देशद्रोह कानून खत्म हो, ताकि खुलकर सांस ले सकें नागरिक:जस्टिस नरीमन

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उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त जस्टिस नरीमन ने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी। अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे। अपनी शक्ति और अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ हिस्से को खत्म करे, ताकि देश के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस ले सकें। एक कार्यक्रम में जस्टिस नरीमन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को देशद्रोह कानून को रद्द कर देना चाहिए। इतना ही नहीं, गैरकानूनी गतिविधियों को लेकर बने यूएपीए कानून के भी कुछ हिस्से को रद्द करने की पहल होनी चाहिए।

विश्वनाथ पसायत स्मृति समिति द्वारा आयोजित समारोह को सम्बोधित करते हुए जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि यूएपीए अंग्रेजों का कानून है, क्योंकि इसमें कोई अग्रिम जमानत नहीं है और इसमें न्यूनतम 5 साल की कैद है। यह कानून अभी भी समीक्षा के दायरे में नहीं है । देशद्रोह कानून के साथ इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। जस्टिस नरीमन ने कहा कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में धारा 124ए कैसे बची हुई है? इस पर विचार किया जाना चाहिए ।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि मैं सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करूंगा कि वह उसके सामने लंबित देशद्रोह कानून के मामलों को वापस केंद्र के पास न भेजे। जस्टिस नरीमन ने कहा कि सरकारें आएंगी और जाएंगी। अदालत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपनी शक्ति का उपयोग करे। अपनी शक्ति और अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए धारा 124 ए और यूएपीए के कुछ हिस्से को खत्म करे। ताकि देश के नागरिक ज्यादा खुलकर सांस ले सकें।

जस्टिस नरीमन ने कहा कि वैश्विक कानून सूचकांक में भारत की रैंक 142 है। इसकी वजह ये है कि यहां कठोर और औपनिवेशिक कानून अभी भी मौजूद हैं। उन्होंने इस साल के नोबेल शांति पुरस्कार का भी जिक्र किया, जिसे दो पत्रकारों- मारिया रेसा (फिलिपींस) और दमित्री मुराटोव (रूस) को बोलने एवं अभिव्यक्ति की आजादी की दिशा में निरंतर कार्य करने के लिए दिया गया है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता की रैकिंग में फिसड्डी है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि ऐसा इन ‘पुराने’और ‘दमनकारी’कानूनों के चलते हो सकता है।

जस्टिस नरीमन ने ब्रिटेन और भारत में देशद्रोह कानून के इतिहास के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत के चीन और पाकिस्तान से युद्ध हुए थे। उसके बाद ये औपनिवेशिक कानून, गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम बनाया गया। जस्टिस नरीमन ने कहा कि इमिनेंट लॉलेस एक्शन वर्तमान में इस्तेमाल किया जाने वाला एक मानक है जिसे यूनाइटेड स्टेट्स सुप्रीम कोर्ट द्वारा ब्रैंडेनबर्ग बनाम ओहियो (1969) में स्थापित किया गया था।

उन्होंने कहा कि राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसे भारतीयों, विशेषकर स्वतंत्रता सेनानियों का दमन करने के लिए लाया गया था। इसका आज भी दुरुपयोग हो रहा है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि मूल आईपीसी में राजद्रोह का प्रावधान नहीं था, लेकिन यह ड्राफ्ट में जरूर था। बाद में इसका पता लगाया गया और इसे फिर से ड्राफ्ट किया गया। इसे लेकर कहा गया था कि ये धारा गलती से छूट गई थी। इसके शब्द भी अस्पष्ट थे। 124ए के तहत सजा बहुत बड़ी थी, क्योंकि इसमें आजीवन कारावास और तीन साल की कैद का प्रावधान किया गया था।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)

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