पैंतरे से भाजपा में मामूली हलचल हुई, लेकिन किसी ने तवज्जो नहीं दी। उन्होंने किसानों के साथ #रोहतक में धरना देने तक की चेतावनी दी, लेकिन भाजपा की तरफ से उन्हें मनाने की कोई कोशिश नहीं हुई। भाजपा में उपेक्षित महसूस कर रहे बीरेंद्रसिंह ने इधर हरियाणा कांग्रेस नेताओं से संपर्क साधना शुरू कर दिया था। चूंकि हरियाणा कांग्रेस में आलाकमान फिलहाल हुड्डा को साथ लेकर चल रहा है, इसलिए बीरेंद्र ने हुड्डा से हाथ मिलाने में भी परहेज नहीं किया।

सूत्रों ने बताया कि चौधरी खुर्शीद अहमद के निधन के बाद चौधरी बीरेंद्र सिंह ने आफताब अहमद को फोन कर शोक प्रकट किया। अभी जब आफताब ने अपने पिता की बरसी पर नूंह में 17 फरवरी को बड़ा कार्यक्रम करने की घोषणा की तो चौधरी बीरेंद्र सिंह खुद को मेवात आने और अपने पुराने कांग्रेसी साथियों के साथ बैठने से परहेज नहीं किया। हालांकि यह कांग्रेस का मंच नहीं था, लेकिन इसमें चौधरी बीरेंद्र को छोड़कर और कोई बाहरी नेता भी नहीं था।

चारों तरफ कांग्रेस नेताओं का जमघट और बीच में चौधरी बीरेंद्र सिंह की मौजूदगी। #हरियाणा_की_सियासत अपना रंग बदलने के लिए मशहूर रही है। चौधरी #बंसीलाल से लेकर भजनलाल, ताऊ #देवीलाल, ओमप्रकाश #चौटाला से लेकर #दुष्यंत_चौटाला तक इस अनगिनत मिसालें हैं। ऐसे में भाजपा से नाराज चल रहे चौधरी बीरेंद्र सिंह का रंग बदलना कोई हैरान करने वाला नहीं है।

(यूसुफ किरमानी वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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