बोकारो। झारखंड के धनबाद जिला अंतर्गत निरसा और महुदा थाना क्षेत्र में फरवरी माह में अवैध खनन से हुए हादसों की खबरें जब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चे में आईं तो झारखंड सरकार की नींद में खलल पड़ी। तब पिछले दिनों राज्य के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह द्वारा विभिन्न जिलों के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से एक बैठक की गई। उसके बाद पुलिस मुख्यालय के आईजी एवी होमकर अभियान ने संबंधित जिलों के एसपी को कार्रवाई करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही अवैध उत्खनन पर नियंत्रण के लिए टास्क फोर्स की नियमित बैठक करने का सुझाव डीसी व एसपी को दिया गया।
आप को बता दें कि झारखंड के धनबाद जिले में अवैध उत्खनन से 2022 के फरवरी माह में एक के बाद एक चाल धंसने की चार घटनाएं हुईं हैं। जिसमें अब तक 18-19 लोगों के मारे जाने की खबर है, जबकि कुछ लोगों के मरने की खबर को परिजनों द्वारा छुपा लिया गया है। हालांकि अधिकारिक रूप से मात्र 7 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की गई है।
एक फरवरी को धनबाद के निरसा क्षेत्र में चाल धंसने की तीन घटनाएं हुईं, जिनमें 16 लोगों के मारे जाने की सूचना स्थानीय लोगों ने दी। जबकि अधिकारिक पुष्टि सिर्फ पांच लोगों के मारे जाने की हुई। यह दुर्घटना निरसा के गोपीनाथपुर, कापासारा एवं दहीबाड़ी आउटसोर्सिंग में बंद पड़ी खदानों में हुई थी। बता दें कि धनबाद में 23 बंद खदाने हैं, जिनमें अवैध खनन रुकने का नाम नहीं ले रहा है और अक्सर इनमें दुर्घटनाएं होती रहती हैं।
वहीं अभी हाल में 3 मार्च की सुबह निरसा थाना क्षेत्र के ही कापासारा आउटसोर्सिंग में अवैध खनन के दौरान अचानक चाल धंस गई। जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी। वहीं हादसे में एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया। मरने वालों में एक कमारडीह का रहने वाला और दूसरा मुगमा क्षेत्र का रहने वाला बताया जा रहा है।

जबकि निरसा पुलिस ने इस तरह की किसी भी घटना से इनकार किया है।
इसी तरह से आठ फरवरी को जिले के महुदा थाना क्षेत्र में अवैध खनन करते हुए दो मजदूर रोशनी कुमारी (14) और विनोद महतो (28) की मौत हो गयी थी। घटना के बाद भी मामले पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। मतलब आज भी अवैध खनन बदस्तूर जारी है।
इस लिहाज से देखा जाए तो अवैध खनन पूरे कोयलांचल की एक ऐसी समस्या है जिसे खत्म करने का किसी स्तर पर कोई भी प्रयास नहीं किया जा रहा है। दरअसल होता यह है कि कोल कंपनियां सीसीएल, बीसीसीए और ईसीएल कई जगहों पर कोयला खदान को छोड़ चुकी हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि ऐसी खदानें जहां कोयले की मात्रा कम हो और उससे निकालने का खर्च ज्यादा हो उसे छोड़ दिया जाता है। ऐसे में कोल माफिया सक्रिय हो जाते हैं। वे स्थानीय गरीब मजदूरों के जरिये इन खदानों में अवैध खनन करवाते हैं। इन मजदूरों को प्रतिदिन के हिसाब से 400 से 800 रुपये की कमाई होती है। ये मजदूर 300 मीटर से 350 मीटर तक अंदर जाकर कोयला काटते हैं और उसे निकालते हैं।
दरअसल कोल कंपनियों द्वारा जिन खदानों से कोयला निकाल कर उन्हें छोड़ दिया जाता है, उन खदानों के मुहाने को डस्ट वगैरह से बंद कर दिया जाता है। लेकिन कोयले के अवैध कारोबारी यानि कोयला माफिया हफ्तों तक सैकड़ों मजदूरों को लगाकर उन बंद मुहानों से डस्ट हटवा देते हैं और फिर उनके भीतर से कोयला निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है। इनकी लंबाई कई बार एक-एक किमी तक की होती है।
अंदर अगर पानी का जमाव मिलता है तो उसे मोटर पंप से निकालने की भी व्यवस्था होती है। यहां तक कि गैस वगैरह की परेशानी होने पर बड़े-बड़े पंखे लगाकर अंदर से उसे बाहर किया जाता है। मतलब हर हाल में बंद पड़े खदानों से कोयला निकालने की कोशिश की जाती है। इससे यह समझना जरा भी कठिन नहीं है कि अवैध खनन के लिए कोयला माफियाओं की तैयारी किस स्तर तक की है। ये पूरी घटना बताती है कि ऐसा तैयारी बिना स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं है।

इस बात में कोई शक नहीं कि इस काम में जान का जोखिम है। बावजूद इसके कोयला मजदूर कोयले की खुदाई इन खदानों में करते हैं और कोयला निकालकर उसे एक निर्धारित जगह तक पहुंचाते हैं, जहां से ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल और साइकिल के जरिये कोयले की ढुलाई की जाती है। इस धंधे में जो कोल माफिया सक्रिय हैं, वे इस धंधे से लाखों की कमाई कर रहे हैं, जबकि मजदूर बेमौत मारा जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि इसमें स्थानीय मजदूरों को नहीं इस्तेमाल किया जाता है। कोयला माफिया इसके लिए बंगाल से गरीब मजदूरों को लाते हैं और उनसे कोयला निकलवाते हैं।
बता दें कि किसी भी भूमिगत कोल खदान में जब कोयले का खनन किया जाता है तो कोल कंपनियां सुरक्षा का ध्यान रखती हैं, ताकि कोयला मजदूरों को कोई खतरा ना हो। वे खुदाई के दौरान जरूरत के हिसाब से सुरक्षा के इंतजाम करती हैं, जिसमें लकड़ी का सपोर्ट भी दिया जाता है, लेकिन अवैध खनन में लगे लोग इन सुरक्षा मानकों का कोई ध्यान नहीं रखते हैं और खनन करते हैं, जिसकी वजह से दुर्घटनाएं होती हैं। ऐसे में अक्सर लोगों की जान जाती है। कोल माफिया तो हैं ही, इलाके में कई लोग कोक इंडस्ट्रीज का लाइसेंस लेकर भी इस अवैध काम में जुटे हुए हैं।
कोक लाइसेंसधारी कच्चे कोयले को पकाकर उसे कई स्तर से तैयार करके फैक्ट्री में भेजते हैं। यानी प्रदूषण को भी नजरंदाज कर कारोबार किया जाता है।
कोई कोयले के छोटे-छोटे टुकड़ों का आकार देता है, तो कोई उसे पकाकर धुआं रहित बनाता है, कोई कोयले की पिसाई करके गोला करके और उसे पकाकर और अधिक ऊर्जावान बनाता है। उसकी सप्लाई फैक्ट्री को की जाती है। चूंकि वैध कोयले की कीमत से 20-30 प्रतिशत कम दर पर यह कोयला उपलब्ध हो जाता है लिहाजा फैक्ट्री वाले इसे ही खरीदना पसंद करते हैं। कच्चा कोयला केवल ईंट भट्ठा में इस्तेमाल किया जाता है।

गरीब लोग जिसमें ज्यादातर दलित व पिछड़े समाज से आते हैं, रोटी के लिए जान जोखिम में डालकर भी कोयले का अवैध खनन करते हैं। चूंकि वे अवैध खनन के काम में जुटे हैं, इसलिए उनकी जान पर खतरा तो है ही साथ ही जब दुर्घटना होती है तो वे मुआवजे की मांग भी नहीं करते हैं, क्योंकि उन्हें पुलिस केस का डर होता है। कई बार तो दुर्घटना के बाद अगर संभव हुआ तो वे लाश उठाकर भी भाग जाते हैं, ताकि कोई घटना के बारे में जान न सके। बात जब बड़ी हो जाती है तब जाकर उसके बारे में जानकारी मिल पाती है।
अवैध खनन के इस काम में छोटे बच्चे और महिलाएं भी शामिल होती हैं। वे खदान में अंदर जाकर खुदाई करते हैं, जिससे उनकी जान को खतरा तो है ही उन्हें सांस संबंधी कई बीमारियां भी हो रही हैं।
ऐसा नहीं है कि हर जगह कोयले के अवैध उत्खनन में लगे लोगों को प्रशासनिक संरक्षण प्राप्त है। लातेहार जिला खनन पदाधिकारी के द्वारा बालूमाथ प्रखंड के रजवार स्थित हरैयाखांड़ में अवैध कोयले का खनन करने को लेकर 13 व्यक्तियों एवं दो ईंट भट्टा संचालकों पर बालूमाथ थाना में नामजद प्राथमिकी दर्ज करवायी गई है।
जिलास्तरीय टास्क फोर्स की बैठक में उपायुक्त अबु इमरान के द्वारा जिले में अवैध खनन, भंडारण एवं परिवहन के रोक थाम को लेकर दिए गए निर्देश के आलोक में जिला खनन पदाधिकारी आनंद कुमार ने बालूमाथ में अवैध खनन एवं भंडारण में संलिप्त व्यक्तियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है।
धनबाद के कोयलांचल क्षेत्र में अवैध खनन में पुलिस की मिली भगत का सबसे बड़ा सबूत यह है कि निरसा कोयला क्षेत्र के इस्टर्न कोल फील्ड द्वारा अवैध खनन को लेकर निरसा पुलिस से दर्जनों बार शिकायत दर्ज कराई गई है। लेकिन निरसा पुलिस द्वारा उसे हर बार ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। कंपनी ने रजिस्ट्री डाक से भी शिकायत भेजी, तो निरसा पुलिस ने उसे रिसीव ही नहीं किया। पिछले दिनों इस्टर्न कोल फील्ड के अधिकारियों ने पत्रकारों को निरसा पुलिस का नन रिसीव रजिस्ट्री डाक दिखाई और बताया दर्जनों ऐसे शिकायत पत्र को रिसीव नहीं किया गया है।
धनबाद के वरिष्ठ अधिवक्ता, समाजसेवी एवं बियाडा के पूर्व अध्यक्ष विजय कुमार झा कहते हैं कि “अवैध कोयला से लदी गाड़ियों को पुलिस पकड़ती जरूर है, लेकिन न तो गाड़ियों को सीज किया जाता है न ही गाड़ी मालिक पर मुकदमा दर्ज किया जाता है। जबकि होना यह चाहिये कि जो भी गाड़ी पकड़ी जाती है, उसे सीज करके उसके टायर को ही काट दिया जाए, टंकी तोड़ दिया जाए, चाहे वह कोई भी गाड़ी हाइवा हो या कि डंपर”।

वो आगे बताते हैं कि “उनके मुताबिक होता यह है कि जब कोई अवैध कोयला से लदा हाइवा, डंपर या अन्य ट्रक वगैरह छापेमारी के दौरान पकड़ा जाता है तो उस वक्त गाड़ी के ड्राइवर व खलासी गाड़ी छोड़कर भाग जाते हैं और बाद में स्थानीय पुलिस की मिली-भगत से चुपके से गाड़ी लेकर चले जाते हैं। क्योंकि किसी भी गाड़ी को सीज नहीं किया जाता है। न ही गाड़ी मालिक या ड्राइवर वगैरह पर मुकदमा दर्ज किया जाता है।
अवैध खनन को रोकने के लिए विजय कुमार झा ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि प्रति वर्ष 10 मिलियन टन कोयले की चोरी धनबाद से हो रही है और सैकड़ों लोगों की मौत हो रही है जिसे रोका जाना चाहिए। उन्होंने 56 पेज की अपनी याचिका में कोर्ट से आग्रह किया है कि कोर्ट अपनी निगरानी में इस अवैध खनन की जांच कराए।
कुछ मामलों में छापेमारी के बाद गाड़ी के ड्राइवर द्वारा यह कहकर कि कोयले का कागजात लाकर दिखा देंगे आफिस में है, चले जाते हैं और फिर रात में आकर वो गाड़ी लेकर चले जाते हैं। इस मामले पर संबंधित अधिकारी बताते हैं कि वे रात को आकर कागजात दिखा गए। कागजात दिखाए गए या नहीं यह तो केवल वही जनाब जानते हैं।
इसमें सबसे बड़ा सवाल यह बनता है कि जब नियमतः कोयले का पेपर गाड़ी के साथ होना चाहिए तो वह क्यों नहीं साथ होता है? फिर कुछ घंटों बाद पेपर कैसे आ जाता है? जब कोयला दूसरे राज्यों में जाता है तो क्या दूसरे राज्य की सीमा पर इसकी जांच पड़ताल नहीं होती है? मतलब साफ है कि सब कुछ प्रशासनिक व राजनीतिक मिली भगत से चल रहा है। यानी सारा कुछ ऊपर से नीचे तक की सेटिंग पर चल रहा है।
दरअसल अवैध कोयले का कारोबार चार चरण में होता है। एक आदमी कोयला काटता है, दूसरा उसे बोरे में भरकर गन्तव्य तक पहुंचाता है, तीसरा डिपो में पहुंचाता है, चौथा चरण डिपो से राज्य के बाहर भेजा जाता है या फैक्ट्री वालों को भेजा जाता है। काटने वाले को एक रुपये किलो के हिसाब से रेट मिलता है, बाकी को वैध कोयले के 40% के कम दर पर बेचा जाता है।
कोयले के इस अवैध कारोबार से राजस्व की हानि तो है ही जीएसटी का काफी नुकसान हो रहा है। रोज छापेमारी हो रही है। फिर भी अवैध उत्खनन रोज ब रोज बढ़ता जा रहा है। स्थिति यह है कि हाल ही में की गई छापेमारी में 15 हजार बोरा कोयला बरामद हुआ, जो चीख-चीख कर इस बात की ताकीद कर रहा था कि इतनी बड़ी मात्रा में अवैध उत्खनन एक दिन में और दो-चार मजदूरों से संभव नहीं है। यानि मतलब साफ है कि इस काम के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों से काम कराया जाता है। इस अवैध खनन का सबसे खतरनाक पहलू है कि इतनी तेजी से की जा रही कोयले की कटाई से कभी भी बहुत बड़ा हादसा हो सकता है।
इसका सबसे खतरनाक परिणाम यह होगा कि धनबाद जिले के कोयलांचल क्षेत्र की कई शहरी आबादी इस हादसे की चपेट में आ सकती है। इसमें कतरास, केन्दुआ, करकेन्द्र, पुटकी, बाघमारा, झारिया, निरसा, सिंदरी आदि क्षेत्र शामिल हैं। इन शहरी क्षेत्रों के नीचे सालों पहले कोयले का उत्खनन हो चुका है, लेकिन वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से।

इन शहरों के नीचे जितने भी खनन हुए हैं उनके 40 प्रतिशत भाग के अंदर पिलर छोड़ दिए गए हैं। यानी ये शहरी क्षेत्र कोयले के बड़े-बड़े बीम पर टिके हैं। अभी जो अवैध खनन हो रहे हैं, वे इन शहरी क्षेत्रों के किनारों से हो रहे हैं। अब वे धीरे धीरे शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं और जो 40 प्रतिशत कोयले के पिलर हैं, वे अवैध खनन से जैसे ही प्रभावित होंगे, अवैध खनन में लगे सैकड़ों नहीं हजारों मजदूरों की जान तो जाएगी ही, पूरा का पूरा शहरी क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा। और लाखों लोगों के अपनी जान गवांने का खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे खतरनाक भविष्य को न तो प्रशासनिक लोग समझ रहे हैं न ही राजनीतिक लोग, न ही सरकार की निगाह इस ओर है।
कोल माफियाओं को तो केवल अपने धंधे की पड़ी है, उन्हें क्या मतलब किसी की जान जाये या रहे, उन्हें केवल पैसा चाहिए। ऐसी खतरनाक स्थिति का कारण यह है कि कोल कंपनियों द्वारा खनन के बाद 40 प्रतिशत पिलर छोड़ने के बाद जो 60 प्रतिशत खाली क्षेत्र बचा है, उसमें बालू भरा जाना था।
80 के दशक में खनन के बाद इन खाली जगहों को बालू से भरने का ठेका कई लोगों को दिया गया था, लेकिन कहीं भी बालू नहीं भरा गया। जब यह मामला प्रकाश में सामने आया तो इसकी इंक्वायरी के लिए कोल इंडिया की ओर से 80 में पीके दास को कोलकाता से ऑडिटर के रूप में भेजा गया। जब दास ने जांच शुरू की तो पहले उन्हें मैनेज करने की कोशिश की गई, लेकिन जब उन्होंने किसी की नहीं सुनी तो उनकी हत्या कर लाश को रेलवे ट्रैक पर फेंक दिया गया। यह उस वक्त दास हत्याकांड के रूप काफी चर्चे में रहा।
लेकिन इस हत्याकांड का दुखद पहलू यह रहा कि मामले की सीबीआई जांच के बाद भी हत्यारों को नहीं पकड़ा जा सका। तब के माफिया समझे जाने वाले नौरंगदेव सिंह के भाई रामचंद्र सिंह को मामले में सीबीआई ने गिरफ्तार तो किया लेकिन सीबीआई उससे कुछ उगलवा नहीं सकी और सबूत के अभाव में वह छूट गया। यानी उस वक्त जो बालू नहीं भरा जा सका वह आज भी ज्यों का त्यों है। नतीजतन कोयलांचल क्षेत्र के कई इलाकों मे भूमिगत आग बढ़ती जा रही है, जो अपने आप में बालू घोटाले की कहानी को बयां करने के लिए काफी है। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव झरिया क्षेत्र में है, जो दशकों से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चे में रहा है।

बता दें कि झरिया में भूमिगत आग से लंबे समय से जान माल का काफी बड़ा नुकसान हुआ है। सरकार द्वारा क्षेत्र में बसे लोगों को विस्थापित कर उन्हें अन्य सुरक्षित जगहों पर बसाने की कड़ी में 104966 परिवारों को बसाया जाना है, जिसमें 32084 रैयत हैं और 72882 गैर रैयत परिवार हैं, जो रोजगार के लिए यहां वर्षों से बसे हैं।
इसमें अभी तक 4000 परिवारों को बसाया गया है और अगले साल तक 18000 गैर रैयत परिवारों को बसाने की तैयारी है।
कोल माइंस का सरकारीकरण दो फेज में हुआ है। 1971 में कोकिंग कोल का और 1973 में नान कोकिंग कोल का। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अवैध कोयला उत्खनन में हो रही मौत का जिम्मेवार कौन है? अवैध खनन रोकने के लिये सरकार का निर्देश जारी होता है, अधिकारियों की हाई लेबल मीटिंग होती रहती है, स्थानीय पुलिस को इसे रोकने के लिये दिशा निर्देश दिया जाता है। बावजूद इसके यह धंधा रुकने का नाम नहीं लेता क्यों? इसके पीछे किसका हाथ है? लगातार हो रही ऐसी घटनाओं में मौत का सिलसिला जारी है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अवैध कोयला उत्खनन में हो रही मौत का जिम्मेवार कौन है? अवैध खनन रोकने के लिये सरकार का निर्देश जारी होता है, अधिकारियों की हाई लेबल मीटिंग होती रहती है, स्थानीय पुलिस को इसे रोकने के लिये दिशा निर्देश दिया जाता है। बावजूद इसके यह धंधा रुकने का नाम नहीं लेता क्यों? इसके पीछे किसका हाथ है? लगातार हो रही घटनाओं में मौत का सिलसिला जारी है। इस मामले में सरकार व पुलिस प्रशासन को गम्भीर होना होगा, तभी इस पर रोक लगना सम्भव है, नहीं तो घटना घटती रहेगी, लोग मरते रहेंगे।
कतरास थाने के 1 से लेकर 5 किमी के दायरे में आने वाले आकाश कनाली, कौलूडीह, मलकेरा, कोसलपुर रोड, बुटूबाबू का बंगला, रामकनाली माइंस के क्षेत्र बेखौफ रूप से अवैध उत्खनन होता है।
वहीं थाना से 3-4 किमी दूर अवस्थित साखाटांड़, श्यामडीह, काको व टंडा बस्ती एरिया में अवैध कोयले का डिपो है जहां से हाइवा वगैरह से कोयले की सप्लाई की जाती है। बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि कतरास का पचगढ़ी में स्थित बुटूबाबू का बंगला जो कतरास थाना से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है इस अवैध खनन का अगुआ बना हुआ है।

वहीं सोनारडीह थाना से मात्र तीन किलोमीटर दूर तेतुलिया माइंस में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। बाघमारा थाना क्षेत्र का भीम कनाली, नदखरकी, जमुनिया, टूंडो से लेकर नदखरकी, जमुनिया के इलाके में लगभग 10 अवैध कोल डिपो हैं। समझा जाता है कि ये तमाम अवैध कोल डिपो बाघमारा के भाजपा विधायक ढुलू महतो के संरक्षण में ही नहीं बल्कि उन्हीं के द्वारा ही चलवाया जा रहा है।
महुदा थाने से मात्र 4 किलोमीटर दूर है कोल माइंस भाड़डीह, लाल बंगला एरिया जहां बड़े पैमाने अवैध खनन हो रहा है। वहीं पुटकी थाना व भागाबांध थाने के बीच है खैरा माइंस, जो पुटकी थाना क्षेत्र में आता है। वह थाने से मात्र 4 किमी दूर है और यहां बड़े धड़ल्ले से अवैध खनन होता है।
केन्दुआडीह थाना और धनसार थाने के बीच है काली बस्ती माइंस जहां दोनों थाने की देखरेख में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। वहीं लोयाबाद थाना व जोगता थाने के बीच में है सेन्दरा माइंस वहां भी अवैध खनन अपने परवान पर है।
बीसीसीएल को जनवरी 1972 में झरिया और रानीगंज कोलफील्ड्स में संचालित कोकिंग कोल खदानों को संचालित करने के लिए शामिल किया गया था। इसके पहले भारत सरकार द्वारा 16 अक्टूबर 1971 को देश में दुर्लभ कोकिंग कोल संसाधनों के नियोजित विकास को सुनिश्चित करने के लिए अधिग्रहण किया गया था।
यह झरिया जो आज भूमिगत आग का दंश झेल रहा है और डैन्जर जोन में है, यहां के निवासियों को कहीं और बसाने तैयारी वर्षों से हो रही है। इस झरिया का राजापुर, बस्ताकोला, बलियापुर, बरोरा, कुसुंडा, करकराबाद, बहादुरपुर, लाहरबेरा यह सब क्षेत्र डैन्जर जोन में है, सभी जानते हैं। अतः ये माइंस भी इन माफियाओं से मुक्त नहीं है। इन क्षेत्रों में जिस दिन चाल धंसेगा, हजारों लोग मारे जाएंगे। फिर भी प्रशासन ने जैसे चोरों के लिए दरवाजा खोल दिया है। बस एक ही फरमान है जाओ लूटो और हमें खिलाओ। धनबाद का केन्दुआडीह गोजूडीह, धनसार, सरायढेला थाना क्षेत्र में काफी जोर शोर से अवैध खनन का काम चल रहा है।

जब मैंने इन तमाम क्षेत्रों में जाने के लिए क्षेत्र के कुछ सामाजिक लोगों सहित कुछ परिचय वाले पत्रकारों से बात की तो कोई इन माइंस वाले क्षेत्रों में जाने को तैयार नहीं हुआ। इतना ही नहीं लोगों ने इन क्षेत्रों में जाने से हमें भी मना किया।
लोगों ने बताया कि पहली बात तो यह है कि इन सारी खदानों में रात को खनन होता है, जहां जाना काफी खतरनाक है। दिन में जो मजदूर आउटसोर्सिंग खदान में कार्यरत रहते हैं वहां माफियाओं के गुंडे उनकी देखरेख में लगे रहते हैं और किसी आदमी से उन्हें मिलने नहीं देते हैं। आप अगर किसी तरह इन मजदूरों से मिल भी लिए तो आपसे बात ही नहीं करेंगे। उन्हें इस बात का डर बना रहता है कि आप उनके पेट पर लात मारने आए हैं। यानी एक तरह से वे आपको अपना दुश्मन भी मान बैठते हैं। मतलब उनका कोयला माफिया द्वारा इतना ब्रेनवाश कर दिया जाता है कि उन्हें अगर कोई तकलीफ या परेशानी भी होती है तो भी वे आपसे बात नहीं कर सकते।
कोई कोई मजदूर एक दिन में 1000 रूपये तक भी कमा लेता है। न्यूनतम वे पांच-छ: सौ रुपये रोज कमा लेते हैं, जिसके बंद होने का उनको खतरा पैदा हो जाता है। यही कारण है कि जब कोई आदमी उस क्षेत्र में जाता है, तो ये मजदूर उसे देखते ही इधर-उधर कतराने लगते हैं, कुछ तो पत्थरबाजी करने लग जाते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी रोजी-रोटी पर कोई लात मारने आ गया है। रात में तो जान तक जाने की स्थिति हो जाती है।
दरअसल भाफियाओं द्वारा बंगाल से मजदूर लाया जाता है और उनको अपनी पूरी देख रेख में रखा जाता है। रात में काम करवाया जाता है और दिन को अपनी निगरानी में रखा जाता है। खाना-पीना और रहने की सारी व्यवस्था कोयला माफियाओं के द्वारा किया जाता है ताकि कोई भी मजदूर किसी भी बाहरी व्यक्ति या प्रशानिक लोगों के संपर्क में नहीं आ सके। माइंस के भीतर कोयले की कटाई रात को ही होती है। इस काम के लिए जनरेटर वगैरह की भी पूरी व्यवस्था रहती है। यानि सारा खेल जिलों की पुलिस प्रशासन के संरक्षण में चल रहा है।
विजय कुमार झा बताते हैं कि डायरेक्टर जनरल माइन्स ऑफ सेफ्टी खनन के ऊपर यानी सतह पर की स्थिति क्या है? को देखते हुए यह मानक तय करते हैं कि खनन में कहां-कहां कितनी चौड़ाई, कितनी मोटाई और कितने पिलर छोड़ना है। कहां रेलवे लाइन है, कहां बाजार है, कहां नदी है, इस बात को ध्यान में रखकर मानक तय किए जाते हैं। अगर इन मानकों की खनन में जरा भी अवहेलना दिखती है डीजीएमएस खनन बंद करवा देता है। लेकिन अवैध खनन में डीजीएमएस के मानक का कोई मतलब कहां रह जाता है। इसलिए स्थिति काफी खतरनाक है। ऐसा नहीं है कि लोगों को यह पता नहीं है, लेकिन किसी को इस खतरनाक हालत पर बोलने या इसका विरोध करने का साहस नहीं है या फुर्सत नहीं है।
इस अवैध खनन से होने वाले खतरों पर मासस के महासचिव और बिहार कोलियरी कामगार यूनियन के केन्द्रीय सचिव हलधर महतो बताते हैं कि मुगमा स्टेशन जो हावड़ा टू बॉम्बे की मेन लाइन है, उसके नीचे जिस तरह से खनन किया जा रहा है, वह कभी भी धंस जाएगा और बहुत बड़ा हादसा हो जाएगा। जितना भी फुटबॉल ग्राउंड बना हुआ है, उसके नीचे खनन हो रहा है। यह सबके संज्ञान में है, बावजूद इसके आज तक कोई भी विधायक या सांसद सदन में इस बात को नहीं रखा है। दुखद बात यह है कि जब कभी कोई बड़ी घटना होती है तो ये लोग आ जाते हैं आंसू बहाने, अपनी वाहवाही लूटने, मुआवज़े की मांग करने, लेकिन घटना के पहले किसी को कोई मतलब नहीं होता है।
वे सवाल करते हैं कि क्या आम आदमी का जीवन मुआवजा भर है? क्या उनका जीवन मुआवजा से लौट आएगा?
हलधर महतो साफ शब्दों में आरोप लगाते हैं कि बीसीसीएल का हाई लेबल अधिकारी, बड़े नेता इस अवैध खनन में शामिल हैं। भूमिगत खदान में अनाधिकार रूप से किसी को भी घुसने का आदेश नहीं है। बीसीसीएल के मजदूर भी बिना जूता और टोपी के अंदर नहीं घुस सकते। यहां डीजीएमएस हैं, सीआईएसएफ, इसमें एक बड़ा मफिया गिरोह है जिसकी पहुंच सीएमडी से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों तक से है। वे कहते हैं बीसीसीएल के अधिकारियों की मिली भगत से ही यह अवैध खनन हो रहा है।
हलधर बताते हैं कि वेजबोर्ड कमेटी में चार साल पहले 400 भूमिगत खदानों को बंद करने की घोषणा हुई थी। जो आज माफियाओं के कब्जे में है।
अवैध उत्खनन में बच्चों को शामिल किए जाने पर झारखण्ड बाल कल्याण परिषद के सदस्य प्रदीप पांडेय बताते हैं कि बाघमारा प्रखंड के बरोरा, कतरास, रामकनाली, अंगारपथरा, चैटूडीह, श्यामडीह, आदि क्षेत्रों में हो रहे अवैध उत्खनन में बड़े पैमाने पर नाबालिग व बच्चों को खनन में लगाया गया है। फिर भी आज तक किसी पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उनके मुताबिक उन्होंने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (ncpcr) नई दिल्ली को लिखित जानकारी दी है, और ncpcr ने धनबाद के उपायुक्त को दो बार पत्र भेजकर स्थिति की जानकारी मांगी है। लेकिन अभी तक ncpcr को कोई जानकारी नहीं भेजी गई है। प्रदीप पाण्डेय बताते हैं कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने धनबाद के डीसी को पहला पत्र 7 फरवरी 2022 और दूसरा पत्र 18 फरवरी 2022 को भेजा है जिसमें साफ लिखा गया है कि उपरोक्त विषयान्तर्गत श्री प्रदीप पांडेय से प्राप्त शिकायत पर आयोग ने बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम 2005 की धारा 13 ( 1 ) (j) के अंतर्गत संज्ञान लिया गया है।

प्राप्त शिकायत के अनुसार धनबाद की विभिन्न अवैध कोयला खदानों में नबालिग बच्चों का इस्तेमाल कर उनसे कोयला खनन का कार्य कराया जा रहा है। शिकायतकर्ता द्वारा यह भी बताया गया है कि इसी प्रकार की एक खादान में चट्टान धंसने से एक नाबालिग बच्ची की मृत्यु हो गई थी। इसके साथ ही एक अन्य घटना में भी अवैध खनन के दौरान हुई दुर्घटना में नाबालिग बच्ची घायल हो गई थी।
प्रदीप पांडेय कहते हैं कि मेरी स्थानीय प्रशासन व राज्य सरकार से मांग है कि जो लोग अवैध खनन में बच्चों को शामिल कर रहे हैं उन पर कड़ी करवाई हो और उनकी गिरफ्तारी हो बच्चों को रेस्क्यू कर उन्हें मुख्य धारा में जोड़ा जाए।
धनबाद से प्रकाशित एक स्थानीय अखबार ‘आवाज’ के मुताबिक बाघमारा विधायक ढुलू महतो के आवास चिटाही के समीप अवैध कोयले के धंधेबाज बाघमारा विधायक के आवास के कुछ ही दूर पर स्थित मदहेशपुर कोलियरी के टुंडू की बंद खदान को खोल कर अवैध खनन कर रहे हैं। इसके चलते धनबाद चंद्रपुरा रेलमार्ग में खतरे का बादल मंडराने लगा है। अवैध मुहाने के चंद कदमों की दूरी पर धनबाद-चंद्रपुरा रेल मार्ग गुजरा है। अवैध खनन के जरिये उसे मौत का मुहाना बना दिया गया है। बरोरा थाना क्षेत्र के चिटाही में अवैध कोयला का उत्खनन जोर-शोर से किया जा रहा है। टुंडू रेल साइडिंग के एकदम समीप यह उत्खनन किया जा रहा है। यहां मौत के मुहाने हादसे को निमंत्रण दे रहे हैं। इस अवैध कोयला उत्खनन स्थल से हजारो हजार बोरियों में भर कर कोयला निकाला जा रहा है जिन्हें मुहाने के बाहर रखा गया है। तस्कर बड़े वाहनों में लोड कर बोरियों को बाहर भेजते हैं। यह सिलसिला करीब दस दिनों से चल रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य है कि इस अवैध उत्खनन स्थल पर कार्रवाई स्थानीय थाना द्वारा नहीं की जा रही है जो पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।

अवैध मुहाना के कारण जमीन हो गई है खोखली
अवैध कोयला उत्खनन स्थल में लगातार कोयला निकालने के कारण अंदर की जमीन खोखली हो चुकी है। चिटाहीधाम पहुंचने वाले हजारों श्रद्धालुओं सहित आस पास रहने वाले लोगों की जिंदगी को दांव पर लगा दिया गया है। साथ ही धनबाद-चंद्रपुरा रेल खंड पर भी खतरे की स्थिति बन गई है। सड़क से लेकर रेलमार्ग को अवैध कोयला करोबारी खतरे में डाल कर रख दिया है।
सवालों के घेरे में बीसीसीएल प्रबंधन और सीआईएसएफ की चुप्पी
अवैध खनन स्थल को लेकर बीसीसीएल प्रबंधन भी आखिर क्यों मौन है, यह भी समझ से परे है। आखिर बीसीसीएल प्रबंधन अवैध मुहाने की भराई क्यों नहीं कर रहा है। सीआईएसएफ की टीम अवैध स्थल की जांच क्यों नहीं कर रही। इस तरह की लापरवाही से लगता है जैसे हादसे होने का इंतजार किया जा रहा है।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)
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