भाजपा को भारी पड़ सकती है ‘पुरानी पेंशन योजना’ की मांग

पुरानी पेंशन योजना को लेकर, सत्ताधारी भाजपा हाल ही में हुये हिमाचल विधानसभा चुनाव में झटका खा चुकी है, और इसी साल 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से पूर्वोत्तर के नागालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव प्रकिया शुरू हो भी चुकी है। देश के जिन पांच राज्यों ने अपने कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल की है उनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पंजाब और हिमाचल प्रदेश शामिल हैं।

ये सभी राज्य विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं। इनमें भी पंजाब को छोड़कर बाकी कांग्रेस शासित या कांग्रेस की भागेदारी वाले राज्य हैं। इनमें से भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ वो राज्य हैं, जिनमें इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं।

हिमाचल में कांग्रेस को जीत का फर्मूला मिल गया। जाहिर है कि कांग्रेस बाकी राज्यों में भी इसी फार्मूले को आजमायेगी। भाजपा इस समय देश के 18 राज्यों में सीधे या सहयोगियों के साथ सत्ता में है और सभी जगह पुरानी पेंशन योजना की मांग की अनदेखी की जा रही है।

इस तरह भाजपा के पुरानी पेंशन योजना के खिलाफ होने का संदेश जा रहा है। सत्ताधारी दल के पेंशन विरोधी होने की आम धारणा त्रिपुरा के कारण भी बनी। क्योंकि वहां भाजपा के सत्ता में आते ही कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना बंद हो गयी।

केन्द्र और राज्यों में 2004-2005 से पुरानी पेंशन योजना बंद हो चुकी है। भारत सरकार ने इसे बन्द करने के लिये 1 जनवरी 2004 से नयी पेंशन योजना (एनपीएस) लागू की थी, जिसे पश्चिम बंगाल को छोड़कर धीरे-धीरे सभी राज्यों ने अपना लिया।

उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य, जहां लगभग 12 लाख कर्मचारी हैं ने 1 अप्रैल 2005 और उत्तराखण्ड ने 1 अक्टूबर 2005 से नयी पेंशन योजना लागू कर एक तरह से पेंशन देने के झंझट से पल्ला छुड़ाकर इस जिम्मेदारी को नेशनल सिक्यौरिटी डिपॉजिटरी लिमिटेड (एमएसडीएल) के हवाले कर दिया।

ऊपरी तौर पर देखने से लगता है कि 2004 के बाद सरकारी कर्मचारियों की पेंशन समाप्त हो गयी। जबकि सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था की जगह कर्मचारियों को नया विकल्प दिया है। इसका मतलब कतई नहीं कि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को कुछ नहीं मिलेगा।

दरअसल नये विकल्प में एक फण्ड बनाया गया है और फण्ड में कर्मचारी के वेतन से 10 प्रतिशत जमा होता है जबकि सरकार उसमें कर्मचारी के वेतन का 14 प्रतिशत अंशदान जमा करती है।

इस फण्ड में जमा राशि को स्टेंट बैंक आफ इंडिया, यूटीआइ और एलआइसी शेयर मार्केट में लगाते हैं और उसका मुनाफा कर्मचारी को पेंशन के रूप में मिल जाता है। सरकार का मानना है कि इस योजना से रिटायर कर्मचारी की अधिकतम आय की कोई सीमा नहीं है।

लेकिन पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिये आन्दोलित कर्मचारी नेताओं का तर्क है कि पुरानी योजना में सेवाकाल के अंतिम प्राप्त वेतन के आधे के बराबर राशि पेंशन के रूप में मिलने की गांरटी थी। हर साल डीए बढ़ने के साथ ही पेंशन राशि भी बढ़ती थी। यही नहीं पहले चिकित्सा प्रतिपूर्ति मिलती थी जो अब नहीं मिलती।

कर्मचारी आरोप लगाते हैं कि जीवनभर सरकार की सेवा करने के बाद अन्त में सरकार ने उनको शेयर बाजार के हवाले कर दिया। जबकि जो विधायक या सांसद पांच साल भी पूरा नहीं करते उन्हें सभी सरकारें पेंशन देती हैं। यही नहीं एक सांसद या विधायक जितनी बार चुना जाता है उसे उतनी बार पेंशन मिलती है।

उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में विधायकों की पेंशन पर ही सरकार को प्रतिवर्ष लगभग 65 करोड़ खर्च करने होते हैं। वहां लगभग 2200 पूर्व विधायक हैं। यह व्यवस्था उत्तराखण्ड सहित अन्य राज्यों में भी है।

उत्तराखण्ड में पूर्व विधायक को पहले साल के लिए 40 हजार रुपये पेंशन मिलती है। इसके बाद प्रत्येक साल दो हजार रुपये की पेंशन बढ़ोतरी होती है। पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाला विधायक 48 हजार रुपये प्रतिमाह पेंशन लेता है, लेकिन अब पूर्व विधायकों को 40 हजार पेंशन भी कम पड़ रही है।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में कुछ पूर्व विधायक 8-8 बार की पेंशन ले रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पिछली 9 बार से विधानसभा का चुनाव जीतने वालों में भाजपा के सुरेश खन्ना और सपा के दुर्गा यादव हैं, जबकि आजम खान 10वीं बार जीते हैं।

अकाली दल के प्रमुख प्रकाश सिंह बादल 11 बार विधायक रह चुके थे। ऐसे में बादल को 5.76 लाख रुपये की मासिक पेंशन मिलती थी। हालांकि उन्होंने बाद में पेंशन छोड़ दी। पूर्व विधायक की मृत्यु की तारीख से उनके पति या पत्नी, या मृतक आश्रित को हर महीने उतनी ही फैमिली पेंशन मिलती है।

एक अनुमान के अनुसार देश में केन्द्र और राज्य कर्मचारियों की संख्या 4.7 करोड़ के आसपास है। इनमें से अगर आधी संख्या को भी नयी योजना से पेंशन मिल रही है और वे सन्तुष्ट नहीं हैं तो वे हिमाचल प्रदेश की तरह राजनीतिक प्रतिकार कर सकते हैं।

इसी खतरे को भांपते हुये भारत सरकार कम से कम तीन विकल्पों पर विचार कर रही है ताकि पुरानी पेंशन के लिये देशभर में छिड़ा कर्मचारी आन्दोलन शांत किया जा सके।

अगर 2 करोड़ कर्मचारी भी नाराज हैं तो उतने ही परिवारों की नाराजगी गले पड़ सकती है। यही नहीं कर्मचारी जनमत बनाने का काम भी करते हैं और सरकार को राजनीतिक नुकसान पहुंचाने की क्षमता भी रखते हैं।

(जयसिंह रावत वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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