सीपी-कमेंट्री: अफ्रीकी लेखक को साहित्य और एक महिला समेत दो पत्रकारों को शांति का नोबेल पुरस्कार

नोबेल पुरस्कारों के 2021 के विजेताओं का चयन बहुत अप्रत्याशित माना जा रहा है। अधिकतर लोगों ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि इस बार नोबेल शांति पुरस्कार लोकतंत्र और टिकाऊ शांति के लिए आवश्यक अभियक्ति की आजादी की हिफाजत के लिए किसी हथियार के बजाय अपनी कलम से लड़ने वाले दो पत्रकारों को संयुक्त रूप से दिए जाएंगे, जिनमें से एक महिला भी हैं। फिलीपींस की 56 वर्षीय मारिया रीसा और रूस के दिमित्री ए मुरातोव को आज नॉर्वे की राजधानी ओस्लो मे नोबेल शांति पुरस्कार कमेटी ने जब इन पत्रकारों को विजेता घोषित किया तो निःसंदेह दुनिया भर की तानाशाही व्यवस्था और खास कर भारत की केन्द्रीय सत्ता में सात बरस से कायम लगभग निरंकुश नरेंद्र मोदी की खैरख्वाह हड़बड़ गड़बड़ गोदी मीडिया को बहुत चुभा होगा।

इस बरस का साहित्य नोबेल पुरस्कार अफ्रीकी महादेश के तंजानिया के अब्दुलरज़ाक गुरनाह को भ्रष्टाचार और शरणार्थियों की बंधुआ मज़दूरी के कथानक पर उनकी 1994 में प्रकाशित फिक्शन ‘ पैराडाइज़ ‘ के लिए प्रदान करने की घोषणा की गई है।

साहित्य, अर्थशास्त्र, भौतिकी,रसायन और मेडिसिन के घोषित नोबेल पुरस्कारों के बारे में हम विस्तृत रिपोर्ट जनचौक पर सीपी कमेंट्री कॉलम में ही दे चुके हैं।

मारिया रीसा को अपनी साहसिक पत्रकारिता के लिए फिलीपींस के राष्ट्रपति रोडरिगो दुतरते के कोप का शिकार बनना पड़ा है। वह नोबेल पुरस्कारों के 126 बरस के इतिहास में 18वीं महिला विजेता हैं। उन्होंने 1986 में स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद अमेरकी मीडिया केबल न्यूज नेटवर्क (सीएनएन) के लिए भी रिपोर्टिंग की है। दिमित्री मुरातोव को भी रूस के नए तानाशाह व्लादिमीर पुतिन का दमन झेलना पड़ा है। इस दमन में उनके अखबार के अब तक छह रिपोर्टर मारे जा चुके हैं।


कमेटी ने माना कि इन दोनों पत्रकारों ने फिलीपींस और रूस में अभिव्यक्ति की आजादी के लिए व्यापक लड़ाई का साथ देने में अदम्य साहस का परिचय दिया है। मारिया ने फिलीपींस में सत्ता के दुरुपयोग , बढ़ती हिंसा और अधिनायकवाद का पर्दाफ़ाश करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने जनवरी 2012 में रैपलर नामक डिजिटल मीडिया कंपनी स्थापित की और वह अभी भी उसकी प्रमुख हैं। रैपलर की औसत मासिक व्यूवरशिप 40 मिलियन बताई जाती है।
मुरातोव ने रूस में दशकों से अभिव्यक्ति की आजादी की हिफाजत के लिए काम किया है, वह 1993 में स्थापित स्वतंत्र अखबार नोवाया गजेटा के संस्थापकों में शामिल हैं और 1995 से इसके प्रधान संपादक हैं। इस अखबार में निवेश करने वालों में पूर्ववर्ती सोवियत संघ के अंतिम शासक और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मिखाइल गोरबाच्योव भी शामिल हैं।
पुतिन की तानाशाही हुकूमत में इस अखबार के अब तक मारे गए 6 रिपोर्टरों में आना पॉलितकोवासकाया भी हैं जिन्होंने रूस के चेचन्या प्रांत में विद्रोहियों के खिलाफ सैन्य यद्ध के बारे में खुलासा करने वाली रिपोर्टिंग की थी। उनकी 7 अक्तूबर, 2006 को मास्को में उन्हीं के घर के लिफ्ट में कुछ उसी तरह गोली मारकर हत्या कर दी गई जैसे कुछ बरस पहले मोदी सरकार की मुखर आलोचक महिला पत्रकार गौरी लंकेश की कर्नाटक में उनके घर में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।


नोबेल शांति पुरस्कार के इतिहास में इस बरस सबसे ज्यादा कुल 329 नॉमिनेशन मिले थे, जिनमें यूरोप के देश बेलारूस की आत्म-निर्वासित विपक्षी महिला नेता स्वेतलाना तिखनोस्काया शामिल थीं।

अब्दुलरज़ाक गुरनाह
तंजानिया के जंजीबार में जन्मे अब्दुलरज़ाक गुरनाह पढ़ाई के लिए 18 बरस की आयु में लन्दन गए थे । वह केंट यूनिवर्सिटी अंग्रेज़ी साहित्य के प्रोफेसर पद से रिटायर होने के बाद ब्रिटेन में ही बस गए। उनकी मातृभाषा स्वहिली है। पर लेखन ज्यादातर अंग्रेजी में करते हैं।

(चंद्र प्रकाश झा लेखक और स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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