पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा- यूएपीए पर फैसला दुरुस्त, सरकार फैला रही है दहशत

दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस एजे भंभानी की खंडपीठ द्वारा यूएपीए कानून के तहत दिल्ली दंगा मामले में आसिफ इकबाल तन्हा, देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को जमानत देने के साथ यूएपीए कानून की सैद्धांतिक व्याख्या करने और देश के प्रति अपराध और सामान्य अपराध में फर्क करने के फैसले पर उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता निचली अदालत का कहना है कि केंद्र सरकार युवाओं में दहशत फैलाने का काम कर रही है। मामले में दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला अभूतपूर्व है। जस्टिस गुप्ता ने दिल्ली हिंसा के मामलों को लेकर कहा कि पुलिस का एक्शन निचले लेवल पर नहीं बल्कि ऊपरी लेवल से तय किया जाता है, हर किसी को इसके बारे में जानकारी है। इस बीच दिल्ली पुलिस ने निचली अदालत में एक तकनीकी पेंच फंसाकर नताशा नरवाल, देवांगना और आसिफ की जमानत नहीं होने दी।

पूर्व जज जस्टिस दीपक गुप्ता ने इस मसले पर इंडिया टुडे से बात की और दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा इन तीनों छात्रों को जमानत दिए जाने की तारीफ की। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि इन तीनों में से आसिफ इकबाल को लेकर जो फैसला सुनाया गया है, वह सबसे अहम है।आसिफ इकबाल जजमेंट एक ऐतिहासिक घटना हो सकता है, जिसमें यूएपीए कानून को लेकर विस्तार से बात की गई है, साथ ही आतंकी गतिविधि क्या है। बताया गया है कि हर जुर्म आतंकवाद से जुड़ा हुआ नहीं है।

जस्टिस गुप्ता के मुताबिक, आपको याद रखना चाहिए कि यूएपीए के केस में कोर्ट तभी बेल दे सकती है, जब शुरुआत में व्यक्ति पर कोई केस बनता ना दिखे। जब कोर्ट ने 19 हजार पेज की चार्जशीट पढ़ी और तमाम बातों को परखा, उसी के बाद ही तय किया कि कोई केस नहीं है। हाईकोर्ट ने अपने निर्णय से विरोध करने और असहमति जताने के अधिकार को बरकरार रखा।

जस्टिस गुप्ता ने नताशा नरवाल, देवांगना और आसिफ को लेकर कहा कि इन तीनों की तरह हजारों ऐसे छात्र हैं, जो सड़कों पर प्रदर्शन करना चाहते हैं। लेकिन अगर इन पर यूएपीए लगाएं या फिर जेल में डाल दें, तो वह दबाव महसूस करते हैं। लेकिन हर किसी में इन तीनों की जैसी हिम्मत नहीं है।

गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की दो छात्राओं-नताशा नरवाल और देवांगना कालिता तथा जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दे दी थी। अदालत ने तीनों को जमानत देते हुए कहा था कि राज्य ने प्रदर्शन के अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच की रेखा को धुंधला कर दिया है तथा यदि इस तरह की मानसिकता मजबूत होती है तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा। इसने गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत ‘आतंकवादी गतिविधि’ की परिभाषा को ‘‘कुछ न कुछ अस्पष्ट’’ करार दिया और इसके ‘‘लापरवाह तरीके’’ से इस्तेमाल के खिलाफ चेतावनी देते हुए छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इंकार करने के निचली अदालत के आदेशों को निरस्त कर दिया था।

उधर, जेएनयू की छात्राओं देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है। दिल्ली पुलिस ने तीनों छात्रों की जमानत का विरोध करते हुए याचिका दायर की है। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और आसिफ इकबाल को बेल पर रिहा किया जाए। लेकिन दिल्ली पुलिस को लगा कि यदि तीन दिन इन तीनों को तकनीकी आधार पर जेल से न निकलने दिया जाए तो तब तक उच्चतम न्यायालय से दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक का आदेश पारित हो जायेगा।दिल्ली पुलिस की सोच है कि यह मामला भीमा कोरेगांव प्रकरण में गिरफ्तार एक्टिविस्टों सरीखा है जिन्हें आज तक उच्चतम न्यायालय से जमानत नहीं मिल पाई।  पुलिस निचली अदालत का एक ऐसा पेंच लेकर आ गई जिसकी कोई तोड़ नहीं निकाला जा सका। जमानत दाखिल होने पर 24 घंटे में रिहा होने का अधिकार होने के बावजूद  तीनों छात्र-छात्राओं को अब तीन दिनों तक जेल की सींखचों के पीछे ही रहना होगा।

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार तीनों आरोपियों को 50-50 हजार के पर्सनल बांड समेत इतनी ही राशि की दो स्योरिटी जमा करानी थी। उसके बाद तीनों को 24 घंटे के भीतर जेल से रिहा किया जाना था। आरोपियों ने फैसले के मुताबिक सारी औपचारिकताएं आज पूरी कर दीं। पुलिस ने कोर्ट में पटीशन दाखिल करके कहा कि तीनों को हाईकोर्ट के बताए समय पर रिहा करना मुमकिन नहीं हो पाएगा, क्योंकि तीनों के परमानेंट एड्रेसेज की वेरिफिकेशन बाकी है। पुलिस का तर्क था कि तीनों अलग-अलग सूबों में रहते हैं, लिहाजा जांच का काम काफी पेंचीदा हो रहा है।

तीनों आरोपियों को हाईकोर्ट की तय समय सीमा यानि 1 बजे तक जेल से बाहर नहीं निकाला गया तो उन्होंने कोर्ट से अपील की। कोर्ट ने दोपहर में जब पुलिस से जवाब मांगा तो नया नाटक कोर्ट में दिखा। स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर की तलाश शुरू हुई तो उनके जूनियर के पास नंबर ही नहीं मिला। किसी तरह से संपर्क हुआ तो उन्होंने कोर्ट को बताया कि पुलिस के पेंच की जानकारी नहीं है।

सुनवाई के दौरान उन्होंने पुलिस की दलीलों को सही माना। उनका कहना था कि आरोपी झारखंड, असम और हरियाणा के स्थाई निवासी हैं। वेरीफाई करने में समय तो लगना स्वाभाविक है। कोर्ट में सीपीएम नेता वृंदा करात भी मौजूद थीं। वो नताशा नरवाल की स्योरिटी देने पहुंची थीं। स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर का कहना था कि बैंक से जुड़े जो दस्तावेज जमा कराए गए हैं उनकी जांच में भी समय लग रहा है। उनकी दलील थी कि प्रोसेस 3 दिनों में पूरा होगा। उसके बाद ही जेल से रिहाई मुमकिन हो पाएगी।

स्टूडेंट एक्टिविस्ट के वकील ने जोरदार विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि वो सारे दिल्ली में रह रहे थे। पुलिस ने उन्हें वहीं से अरेस्ट किया था। सारे दस्तावेजों पर दिल्ली का ही एड्रेस दर्ज है। चार्जशीट में भी ये ही पता लिखा गया है तो पुलिस उनके पैतृक घरों का पेंच क्यों फंसा रही है। उनका कहना था कि हाईकोर्ट का आदेश था कि दोपहर तक रिहाई हो। हमने अपना काम कर दिया तो बेवजह जेल में क्यों रखा जा रहा है। पुलिस की गलती वो क्यों परेशानी झेलें।

एडिशनल सेशन जज रविंदर बेदी ने जब पुलिस के वकील से पूछा कि कितना वक्त और लगेगा तो उनका कहना था कि स्योरिटी की पड़ताल के लिए कल तक का वक्त चाहिए। देवांगना असम की रहने वाली हैं तो राजधानी एक्सप्रेस से अफसर वहां जाएगा। जज का पारा एकदम से चढ़ा और प्रॉसीक्यूटर से पूछा कि आपके पास सारे संसाधन हैं, तो क्या केवल राजधानी ही बची है। जज ने झुंझलाकर कहा कि आपकी दलील नहीं समझ आ रही। आपको लोकल एड्रेस पर जाकर वेरीफिकेशन करनी चाहिए। जज ने यहां तक कहा कि और समय देने का तर्क उनके पल्ले नहीं पड़ा।

हकीकत यही है कि पुलिस भले ही याचिका को चुनौती दे लेकिन जब तक उच्चतम न्यायालय फैसला नहीं देता हाईकोर्ट का आदेश ही प्रभावी रहेगा। तीनों को जेल से बाहर करना होगा। अभी तक उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई शुरू भी नहीं की है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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