फासीवाद के खिलाफ स्मृति सबसे बड़ा हथियार है: सिद्दीकी कप्पन

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। दो साल के बाद जेल से रिहा हुए पत्रकार सिद्दकी कप्पन ने पहली बार लोगों से बातचीत की। उन्होंने रविवार को कोलकाता में दर्शकों को बताया कि फासीवाद के खिलाफ स्मृति सबसे बड़ा हथियार है। सिद्दकी कप्पन को बिना किसी मुकदमे के उत्तर प्रदेश की जेलों में दो साल से अधिक समय तक रखा गया था। कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अक्टूबर 2020 में उस वक्त गिरफ्तार किया था, जब वे हाथरस जा रहे थे। हाथरस में दलित लड़की के साथ गैंगरेप के बाद हत्या कर दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन को सशर्त जमानत दी थी।

सिद्दीकी कप्पन इसी साल 2 फरवरी को जमानत पर रिहा हुए हैं। रिहाई के बाद उन्होंने अपने गृह राज्य केरल के बाहर अपनी पहली सार्वजनिक बातचीत की। जिसमें उन्होंने कहा कि “फासीवाद के खिलाफ एक उपकरण है जो सबसे अच्छा काम करता है: वह है स्मृति। हमें कुछ भी नहीं भूलना चाहिए, वह सब कुछ याद रखना चाहिए जो हमारे साथ हुआ है।”

एक दलित युवती के साथ कथित गैंगरेप और हत्या पर रिपोर्ट करने के लिए हाथरस की यात्रा के दौरान मथुरा के पास हिरासत में लिए जाने के बाद कप्पन ने 28 महीने जेल में बिताए थे। उन पर सामाजिक अशांति और हिंसा भड़काने की योजना बनाने का आरोप लगाया गया और आतंक और राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया। कप्पन ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से इनकार किया है।

रविवार को, कप्पन ने अपने जेल में बिताए दिनों को याद किया। जिसकी शुरुआत उन सवालों से हुई, जिनका उन्हें कथित तौर पर 5 अक्टूबर, 2020 को हिरासत में लिए जाने के बाद पुलिस और अन्य एजेंसियों से सामना करना पड़ा था। कप्पन को वो सारे सवाल याद आए जब उनसे पूछा गया था “आप कितनी बार पाकिस्तान गए हैं? क्या आप गोमांस खाते हैं? क्या आप उर्दू और अरबी जानते हैं? क्या आप जे.एन.यू. से हैं?”

कप्पन ने कहा “मैंने उन्हें बताया कि मैं पंजाब से आगे कभी नहीं गया और मैं गोमांस, सूअर का मांस और कई अन्य मांस खाता हूं। मुझे थोड़ी-बहुत उर्दू आती है और मैं जेएनयू की प्रवेश परीक्षा में असफल हो गया।” अपनी गिरफ्तारी के बाद, कप्पन ने मथुरा के एक स्कूल में 21 दिन बिताए, जिसे एक अस्थायी जेल और क्वारंटीन सेंटर में बदल दिया गया था। “50 अन्य लोग उसी कमरे में बंद थे।”

उन्होंने बताया कि 45 दिनों की कैद के बाद उन्हें अपना पहला फोन कॉल करने का मौका मिला। कप्पन ने कहा “मुझे पांच मिनट का समय दिया गया और कहा गया कि मैं हिंदी या अंग्रेजी में बोल सकता हूं। जब मैंने अनुरोध किया कि मेरी 90 वर्षीय मां केवल मलयालम समझती हैं, तो मुझे अपनी मातृभाषा में बात करने के लिए दो मिनट का समय दिया गया।”

कप्पन के खिलाफ ईडी ने कथित मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था। उन्होंने कहा, “ईडी का मामला एक दोस्त के खाते में जमा किए गए 5,000 रुपये पर आधारित था।” उन्होंने कहा कि जिस तरह से दलित युवती का अंतिम संस्कार किया गया, उससे उन्हें हाथरस मामले में दिलचस्पी हुई। पुलिस ने कथित तौर पर शव को दिल्ली के एक अस्पताल से अपने कब्जे में ले लिया था और उसके परिवार को बाहर रखते हुए रात के अंधेरे में उसके गांव में जला दिया था।

3 मार्च को, एक अदालत ने तीन आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया, जबकि चौथे को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया। कोर्ट ने कहा कि रेप का कोई सबूत नहीं है। मरने से पहले दिए गए अपने बयान में किशोरी ने सभी चार आरोपियों का नाम लिया था और कहा था कि उन्होंने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और उस पर हमला किया। फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।

जब कप्पन को गिरफ्तार किया गया, तब वह केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स की दिल्ली इकाई के सचिव थे। जिसने 2020 के दिल्ली दंगों से लेकर बेंगलुरु में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या तक के मुद्दों पर भाजपा-आरएसएस विरोधी विरोध प्रदर्शनों की एक श्रृंखला आयोजित की थी। कप्पन ने कहा “मैं केंद्रीय एजेंसियों और दिल्ली पुलिस की निगरानी में था। इसीलिए मुझे निशाना बनाया गया।”

रविवार की बातचीत, जिसका शीर्षक था, “सच्चाई की तलाश: आज के भारत में पत्रकारिता”, कप्पन ने मीडिया की वर्तमान स्थिति पर बात की। उन्होंने कहा कि “मुख्यधारा मीडिया का एक बड़ा वर्ग सरकार की जनसंपर्क एजेंसी में बदल गया है। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया दोनों ही विज्ञापनों पर निर्भर हैं और सरकार सबसे बड़ी विज्ञापनदाता है।”

कप्पन की मेजबानी करने वाला हाजरा का साधारण सभागार सुजाता सदन खचाखच भरा हुआ था। कई युवा फर्श पर बैठ गये। कप्पन की पत्नी रायनाथ कप्पन ने जब अपने संघर्ष के बारे में बताया तो पूरा सभागार तालियां बजाने के लिए खड़ा हो गया। रायनाथ ने कई बार सुप्रीम कोर्ट से लेकर उत्तर प्रदेश की स्थानीय अदालतों तक के चक्कर लगाए।

उन्होंने मलयालम भाषा में कहा कि “मेरी सास बीमार थीं, मेरे तीन बच्चे थे। मेरे पास दो ही रास्ता था, मैं या तो रोती रह सकती थी या अपनी आखिरी सांस तक लड़ सकती थी। मैंने बाद वाला चुना। इसलिए नहीं कि वह मेरे पति थे, बल्कि इसलिए कि वह एक लड़की पर हुई क्रूरता के बारे में रिपोर्ट करने की कोशिश कर रहे थे। मेरी खुद दो बेटियां हैं।”

कप्पन ने कहा “मैं अपने वकीलों और विपक्षी दलों के राजनेताओं का आभारी हूं जिन्होंने मेरा समर्थन किया। मीडिया के अंदर और बाहर कई दोस्त भी मेरे साथ खड़े थे।“ कप्पन को रोज मलप्पुरम जिले में उनके गृहनगर वेंगारा के एक पुलिस स्टेशन में हर सोमवार को अनिवार्य तौर पर हाजिरी देनी पड़ती है। उन्हें हर पखवाड़े लखनऊ की अदालत में भी पेश होना पड़ता है।

कप्पन ने उमर खालिद, गौतम नवलखा और हनी बाबू जैसे कार्यकर्ताओं का समर्थन करने की आवश्यकता की बात की, जो “फासीवादी शासन के क्रोध का सामना कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि “जेल में बिताए गए समय ने मुझे और अधिक मजबूत बना दिया है। डर के अंत में निर्भयता है।”

बातचीत की मेजबानी पीपुल्स फिल्म कलेक्टिव द्वारा की गई थी, जो एक स्वतंत्र, लोगों द्वारा वित्त पोषित संस्था है जो फिल्मों की स्क्रीनिंग करती है और बातचीत की मेजबानी करती है। इसके बाद उत्तर प्रदेश में ग्रामीण महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले समाचार पत्र खबर लहरिया पर एक वृत्तचित्र राइटिंग विद फायर की स्क्रीनिंग की गई।

(जनचौक की रिपोर्ट।)

You May Also Like

More From Author

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments