Sunday, April 28, 2024

शो मस्ट गो ऑन: कश्मीरी कलाकार होने के मायने

2018 की सर्दियों में तारिक अहमद मीर, दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग जिले में भूमथम, मीर बाजार गांव से बौने कद का 40 वर्षीय अभिनेता, इंटरनेट पर वाइरल हो गया। गेम ऑफ थ्रोन्स सीरीज से लोकप्रिय हुए अभिनेता पीटर डिंकलेज से उनकी साम्यता ने फिल्मकार इम्तियाज़ अली को आकर्षित किया और उन्होंने मीर के साथ इंस्टाग्राम पर एक फोटो अपलोड की। (अली पहलगाम में एक फिल्मोत्सव में गए हुए थे जहां वह मीर से मिले और बर्फीले दृश्य पर इस तरह की टिप्पणियां आईं: सर्दियां आ रही हैं और वह अब भी उत्तर में है।) इसके अलावा सीएनएन ने भी एक लेख आया, “तारिक मीर, जम्मू कश्मीर के टिरियन लैनिस्टर दिखने वाला कलाकार देख रहा है बॉलीवुड स्टारडम के सपने”।

जल्द ही मीर को एक कास्टिंग डायरेक्टर ने संपर्क किया और हिन्दी फिल्म उद्योग में काम करने के लिए बुलाया और अप्रैल 2019 में यह अभिनेता ‘’बॉलीवुड स्टारडम’’ हासिल करने निकाल पड़ा। सलमान खान की फिल्म भारत (2019) में मीर ने एक मेहमान भूमिका अदा की। वह एक गीत व नृत्य के सीक्वन्स में थे जिसमें टिरियन लैनिस्टर से उनकी साम्यता पर जोर दिया गया था। खान को मीर का नाम याद था और मीर अब भी यह गर्वीली खुशी से बताते हैं। दूसरा अवसर मिलाप जावेरी निर्देशित मरजावाँ (2019) में आया। मीर को लगा कि उनका समय आ गया है।

5 अगस्त, 2019 को सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने की घोषणा की। कश्मीर में लॉकडाउन और कर्फ्यू लग गया। संचारबंदी महीनों तक चली (आधिकारिक रूप से 2021 में संचारबंदी हटाई गई) और घाटी के रहवासियों के लिए कहीं आना-जाना बंद हो गया। मीर के लिए मुंबई में ही नहीं, कश्मीर में स्थानीय पर्यटन से भी काम मिलना बंद हो गया। भरण पोषण के लिए वह केवल किराने की दुकान पर निर्भर हो गए जो वह गांव में चलाते थे।

तारिक अहमद मीर, अभिनेता

बौनेपन के साथ अभिनेता मीर को भीड़ में भी पहचाना जा सकता है पर उनके अनुभव कश्मीर में अन्य अभिनेताओं से असाधारण या अलग बिल्कुल नहीं हैं। जमीर अशई कश्मीर में घर-घर में जाने जाने वाले वरिष्ठ अभिनेता हैं। उन्होंने करियर की शुरुआत 1976 में नाटक “खामोश अदालत जारी है” (निर्देशक : कवि रत्न शर्मा) से की थी। वह साजिद अली की फिल्म लैला मजनू (2018) और विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म “शिकारा” (2020) में भी दिखे थे। अशई कहते हैं कि लॉकडाउन ने हालात बिगाड़े लेकिन संस्थानिक मदद का अभाव भी पेशेवर अभिनेता बनने वालों की राह में प्रमुख रोड़ा है। स्थानीय दूरदर्शन ने एक दशक पहले अपने धारावाहिकों का निर्माण बंद कर दिया, जिससे अभिनेताओं को बड़ा झटका लगा। उन्होंने बताया, ‘’जब भी हमने चैनल से संपर्क किया, उन्होंने कहा कि धारावाहिकों और नाटकों के लिए पैसे नहीं हैं। मैंने नई दिल्ली में प्रसार भर्ती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के समक्ष भी मुद्दा उठाया पर कुछ नहीं किया गया।”

कश्मीरी कलाकार कहते हैं कि हालात बहुत खराब हैं। वित्तीय अस्थिरता कइयों के निजी जीवन को प्रभावित कर रही है और उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर असर हो रहा है। क्षेत्र में सोशल मीडिया में इस तरह की अपील आती रहती है जिसमें कलाकारों के लिए वित्तीय सहायता का अनुरोध किया जाता है, खासकर बीमार पड़े कलाकारों के इलाज के लिए। कई अपने परिवारों का भरण-पोषण नहीं कर पा रहे, बच्चों की स्कूल फीस नहीं भर पा रहे। कलाकारों के लिए संस्थानिक मदद जैसी कोई चीज नहीं है, जहां मुंबई और हैदराबाद जैसे शहरों में स्थापित फिल्म उद्योगों में कुछ यूनियन होती हैं जो इंडस्ट्री के सदस्यों की मदद करती हैं, कश्मीरी कलाकारों के लिए ऐसा कुछ नहीं है।

श्रीनगर के नातीपोरा इलाके से हसन जावेद (47) लगभग तीन दशक से अभिनेता हैं। उन्होंने स्थानीय दूरदर्शन पर खेल कार्यक्रम के होस्ट के रूप में शुरुआत की। कश्मीर में नब्बे के दशक के शुरुआत में संकट बढ़ा। जावेद को उर्दू और कश्मीरी भाषा में दूरदर्शन नाटकों में काम मिलने लगा, और वह धारावाहिकों में छोटी-मोटी भूमिकाएं भी तलाशने लगे। उन्हें 500 रुपये से एक हजार रुपये प्रतिदिन मिल रहे थे। वह बताते हैं, “उन दिनों नियमित काम पाना मुश्किल था और स्थानीय अभिनेताओं को घाटी से बाहर जाना पड़ता था क्योंकि घाटी में माहौल शूटिंग लायक नहीं था।

जावेद का रिज्यूम प्रभावशाली है। वह एक निजी प्रोडक्शन कंपनी के संस्थापक हैं जो दूरदर्शन के लिए धारावाहिक बनाती थी, जिनमें से कुछ का श्रीनगर और दिल्ली में प्रसारण भी हुआ था। उन्होंने 100 से ज्यादा स्थानीय भाषा धारावाहिकों में काम किया है और प्रदेश सांस्कृतिक अकादमी समेत कई पुरस्कार मिल चुके हैं। आपने उन्हें रोमियो अकबर वाल्टर (2019) में एक भारतीय खुफिया एजंट के रूप में देखा होगा। फिल्म के शीर्षक का शॉर्टफॉर्म रॉ (रिसर्च एंड अनैलिसिस विंग) का आभास देता है और इसमें जॉन अब्राहम और जैकी श्रॉफ की मुख्य भूमिकाएं थीं। जावेद के अनुसार जम्मू एवं कश्मीर में करीब 400 अभिनेता हैं, जो नियमित कार्य पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

वह कहते हैं, “हमने नब्बे के दशक में मुश्किल समय में काम किया और हालात खराब होते गए पर हमने ऐक्टिंग नहीं छोड़ी, अन्य अभिनेताओं की तरह सरकारी कार्य किए।” करियर के इस मुकाम पर जो 40 और 50 की उम्र के हैं, दूसरा करियर नहीं ढूंढ सकते हालांकि आज कई ऐसा करने पर मजबूर हैं। ऐसे भी आरोप हैं कि अभिनेताओं, निर्माताओं, निर्देशकों और तकनीशियनों के दूरदर्शन पर पिछले कार्यों के 23 करोड़ रुपये बकाया हैं।

मंच पर अभिनेता

अशई की चिंता यह भी है कि प्रशासन की तरफ से 2021 में घोषित नई फिल्म नीति स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के बजाय केवल कश्मीर में शूटिंग के लिए आने वाले फ़िल्मकारों और निर्माताओं को रियायतों और सब्सिडी के रूप में लाभ पहुंचाएगी। उन्होंने बताया, “हमने उप राज्यपाल के प्रशासन से कई बार अनुरोध किया है कि स्थानीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने और काम दिलाने के लिए कश्मीर के लिए क्षेत्रीय फिल्म नीति भी होनी चाहिए। बाहर से आने वाले फिल्म उद्योग के लोगों का स्वागत है पर कोई ऐसी भी नीति होनी चाहिए कि स्थानीय फिल्म उद्योग भी चलने लगे।’’ 2021 नीति क्षेत्र के स्थानीय अभिनेताओं को कोई खास मदद नहीं करती। उन्होंने कहा, “सच यही है कि किसी सरकार के पास हमारी बिरादरी के लिए कोई नीति नहीं है। नई फिल्म पॉलिसी की बातें सिर्फ राजनीतिक परियोजना लगती हैं।

हाल में कश्मीर में शूट किए गए हिन्दी फिल्मी गीत ऐसा संकेत देते दिखाई देते हैं कि संकटग्रस्त क्षेत्र में “नॉर्मल्सी’’ वापस आ गई है, पर वास्तव में, एक ही बात सामान्य लगती है कि कश्मीरी अभिनेता इस पेशे में रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि वह दूसरे जरियों से भी कुछ ये कमाने की कोशिश करते हैं, पर वह अपनी कला के प्रति समर्पित हैं। उदाहरण के लिए जावेद कुछ भी और करने से बेहतर एक नुक्कड़ नाटक से 500 रुपए कमाना बेहतर समझते हैं। कभी-कभी जब बिल्कुल काम नहीं होता, वह घर-घर जाकर संगठनों, सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और कॉलेजों में परफॉर्म करने का कार्य मांगते हैं। वह कहते हैं, ‘’हम ऐक्टर हैं और ज़िंदगी भर ऐक्टर ही रहेंगे’’ और राज कपूर के लोकप्रिय कथन को दोहराते हैं, “शो मस्ट गो ऑन।”

(फिल्म कम्पैन्यन से साभार। मजीद मकबूल के लेख का हिन्दी अनुवाद महेश राजपूत ने किया है।)

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