भ्रष्टाचार का आरोप अवमानना नहीं हो सकता, प्रशांत भूषण ने किया जवाब दाखिल

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नागरिक अधिकारों के वकील प्रशांत भूषण ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि भ्रष्टाचार का आरोप ‘प्रति’ अवमानना नहीं हो सकता, क्योंकि सत्य अवमानना कार्यवाही का बचाव है। संविधान और न्यायाधीश जांच अधिनियम के तहत महाभियोग की कार्यवाही में भ्रष्टाचार और उनकी जांच आवश्यक है, इसलिए प्रति भ्रष्टाचार के आरोप को अवमानना नहीं कहा जा सकता है।

वरिष्ठ वकील कामिनी जायसवाल ने भूषण की और से 2009 में तहलका पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में न्यायपालिका में भ्रष्टाचार पर भूषण की टिप्पणी के लिए उनके खिलाफ एक अवमानना मामले का लिखित जवाब उच्चतम न्यायालय में दाखिल किया है।

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ आज सोमवार को गुण के आधार पर इस मामले की सुनवाई करने वाली है। इसके पहले 10 अगस्त को पीठ  ने एक अंतरिम आदेश पारित किया कि वह इस बात पर दलील सुनेगी कि क्या न्यायपालिका के खिलाफ साक्षात्कार में टिप्पणी प्रति अवमानना की गई थी।

भूषण ने लिखित जवाब में कहा है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से अवमानना नहीं की जा सकती है, क्योंकि यह एक न्यायाधीश के पक्षपातपूर्ण निपटारे वाले न्याय के लिए की गई आलोचना से संबंधित है और ऐसे सभी मामलों में आगे की जांच की आवश्यकता होगी। सत्य, न्यायालय अवमान  अधिनियम, 1971 की धारा 13 (बी) के तहत एक बचाव है।

जवाब में तर्क दिया गया है कि जब इस तरह की सच्चाई/बचाव का मार्ग अपनाया जाता है तो अवमानना के कथित आरोपी को पकड़ने के लिए अदालत को अनिवार्य रूप से एक खोज करनी होगी कि (क) ऐसा बचाव  सार्वजनिक हित में है या नहीं और (बी) इस तरह के बचाव को लागू करने के लिए अनुरोध विश्वसनीय नहीं है।

जवाब में कहा गया है कि भूषण ने भ्रष्टाचार शब्द का इस्तेमाल व्यापक अर्थ में किया है ताकि वित्तीय भ्रष्टाचार के अलावा अन्य किसी भी प्रकार के अनौचित्य को शामिल किया जा सके। सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की एक विस्तृत परिभाषा है। भ्रष्टाचार केवल आर्थिक संतुष्टि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विभिन्न उपकरण रिश्वतखोरी, गबन, चोरी, धोखाधड़ी, जबरन वसूली, विवेक के दुरुपयोग, पक्षपात, भाई-भतीजावाद, ग्राहकवाद, जैसे विशेष रूपों की पहचान करते हैं, परस्पर विरोधी हितों का निर्माण या शोषण करते हैं।

प्रशांत भूषण।

जवाब में यह भी कहा गया है कि भ्रष्टाचार की रोकथाम पर संसदीय समिति की रिपोर्ट में न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का तथ्य उजागर किया गया है। इस पर उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों द्वारा टिप्पणी की गई है तथा इसका उल्लेख उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों में गया है।

भूषण ने कहा है कि मैंने सार्वजानिक रूप से कहा है कि मैं न्यायपालिका की संस्था और खासकर उच्चतम न्यायालय का समर्थन करता हूं, जिसका मैं एक हिस्सा हूं, और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को कम करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, जिसमें मुझे पूर्ण विश्वास है। मुझे खेद है कि अगर मेरा साक्षात्कार ऐसा करने में गलत समझा गया, तो यह कि न्यायपालिका, विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा को कम करना, जो कभी भी मेरा उद्देश्य नहीं हो सकता है।

इसके पहले भूषण ने माफी मांगने से इनकार कर दिया था और खेद व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया था। बयान में कहा गया था कि 2009 में तहलका को दिए मेरे साक्षात्कार में मैंने भ्रष्टाचार शब्द का व्यापक अर्थों में उपयोग किया है, जिसका अर्थ है औचित्य की कमी है। मेरा मतलब केवल वित्तीय भ्रष्टाचार या किसी भी प्रकार के लाभ को प्राप्त करना नहीं था। अगर मैंने कहा है कि उनमें से किसी को या उनके परिवारों को किसी भी तरह से चोट पहुंची है, तो मुझे इसका पछतावा है।

उच्चतम न्यायालय ने इसे स्वीकार नहीं किया और प्रशांत भूषण तथा पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ साल 2009 के आपराधिक अवमानना मामले में और सुनवाई की जरूरत बताई। न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस बात के परीक्षण की और जरूरत है कि भूषण और तेजपाल की जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार पर टिप्पणी अवमानना के दायरे में आती है या नहीं।

उच्चतम न्यायालय ने नवंबर 2009 में भूषण और तेजपाल को अवमानना नोटिस जारी किया था। भूषण और तेजपाल पर एक समाचार पत्रिका के साक्षात्कार में शीर्ष अदालत के कुछ मौजूदा एवं पूर्व न्यायाधीशों पर कथित तौर पर गंभीर आरोप लगाए थे। तेजपाल तब इस पत्रिका के संपादक थे। पिछली सुनवाई पर पीठ ने यह भी कहा था कि वह अभिव्‍यक्ति की आजादी को खत्‍म नहीं कर रही, लेकिन अवमानना की एक पतली रेखा भी है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहे हैं।)

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