व्यवसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता पर हावी, लोकतंत्र से समझौता:चीफ जस्टिस

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने मीडिया पर व्यापारिक घरानों के वर्चस्व पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब एक मीडिया हाउस के अन्य व्यवसायिक हित होते हैं, तो वह बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। अक्सर, व्यवसायिक हित स्वतंत्र पत्रकारिता की भावना पर हावी हो जाते हैं। नतीजतन, लोकतंत्र से समझौता हो जाता है।

गौरतलब है कि पिछले लगभग तीन दशक से चाहे प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक सभी पर बड़े व्यापारिक घरानों का कब्जा हो गया है जिनके अन्य व्यवसायिक हित भी हैं।नतीजतन ये घराने सरकार के दबाव में आ गये हैं और सम्पादक नाम की संस्था लगभग नगण्य हो गयी है और प्रबंधतंत्र मीडिया पर हावी हो गया है।  

इस पृष्ठभूमि में चीफ जस्टिस रमना ने मंगलवार को लोकतंत्र में स्वतंत्र पत्रकारिता के महत्व को रेखांकित करते हुए मीडिया से अपने प्रभाव और व्यवसायिक हितों का विस्तार करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किए बिना खुद को ईमानदार पत्रकारिता तक सीमित रखने का आह्वान किया।

राजस्थान पत्रिका समूह के अध्यक्ष गुलाब कोठारी द्वारा लिखित ‘द गीता विज्ञान उपनिषद’ नामक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि स्वतंत्र पत्रकारिता लोकतंत्र की रीढ़ है। पत्रकार जनता के आंख और कान होते हैं। तथ्यों को पेश करना मीडिया घरानों की जिम्मेदारी है। विशेष रूप से भारतीय सामाजिक परिदृश्य में, लोग अभी भी मानते हैं कि जो कुछ भी छपा है वह सच है। मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि मीडिया को अपने प्रभाव और व्यवसायिक हितों का विस्तार करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किए बिना खुद को ईमानदार पत्रकारिता तक ही सीमित रखना चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि केवल बिना व्यवसायिक दृष्टिकोण वाले मीडिया घराने आपातकाल के काले दिनों में लोकतंत्र के लिए लड़ने में सक्षम थे। मीडिया घरानों की वास्तविक प्रकृति का निश्चित रूप से समय-समय पर आकलन किया जाएगा और परीक्षण के समय उनके आचरण से उचित निष्कर्ष निकाला जाएगा।

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते भी चीफ जस्टिस ने कहा था कि मीडिया द्वारा एजेंडा आधारित बहसें और कंगारू कोर्ट चलाए जा रहे हैं, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक हैं।वर्तमान समय में जजों के फैसलों का मीडिया ट्रायल हो रहा है। कुछ लोग तो एजेंडा के तहत काम करते हैं। वर्तमान दौर में प्रिंट मीडिया जिम्मेदार ज़रूर है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी खुद तय करनी होगी। वर्तमान समय में लोग यही समझते हैं कि कोर्ट में लंबित मामलों के लिए न्यायपालिका ही जिम्मेदार है, जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। अगर जजों की नियुक्ति और न्यायालय के आधारभूत संरचना मिले तो न्यायपालिका में काम तेजी से होगा और मामलों को भी निपटाया जा सकेगा।  

उन्होंने कहा कि पत्रकार जनता की आंख और कान होते हैं। तथ्यों को पेश करना मीडिया घरानों की जिम्मेदारी है। विशेष रूप से भारतीय सामाजिक परिदृश्य में, लोग अब भी मानते हैं कि जो कुछ भी छपा है वह सच है। मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि मीडिया को अपने प्रभाव और व्यवसायिक हितों का विस्तार करने के लिए पत्रकारिता को एक साधन के रूप में उपयोग किए बिना खुद को ईमानदार पत्रकारिता तक ही सीमित रखना चाहिए।

चीफ जस्टिस ने कहा कि मीडिया अपनी भाषाओं को वह सम्मान देकर जिसकी वे हकदार हैं और युवाओं को ऐसी भाषाओं में सीखने व सोचने के लिए प्रोत्साहित करके राष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद कर सकते हैं। भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना उनके दिल के बेहद करीब है। जस्टिस रमना ने कहा कि मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि मीडिया को ईमानदार पत्रकारिता तक सीमित रखना चाहिए। इसके अलावा मीडिया को व्यवसायिक हितों का विस्तार करने से बचने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोग अभी भी मानते हैं कि अखबार में जो छपा है वो सच है।

चीफ जस्टिस ने एक पत्रकार के रूप में काम करने की संक्षिप्त अवधि के बारे में याद करते हुए कहा कि पत्रकारों के बीच जनहित की बड़ी रिपोर्ट करने के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा थी। उन्होंने कहा कि मुझे यकीन है कि ऐसे पत्रकार हैं जो आज के मीडिया में भी उतने ही उत्साहित हैं, लेकिन जोखिम लेने और बहुत मेहनत और ऊर्जा लगाने के बाद, एक पत्रकार द्वारा दायर की गई एक शानदार रिपोर्ट को डेस्क पर मार दिया जाता है। यह एक सच्चे पत्रकार के लिए पूरी तरह से मनोबल गिराने वाला है। आप उसे दोष नहीं दे सकते, अगर वे बार-बार ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं, तो वे पेशे से विश्वास खो देते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि भारत में पत्रकारों के लिए प्रणालीगत समर्थन की बात आती है तो अभी भी एक बड़ी कमी है।

यह इंगित करते हुए कि भारत के पास अभी भी पुलित्जर के बराबर कोई पुरस्कार नहीं है और न ही हम कई पुलित्जर-विजेता पत्रकार पैदा करते हैं, चीफ जस्टिस ने हितधारकों से आत्मनिरीक्षण करने का आग्रह किया कि हमारे मानकों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए पर्याप्त और प्रशंसा लायक क्यों नहीं माना जाता है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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