स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन 200 करोड़ के लोन घोटाले में गिरफ्तार

क्या भारत में 200 करोड़ के भ्रष्टाचार से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता? क्या बड़े लोगों के लिए सौ दो सौ करोड़ का भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन गया है? यह सवाल आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ गिरीश मालवीय ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन प्रतीप चौधरी की गिरफ्तारी और गोदी मीडिया द्वारा इस खबर कि अनदेखी पर उठाया है यह खबर न तो अखबारों के फ्रंट पेज पर बड़े-बड़े फॉन्ट में हेडलाइन में छपी है न ही इलेक्ट्रानिक मीडिया पर प्राइम टाइम की बहस में कहीं दिख रही है?

जैसलमेर पुलिस ने भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व अध्यक्ष प्रतीप चौधरी को 200 करोड़ के ऋण घोटाला मामले में गिरफ्तार कर लिया है। जैसलमेर के होटल से जुड़े मामले में उन्हें उनके दिल्ली स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया। यह मामला गोदावन समूह के स्वामित्व वाली संपत्तियों से संबंधित है, जिसने 2008 में एक होटल बनाने के लिए एसबीआई से 24 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था। चौधरी के खिलाफ आरोप है कि जब बैंक ने संपत्तियों को ऋण के बदले जब्त कर लिया था, तब 200 करोड़ रुपये की संपत्तियों को 25 करोड़ रुपये में बेचा गया। चौधरी को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जैसलमेर की कोर्ट में पेश किया गया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने प्रतीप चौधरी की जमानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें 15 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

प्रतीप चौधरी पर आरोप है कि उन्होंने 200 करोड़ रुपये की एक प्रॉपर्टी को सिर्फ 25 करोड़ रुपये में बेच दिया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी जिसके बाद उन्हें जैसलमेर जेल भेज दिया गया। यह मामला जैसलमेर में स्थित एक होटल की प्रॉपर्टी को NPA करने के बाद गलत तरीके से बेचने से जुड़ा है। प्रतीप चौधरी पर आरोप है कि उन्होंने अलकेमिस्ट ARC नाम की एक कंपनी को लोन डिफॉल्ट (Loan Default)करने पर यह होटल नाम मात्र के भाव में बेच दिया। रिटायरमेंट के बाद चौधरी को उस कंपनी में निदेशक का पद दे दिया गया जिसे सस्ते में होटल बेचा गया था।

राजवाड़ा होटल समूह ने जैसलमेर में बन रहे अपने होटल के निर्माण के लिए साल 2008 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की जोधपुर शाखा से 24 करोड़ का ऋण लिया था, लेकिन जब होटल समूह उसे चुका नहीं पाया तो एसबीआई ने इसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट (NPA)मानते हुये होटल समूह के निर्माणाधीन और उसके एक चलते हुए होटल को जब्त कर लिया था। उस समय प्रतीप चौधरी स्टेट बैंक के चेयरमैन थे।

इसके बाद साल 2010 में उन्होंने छह करोड़ रुपये का लोन और मांगा जिसके लिए बैंक ने मना कर दिया। इसके बाद राठौर का हर्ट अटैक से निधन हो गया। उनकी मृत्यु के दो महीने बाद SBI ने राजवाड़ा होटल को दिए लोन को NPA में कन्वर्ट कर दिया और प्रॉपर्टी पर कब्जा कर लिया। इसके बाद राठौर की दोनों संपत्ति की वैल्यू लगाई गई, उनके पुत्र को लोन वापस करने के लिए कहा गया। इसके बाद चौधरी रिटायर हो गए और रिकवरी कंपनी में एक बिचौलिए अलोक धीर को निदेशक बना दिया गया।

प्रतीप चौधरी ने जिस कंपनी को कौड़ियों के भाव होटल खरीदने में मदद की, उसी कंपनी में निदेशक बने। होटल समूह की इन एसेट की वर्तमान समय में कीमत 250 करोड़ रुपये बताई जा रही है। पिछले दिनों इस मामले में सीजेएम कोर्ट ने प्रतीप चौधरी की गिरफ्तारी के आदेश दिये थे।

जैसलमेर का सबसे मशहूर होटल है फोर्ट राजवाड़ा, 6 एकड़ में फैला हुआ एक किला, जिसे हेरिटेज प्रोपर्टी की शक़्ल दी गयी है, आज भी विदेशी सैलानी यदि जैसलमेर की सैर करने आते हैं तो फोर्ट राजवाड़ा उनकी पहली पसंद रहता है। इस होटल के मालिक स्व. दिलीप सिंह राठौर ने साल 2008 में खुहड़ी रोड पर एक और होटल गढ़ रजवाड़ा के नाम से बनाने का प्लान किया। और इसके लिए एसबीआई जोधपुर से साल 2008 में 24 करोड़ का टर्म लोन लिया। होटल का निर्माण शुरू हुआ। 2010 में दिलीप सिंह राठौर ने 6 करोड़ का लोन और मांगा, लेकिन एसबीआई ने इस बार उन्हें लोन नहीं दिया। इसी बीच 2010 में होटल मालिक दिलीप सिंह की हार्ट अटैक से मौत हो गई।

उनके पुत्र इस विषय में अधिक जानते नहीं थे, मौत के 2 महीने बाद ही एसबीआई ने आरबीआई के नियमों से परे जाकर लोन को एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट घोषित कर दिया। और दोनों होटल का वैल्युएशन कराया। लोन का पैसा भरने के लिए दिलीप सिंह के पुत्र हरेन्द्र सिंह राठौर पर दबाव बनाया। इस बीच आतिशय कंसल्टेंसी के मालिक देवेंद्र जैन ने होटल मालिक के बेटे को लोन सेटेलमेंट के लिए एप्रोच किया। उस दौरान एसबीआई के चेयरमैन प्रतीप चौधरी थे।

देवेंद्र जैन ने दिलीप सिंह के बेटे हरेन्द्र सिंह को एक ऐसे व्यक्ति से मिलवाया जो दिवाला प्रक्रिया को लेकर देश के जाने माने वकील माने जाते हैं साथ ही चेयरमैन प्रतीप चौधरी के मित्र भी थे, उनके खिलाफ भी जोधपुर कोर्ट ने गिरफ्तारी के आदेश जारी किए हैं। उनका नाम है आलोक धीर। ऐसी कम्पनियों का काम यह होता है कि जो ऋणदाता लोन नहीं चुका पा रहे हैं उनका लोन सेटेलमेंट करवाना लेकिन यहां तो वकील साहब ही असेट्स रिकन्स्ट्रकशन कंपनी खोलकर बैठ गए थे।

होटल मालिक हरेन्द्र सिंह की आलोक धीर की बात नहीं बन पाई। इधर प्रतीप चौधरी एसबीआई के डायरेक्टर पद से 30 सितंबर, 2013 को रिटायर हुए, लेकिन वो पूरा खेल सेट कर चुके थे 14 अक्टूबर 2013 को एसबीआई ने होटल मालिक को करीब 40 करोड़ की देनदारी बताते हुए नोटिस जारी कर दिया। होटल मालिक डीआरटी कोर्ट जयपुर गए। उस दौरान एसबीआई ने रिकवरी के लिए दोनों होटल का एसेट आलोक धीर को दे दिया। एसबीआई ने बिना नीलामी किए अंदर ही अंदर आलोक धीर को दोनों होटल सौंप दिए। धीर साहब ने दोनों होटल पर कब्जा कर लिया। प्रतीप चौधरी रिटायरमेंट के अगले साल 2014 में बिचौलिये आलोक धीर की अलकेमिस्ट असेट्स रिकन्स्ट्रकशन कंपनी के डायरेक्टर बन गए।

अब होटल मालिक हरेंद्र सिंह को पूरा खेल समझ आया उन्होंने जैसलमेर सदर थाने में 2015 में धोखाधड़ी की एफ़आईआर दर्ज करवाकर इस मामले में एसएबीआई के तत्कालीन चेयरमैन समेत कुल 8 लोगों पर मामला दर्ज करवाया।

एसबीआई ने एक बयान में कहा कि मामले के सभी तथ्यों को अदालत के समक्ष ठीक से पेश नहीं किया गया और एसबीआई को मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया।गढ़ रजवाड़ा जैसलमेर में एक होटल परियोजना थी, जिसे 2007 में बैंक द्वारा वित्तपोषित किया गया था। यह परियोजना 3 वर्षों से अधिक समय तक अधूरी रही और प्रमुख प्रमोटर का अप्रैल 2010 में निधन हो गया। खाता जून 2010 में एनपीए में फिसल गया। द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम परियोजना को पूरा करने के साथ-साथ बकाया की वसूली के लिए बैंक ने वांछित परिणाम नहीं दिया। इसलिए बैंक के वसूली प्रयासों के हिस्से के रूप में, मार्च 2014 में वसूली के लिए एआरसी को बकाया राशि सौंपी गई थी। बैंक द्वारा एआरसी को यह बिक्री की गई थी बैंक की नीति के अनुसार एक निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से।

जैसा कि वसूली के प्रयास विफल रहे, एआरसी को बिक्री के लिए मंजूरी जनवरी 2014 में ली गई थी, एआरसी को असाइनमेंट मार्च 2014 में पूरा किया गया था। अब यह पता चलता है कि उधारकर्ता ने शुरुआत में एआरसी को संपत्ति की बिक्री के खिलाफ राज्य पुलिस के साथ प्राथमिकी दर्ज की थी। पुलिस अधिकारियों द्वारा दायर नकारात्मक क्लोजर रिपोर्ट से व्यथित, उधारकर्ता ने माननीय सीजेएम कोर्ट के समक्ष एक ‘विरोध याचिका’ दायर की थी। संयोग से एसबीआई को इस मामले में पक्षकार नहीं बनाया गया था। चौधरी सहित उस एआरसी के सभी निदेशक, जो शामिल हुए थे अक्टूबर 2014 में उनके बोर्ड को उक्त मामले में नामित किया गया है। संयोग से, चौधरी सितंबर 2013 में बैंक की सेवा से सेवानिवृत्त हुए।

यह अब हमारे द्वारा प्राप्त कार्यवाही की प्रतियों से प्रतीत होता है कि न्यायालय को घटनाओं के अनुक्रम पर सही ढंग से जानकारी नहीं दी गई है। एसबीआई इस मामले में एक पक्ष नहीं था, इसलिए कोई अवसर नहीं था। इस कार्यवाही के भाग के रूप में एसबीआई के विचारों की सुनवाई के लिए। एसबीआई यह दोहराना चाहेगा कि एआरसी को उक्त बिक्री करते समय सभी उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था। बैंक ने पहले ही कानून प्रवर्तन और न्यायिक अधिकारियों को अपना सहयोग देने की पेशकश की।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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