बस्तर डायरी-3: जहां आंख खोलने से पहले नवजातों का होता है मौत से सामना

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बस्तर। दर्द से कराहती एक गर्भवती महिला को चार लोग दुर्गम जंगलों के रास्ते डोले में बैठा कर ले जा रहे हैं। रास्ते की कठिनाइयों को पार करते इन लोगों ने समय पर इस महिला को अस्पताल पहुंचा दिया लिहाजा उसकी और बच्चे की जान बच गयी। लेकिन यह सब कुछ समय पर नहीं होता तब क्या होता? तब शायद मां की या फिर बच्चे की जान जा सकती थी या फिर दोनों मौत के मुंह में जाने के लिए मजबूर हो जाते। ऐसा क्यों हो रहा है? यह बस्तर का सबसे बड़ा सवाल भी है और उसकी हकीकत भी। इस घटना ने छत्तीसगढ़ में विकास के दावों की पोल खोल दी है। बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में किस तरह से ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जूझना पड़ रहा है। यह घटना उसकी खुली बयानी है।

यह तस्वीर बस्तर के नारायणपुर जिले की है, यह गर्भवती महिला उस जगह रहती है जंहा स्वास्थ्य सुविधा पहुंचने से पहले अपना दम तोड़ देती है न महतारी एक्सप्रेस पहुंच सकती न कोई एम्बुलेंस। 

आइए आप को उस जगह ले चलते हैं जिस जगह से यह गर्भवती महिला आती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग अन्तर्गरत नारायणपुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी दूरी पर स्थित धौड़ाई। यहां से 22 किमी दूरी पर स्थित है ताड़ोनार जो अपने दुर्गम इलाकों के लिए जाना जाता है। यहां पहुंचने के लिए अभी सड़क निर्माणाधीन है। 5 से 6 किमी दुर्गम रास्तों से जंगल पहाड़ होते हुए आप इस गांव में पहुंच सकते हैं। 

9 दिसम्बर दिन गुरुवार ताडोनार में रहने वाली इस महिला को प्रसव पीड़ा शुरू हो गया, अस्पताल  तक पहुंचना एक मुश्किल भरा काम था। न कोई साधन था और न ही सड़क का कोई रास्ता। ऐसे में पैदल चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लिहाजा लोगों ने हिम्मत बांधी और महिला को डोले में बैठाकर जंगलों और पहाड़ों के रास्ते 15 किमी का सफर तय कर उसे अस्पताल पहुंचाया। 

इस नेक काम को न तो सरकार ने और न ही उसकी किसी व्यवस्था ने अंजाम दिया। काम आई इलाके में काम करने वाली समाज सेवी संस्था और उसके कर्मचारी। उन लोगों ने ताड़ोनार से गर्भवती महिला को न केवल डोला से एंबुलेंस तक पहुंचाया। बल्कि महिला को किसी तरह का कष्ट न हो हर उस तरह का एहतियात बरता। फिर मोटरबाइक एंबुलेंस से उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया गया। लेकिन वहां भी हालत गंभीर होने पर उसे धौड़ाई से महतारी 102 से जिला अस्पताल रेफर किया गया।

फिलहाल गर्भवती महिला को धौड़ाई स्वास्थ्य केंद्र से अस्पताल पहुंचाने के बाद उसका इलाज शुरू कर दिया गया है। वहीं एक बार फिर से इस घटना ने यह बता दिया है कि बस्तर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा पाने के लिए ग्रामीणों को किस तरह की जद्दोजहद से गुजरनी पड़ती है। 

तभी तो बस्तर में एक दर्जन से भी ज्यादा प्रदर्शन चल रहे हैं और आदिवासी ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा दी जाए लेकिन सरकार तो सुरक्षा बलों के कैम्प देना चाह रही है। और आदिवास उसका विरोध कर रहे हैं।

बता दें कि हर साल राज्य सरकार स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करती है, लेकिन बस्तर के इन बीहड़ क्षेत्रों में जमीनी हकीकत कुछ और ही है। लंबे समय से क्षेत्र के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र, मेडिकल सुविधा की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन मांग पूरी नहीं होने के चलते ग्रामीणों को या फिर गांव के ही सिरहा, गुनिया, बैगा के भरोसे रहना पड़ता है या फिर वो इस तरह की मुश्किलों को पार कर ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचते हैं और इस दौरान कई मरीजों के सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने के चलते उनकी जान भी चली जाती है। 

(बस्तर से जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

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